“स्पीकर नहीं लें समय पर फैसला तो लोकतंत्र को होगा नुकसान” – सुप्रीम कोर्ट
The post “स्पीकर नहीं लें समय पर फैसला तो लोकतंत्र को होगा नुकसान” – सुप्रीम कोर्ट appeared first on Avikal Uttarakhand. सुप्रीम कोर्ट की स्पीकरों को सख्त चेतावनी;तीन महीने में हो फैसला दल-बदल कानून उल्लंघन- स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी तीन साल में नहीं ले सकी निर्णय निर्दल उमेश कुमार का लंबित सदस्यता… The post “स्पीकर नहीं लें समय पर फैसला तो लोकतंत्र को होगा नुकसान” – सुप्रीम कोर्ट appeared first on Avikal Uttarakhand.

“स्पीकर नहीं लें समय पर फैसला तो लोकतंत्र को होगा नुकसान” – सुप्रीम कोर्ट
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Written by: Neha Sharma, Priya Verma, and Riya Singh
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
नई दिल्ली/देहरादून। हाल ही में, भारत की सर्वोच्च अदालत ने स्पीकरों को एक सख्त संदेश दिया है कि यदि वे विधायकों या सांसदों की अयोग्यता याचिकाओं पर समय से निर्णय नहीं करते हैं, तो यह लोकतंत्र पर गंभीर असर डाल सकता है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने की समय सीमा तय की है जिसके भीतर स्पीकरों को निर्णय लेना होगा। यदि समय-सीमा का पालन नहीं किया गया तो लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने का खतरा बढ़ सकता है।
स्पीकरों की देरी का मामला
इस साल 31 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने स्पीकरों की प्रक्रिया पर कड़ी नाखुशी जताई और यह स्पष्ट किया कि इस तरह की देरी लोकतंत्र को हानि पहुँचा सकती है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर को 10 BRS विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं का निर्णय तीन महीने के भीतर करने का आदेश दिया गया है।
उत्तराखंड का मामला भी इसी चपेट में है जहां निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की सदस्यता का मामला पिछले तीन साल से लंबित है। स्पीकर ऋतु खंडूड़ी पर इस मामले में गंभीर नैतिक दबाव है की वे जल्द से जल्द निर्णय करें।
उमेश कुमार का लंबित मामला
उमेश कुमार, जो 2022 में निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीतने के बाद एक राजनीतिक दल में शामिल हुए, का मामला अब सुर्खियों में है। इस संदर्भ में, बसपा के नेता ने 26 मई 2022 को विधानसभा में याचिका पेश की थी जिसमें उमेश कुमार की सदस्यता रद्द करने की मांग की गई थी। हालांकि, इस पर स्पीकर द्वारा अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
स्पीकर की भूमिका और न्यायिक सिद्धांत
स्पीकर की भूमिका लोकतांत्रिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है। यदि स्पीकर समय पर निर्णय नहीं लेते हैं, तो उन्हें न्यायिक समीक्षा के दायरे में लाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस तरह के मामलों में अगर समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो मामलों की स्थिति ‘operation successful, patient dead’ हो सकती है।
संविधान में सुधार की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव दिया है कि संविधान के अनुसार स्पीकर को दी गई जिम्मेदारियों पर पुनर्विचार करना जरूरी है। इस संबंध में, एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण के गठन का सुझाव दिया गया है ताकि अयोग्यता याचिकाओं का निष्पक्ष और त्वरित निपटारा हो सके।
निष्कर्ष
स्पीकरों की जिम्मेदारी लोकतंत्र की स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर समय पर निर्णय नहीं लिए गए, तो यह लोकतंत्र की आधारशिला को कमजोर कर सकता है। आने वाले दिनों में स्पीकर ऋतु खंडूड़ी के निर्णय का इंतजार किया जाएगा, जिससे निश्चित हो सके कि लोकतंत्र की गति सुचारू बनी रहेगी।