Jammu and Kashmir terror funding case: सैयद सलाहुद्दीन के बड़े बेटे को HC से मिली जमानत, छोटे को नहीं मिली राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को हिज़्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के बड़े बेटे सैयद अहमद शकील को ज़मानत दे दी, लेकिन सलाहुद्दीन के छोटे बेटे शाहिद यूसुफ की ज़मानत याचिका खारिज कर दी। दोनों पर 2011 के एक मामले में आतंकवाद के आरोप हैं। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने एक लाख रुपये की निजी ज़मानत राशि जमा करने पर शकील को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है। एक सरकारी अस्पताल में लैब टेक्नीशियन रहे शकील को 2018 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने श्रीनगर से गिरफ़्तार किया था। इसे भी पढ़ें: निडर होकर सच बोला... सत्यपाल मलिक के निधन पर राहुल, प्रियंका और खड़गे ने व्यक्त किया शोकउनके छोटे भाई यूसुफ, जो जम्मू-कश्मीर के कृषि विभाग में कार्यरत थे, को अक्टूबर 2017 में गिरफ़्तार किया गया था। यूसुफ पर जम्मू-कश्मीर में आतंकी अभियानों के लिए पाकिस्तान से धन प्राप्त करने का आरोप था और 2019 में इस मामले में उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया था। दूसरी ओर, शकील पर सऊदी अरब में एक सक्रिय कैडर के माध्यम से आतंकवादी संगठनों से धन जुटाने, प्राप्त करने और इकट्ठा करने का आरोप था। 2021 में जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने सलाहुद्दीन के दो बेटों सहित 11 सरकारी कर्मचारियों को उनके कथित आतंकी संबंधों और आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। इसे भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, RML अस्पताल में ली अंतिम सांसएनआईए द्वारा अप्रैल 2011 में दर्ज किया गया यह मामला दिल्ली के रास्ते हवाला चैनलों के माध्यम से पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में कथित रूप से धन के हस्तांतरण से संबंधित है। सलाहुद्दीन को जून 2017 में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया था। हिजबुल मुजाहिदीन का नेतृत्व करने के अलावा, वह कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के समूह, यूनाइटेड जिहाद काउंसिल का अध्यक्ष भी है।

Jammu and Kashmir Terror Funding Case: सैयद सलाहुद्दीन के बड़े बेटे को HC से मिली जमानत, छोटे को नहीं मिली राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को हिज़्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के बड़े बेटे सैयद अहमद शकील को ज़मानत दे दी, जबकि सलाहुद्दीन के छोटे बेटे शाहिद यूसुफ की ज़मानत याचिका खारिज कर दी। दोनों पर 2011 के एक मामले में आतंकवाद के आरोप हैं, जिसने देश में सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को फिर से उभारा है। यह मामला न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार आतंकवादी गतिविधियों का वित्तपोषण किया जाता है।
जमानत का विवरण
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने एक लाख रुपये की निजी ज़मानत राशि जमा करने के बाद शकील को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया। शकील, जो एक सरकारी अस्पताल में लैब टेक्नीशियन थे, को 2018 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने श्रीनगर से गिरफ़्तार किया था। ये घटनाएँ क्षेत्र में आतंकवाद की जड़ों का पता लगाने में मदद कर सकती हैं।
छोटे बेटे का मामला
दूसरी ओर, शकील का छोटा भाई शाहिद यूसुफ भी विवाद में शामिल हैं। यूसुफ, जो कि जम्मू-कश्मीर के कृषि विभाग में कार्यरत थे, को अक्टूबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर जम्मू-कश्मीर में आतंकी अभियानों के लिए पाकिस्तान से धन प्राप्त करने का आरोप है। 2019 में उनके खिलाफ आरोपपत्र भी दायर किया गया था। अदालत के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि यूसुफ के मामले में जमानत का अवसर नहीं मिला है, जो कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है।
आतंकवाद से जुड़े मामले
एनआईए द्वारा अप्रैल 2011 में दर्ज किया गया यह मामला दिल्ली के रास्ते हवाला चैनलों के माध्यम से पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में धन के हस्तांतरण से संबंधित है। ये नियुक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि कैसे विभिन्न संगठन और प्रतिनिधि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक अडिंगें बना सकते हैं। सलाहुद्दीन को जून 2017 में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया था। वह न केवल हिज्बुल मुजाहिदीन का नेतृत्व कर रहा है, बल्कि कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के समूह, यूनाइटेड जिहाद काउंसिल का अध्यक्ष भी है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
यह मामला केवल न्यायिक प्रक्रिया का मामला नहीं है, बल्कि इससे समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियाँ न केवल व्यक्ति को प्रभावित करती हैं, बल्कि पूरे समुदाय को भी प्रभावित करती हैं। जम्मू और कश्मीर में बड़े पैमाने पर आतंकवाद, स्थानीय लोगों की सुरक्षा और उनके सामाजिक जीवन को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है। दोनों बेटों के मामलों में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों का भी ट्रैक किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट के इस आदेश ने भारत में आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों पर एक बार फिर से ध्यान केंद्रित किया है। सैयद सलाहुद्दीन के बेटों पर लगे आरोपों और उनके संघर्ष के बारे में जाने बिना, हम इस खतरे को समझ नहीं पाएंगे। अदालत द्वारा दी गई जानकारियाँ समाज और स्थानीय समुदायों के लिए बेहद अस्थिरता ला सकती हैं। भविष्य में, आतंकवाद से निपटने के लिए ठोस और मजबूत उपायों की आवश्यकता है।
Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - theoddnaari
लेखन: सुषमा शर्मा, प्रिया मलिक, टीम theoddnaari