प्रदेश में अधिकांश सरकारी स्कूल भवन जर्जर, हजारों में है संख्या और शिक्षा मंत्री हैं बेखबर

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प्रदेश में अधिकांश सरकारी स्कूल भवन जर्जर, हजारों में है संख्या और शिक्षा मंत्री हैं बेखबर
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प्रदेश में अधिकांश सरकारी स्कूल भवन जर्जर, हजारों में है संख्या और शिक्षा मंत्री हैं बेखबर

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लेखिका: प्रिया शर्मा और साक्षी वर्मा, टीम theoddnaari

जर्जर स्कूल भवनों की स्थिति

उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। लगभग सभी सरकारी स्कूल भवन जर्जर हो चुके हैं, और उनकी संख्या हजारों में है। हाल ही में, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि शिक्षा मंत्री की अनदेखी से इन स्कूलों का हाल बेकार होता जा रहा है। प्राइमरी और माध्यमिक विद्यालयों की इमारतें इतनी खराब हो गई हैं कि इनमें शिक्षा देना अब सुरक्षित नहीं है।

कमजोर सूचना तंत्र

धस्माना ने कहा कि सरकारी स्कूलों में सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की ज़रूरत है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री को इस बात की जानकारी है, फिर भी उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया है। इतने बड़े पैमाने पर जर्जर भवनों की जानकारी के बावजूद, अन्य राज्यों की घटनाओं के बाद ही राज्य सरकार प्रशासनिक सक्रियता दिखाती है। राजस्थान में हाल ही में हुई एक दुर्घटना की याद दिलाते हुए धस्माना ने यह भी कहा कि सरकार केवल औपचारिक आदेश देती है, लेकिन उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

हालात की गंभीरता

राज्य के विभिन्न जनपदों में साढ़े छह सौ से ज्यादा प्राथमिक विद्यालय और नौ सौ से अधिक माध्यमिक विद्यालय ऐसे हैं जो कि जर्जर स्थिति में हैं। बरसात के मौसम में तो स्थिति और भी खराब हो जाती है। हाल ही में राजस्थान के झालावाड़ में हुए भयानक हादसे का उदाहरण देते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड में भी ऐसी घटनाएं घटित हो सकती हैं।

सरकार की कर्तव्यहीनता

धस्माना का कहना है कि शिक्षा मंत्री की दृष्टि केवल स्कूलों की मरम्मत करने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें स्कूलों के बंद होने के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने यह सुझाव दिया कि यदि स्कूलों की संख्या कम हो जाएगी, तो बच्चों की सुरक्षा बढ़ जाएगी, लेकिन इस सोच में असलियत का आधार नहीं है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड में सरकारी स्कूल भवनों की जर्जर स्थिति न केवल शिक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है, बल्कि यह प्रदेश की भविष्य की पीढ़ी के लिए भी चिंताजनक है। जब तक सरकार इस मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझती और उचित कदम नहीं उठाती, तब तक स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। शिक्षा मंत्री यदि जागरूक नहीं होते हैं, तो प्रदेश में शिक्षा का स्तर और भी गिर जाएगा। इसलिए समाज और शिक्षा प्राधिकरणों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। सही समय पर सुधार न होने की स्थिति में, ना केवल सरकारी स्कूलों का भविष्य खतरे में होगा, बल्कि बच्चों की सुरक्षा भी दांव पर होगी।

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