झारखंड की सोहराई कला भारत की आत्मा का प्रतिबिम्ब: मुर्मू
आपका अखबार ब्यूरो। झारखंड की पारंपरिक भित्ति चित्रकला सोहराय ने कला उत्सव 2025 – ‘आर्टिस्ट इन रेजिडेंस’ कार्यक्रम के दूसरे संस्करण में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज की। दस दिनों का यह कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुआ। भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने इस गौरवपूर्ण अवसर की शोभा बढ़ाई। यह आयोजन भारत की […] The post झारखंड की सोहराई कला भारत की आत्मा का प्रतिबिम्ब: मुर्मू first appeared on Apka Akhbar.

झारखंड की सोहराई कला भारत की आत्मा का प्रतिबिम्ब: मुर्मू
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आपका अखबार ब्यूरो। झारखंड की पारंपरिक भित्ति चित्रकला सोहराय ने कला उत्सव 2025 – ‘आर्टिस्ट इन रेजिडेंस’ कार्यक्रम के दूसरे संस्करण में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज की। दस दिनों का यह कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुआ। भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने इस गौरवपूर्ण अवसर की शोभा बढ़ाई। यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध परंपराओं का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
अवसर का महत्व
कला उत्सव 2025 में सोहराई कला की मान्यता से न केवल इस पारंपरिक कला की पहचान को बढ़ावा मिलता है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की दिशा में भी एक कदम है। मुर्मू जी ने अपने संबोधन में कहा, "सोहराई कला भारत की आत्मा का प्रतिबिम्ब है," जो यह दर्शाता है कि यह कला किस प्रकार हमारे देश की विविधता और संस्कृति के निचोड़ का प्रतिनिधित्व करती है।
सोहराई कला का परिचय
सोहराई कला झारखंड की एक अनूठी भित्ति चित्रकला है, जिसमें विभिन्न प्राकृतिक तत्वों को दर्शाया गया है। यह कला मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और इसमें मिट्टी के रंगों का उपयोग किया जाता है। इस कला के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे फसल, जीव-जंतु, और त्योहारों को चित्रित किया जाता है। इसके पीछे न केवल एक अद्भुत कला कौशल है, बल्कि एक गहरी भावना और संस्कृति भी शामिल है।
संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता
हालांकि, इस हेरिटेज कला को वर्तमान समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समय की प्रगति के साथ, यह कला विलुप्त होने के कगार पर है। इसलिए, इस प्रकार के कार्यक्रम और उत्सव बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये जागरूकता फैलाते हैं और इस कला को युवा पीढ़ी के बीच में लोकप्रिय बनाते हैं। सोहराई कला का संरक्षण केवल इसे विलुप्त होने से बचाने का कार्य नहीं करेगा, बल्कि यह हमारे समाज में संस्कृति और परंपरा के प्रति सम्मान भी बढ़ाएगा।
राष्ट्रपति का समर्थन
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का इस आयोजन में शामिल होना इस कला के प्रति असाधारण समर्थन दर्शाता है। उन्होंने कला को ऊर्जा और सकारात्मकता का स्रोत बताया और इसे राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा माना। मुर्मू ने युवाओं को इस कला को अपनाने और इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया, जिससे भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा जा सके।
निष्कर्ष
इस प्रकार, झारखंड की सोहराई कला केवल एक कला रूप नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और जीवन की संवेदनाओं का प्रतीक है। कला उत्सव 2025 जैसे आयोजनों के माध्यम से हम न केवल इस कला को पहचान दिलाते हैं, बल्कि एक सशक्त और सामूहिक प्रयास के जरिए इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने का कार्य भी करते हैं। इस दिशा में कदम बढ़ाना समय की आवश्यकता है।
अंत में, यह स्पष्ट है कि सोहराई कला का संरक्षण करना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने का एक तरीका भी है।
लेखक: टीम theoddnaari