संविधान के इस लक्ष्य को साकार करना हमारे लिए महत्वपूर्ण, Ex-CJI चंद्रचूड़ ने की UCC की वकालत
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की वकालत की और कहा कि संविधान यूसीसी की वांछनीयता को व्यक्त करता है। भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश रहे 65 वर्षीय चंद्रचूड़ ने मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए यह टिप्पणी की। हालांकि, चंद्रचूड़ ने कहा कि यूसीसी को देश और समाज के सभी वर्गों को विश्वास में लेने के बाद ही लाया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समान नागरिक संहिता उनके हित में हो। मैंने वही कहा जो मुझे कहना था, यानी संविधान समान नागरिक संहिता की वांछनीयता को व्यक्त करता है। मैंने कहा कि संविधान के जन्म और स्थापना के कम से कम 75 साल बाद, हमारे लिए संविधान की इस महत्वाकांक्षा और लक्ष्य को साकार करना ज़रूरी है। लेकिन साथ ही, हमें अपने समाज और समुदाय के सभी वर्गों को विश्वास में लेना होगा कि यह वास्तव में भविष्य के न्यायपूर्ण भारतीय समाज के हित में है, जिसे हमें राष्ट्र में बनाने की आवश्यकता है।इसे भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को लिखा कब्ज़ा लेने का निर्देश, पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकारी आवास किया खालीसमान नागरिक संहिता क्या है?समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनका धर्म, जाति, पंथ और लिंग कुछ भी हो, एक समान कानून का प्रस्ताव करती है और इसमें विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामले शामिल होने चाहिए। इसका उल्लेख संविधान के भाग IV में किया गया है। संविधान समान नागरिक संहिता के बारे में क्या कहता है?संविधान का अनुच्छेद 44, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप है, समान नागरिक संहिता का उल्लेख करता है। इसमें कहा गया है कि राज्य भारत के संपूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। वर्तमान में गोवा और उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू है। हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित कई अन्य राज्य भी समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार कर रहे हैं। केंद्र की भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने भी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर यह प्रस्ताव रखा है कि धर्म, जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव को खत्म करने के लिए देश को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को अपनाना चाहिए।

संविधान के इस लक्ष्य को साकार करना हमारे लिए महत्वपूर्ण, Ex-CJI चंद्रचूड़ ने की UCC की वकालत
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भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की वकालत की और कहा कि संविधान यूसीसी की वांछनीयता को व्यक्त करता है। 65 वर्षीय चंद्रचूड़, जो भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश रहे हैं, ने मुंबई में पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने जोर दिया कि यूसीसी को लागू करने से पहले समाज के सभी वर्गों को विश्वास में लेना अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सभी के हित में है।
यूसीसी का महत्व
चंद्रचूड़ ने कहा, "संविधान समान नागरिक संहिता की वांछनीयता को स्पष्ट करता है। हालांकि, 75 साल बाद हमें इस लक्ष्य को साकार करना आवश्यक है। हमें अपने समाज और समुदाय के सभी वर्गों को विश्वास में लेना होगा ताकि हम एक न्यायपूर्ण भारतीय समाज बना सकें।" उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब समान नागरिक संहिता के मुद्दे ने पूरे देश में चर्चाएं छेड़ी हैं।
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानूनी ढांचा है जो देश के सभी नागरिकों, उनके धर्म, जाति, पंथ और लिंग के बावजूद, समान कानूनों का प्रस्ताव करता है। इसमें महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों को शामिल किया जाना चाहिए। इसका उल्लेख संविधान के भाग IV में किया गया है।
संविधान का दृष्टिकोण
संविधान का अनुच्छेद 44, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित है, समान नागरिक संहिता का उल्लेख करता है। यह कहता है कि "राज्य भारत के संपूर्ण क्षेत्र में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करेगा।" वर्तमान में गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में यूसीसी लागू है।
राजनीतिक दृष्टिकोण और भविष्य की संभावनाएं
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित कई अन्य राज्य भी समान नागरिक संहिता को लागू करने पर विचार कर रहे हैं। केन्द्र की भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने भी यूसीसी को लागू करने का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर इसे धर्म, जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए आवश्यक बताया है।
समाज की चुनौतियाँ
हालांकि, यूसीसी का समर्थन करने वाली विचारधाराओं को सामजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। कई सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों में इसको लेकर मजबूत अभिगम हैं, जो इसे लागू करने में रुकावट डाल सकते हैं। मामलों की जटिलता को समझना और सभी वर्गों के समन्वय के साथ आगे बढ़ना निस्संदेह आवश्यक है।
निष्कर्ष
समान नागरिक संहिता, यदि सही दृष्टिकोण के साथ लागू की जाए, तो यह भारत में न्याय, समानता और समरसता का आधार बना सकती है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि यूसीसी का समर्थन एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके लिए समाज के सभी वर्गों की सहमति भी आवश्यक है।
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