Mission NISAR के बाद ISRO की बड़ी छलांग, अब अमेरिका के 6500 KG वजनी संचार उपग्रह को करेगा लॉन्च
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने पहले रॉकेट को उधार लेने से लेकर एक विश्वसनीय प्रक्षेपण भागीदार बनने तक के अपने उल्लेखनीय सफ़र में एक और अध्याय लिखने के लिए तैयार है। इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन ने इसे भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण छलांग बताते हुए कहा, अगले कुछ महीनों में, वह देश, जिसे कभी अमेरिका से एक छोटा रॉकेट मिला था, हमारे अपने लॉन्चर का उपयोग करके अमेरिका द्वारा निर्मित 6,500 किलोग्राम का संचार उपग्रह प्रक्षेपित करेगा। इस सफ़र को याद करते हुए, इसरो अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम 1963 में शुरू हुआ था जब अमेरिका ने भारत को एक छोटा रॉकेट प्रदान किया था।इसे भी पढ़ें: अंतरिक्ष से मिसाइल युद्ध की प्लानिंग करते शक्तिशाली देश?उस समय, देश अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में उन्नत देशों से 6-7 साल पीछे था। 1975 तक, अमेरिकी उपग्रह डेटा के साथ, इसरो ने छह राज्यों के 2,400 गाँवों में 2,400 टेलीविज़न सेट लगाकर 'जनसंचार' का प्रदर्शन किया। 30 जुलाई को, इसरो ने दुनिया के सबसे महंगे उपग्रह, नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) को GSLV-F16 के ज़रिए सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। L बैंड SAR पेलोड अमेरिका से आया था, जबकि S बैंड पेलोड इसरो ने प्रदान किया था। नारायणन ने कहा कि नासा ने सटीक प्रक्षेपण के लिए इसरो की सराहना की।इसे भी पढ़ें: India-Philippines ने अपने संबंधों को Strategic Partnership का दर्जा दिया, चीन से साथ मिलकर निबटेंगे दोनों देशनारायणन ने इसे भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण छलांग बताते हुए कहा, "अगले कुछ महीनों में, वह देश, जिसे कभी अमेरिका से एक छोटा रॉकेट मिला था, अमेरिका द्वारा निर्मित 6,500 किलोग्राम के संचार उपग्रह को अपने लॉन्चर से प्रक्षेपित करेगा।" पिछले 50 वर्षों में, इसरो ने अपने स्वयं के वाहनों का उपयोग करके 34 देशों के 433 उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं।

Mission NISAR के बाद ISRO की बड़ी छलांग, अब अमेरिका के 6500 KG वजनी संचार उपग्रह को करेगा लॉन्च
Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - theoddnaari
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने पहले रॉकेट को उधार लेने से लेकर एक विश्वसनीय प्रक्षेपण भागीदार बनने तक के अपने उल्लेखनीय सफ़र में एक और अध्याय लिखने के लिए तैयार है। ISRO के अध्यक्ष वी नारायणन ने इसे भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण छलांग बताते हुए कहा, अगले कुछ महीनों में, वह देश, जिसे कभी अमेरिका से एक छोटा रॉकेट मिला था, अब अपने स्वयं के लॉन्चर का उपयोग करके अमेरिका द्वारा निर्मित 6,500 किलोग्राम का संचार उपग्रह प्रक्षेपित करेगा।
इतिहास पर नज़र
इसरो के इतिहास का मुख्य बिंदु 1963 में शुरू हुआ, जब अमेरिका ने भारत को एक छोटा रॉकेट प्रदान किया। उस समय, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम उन्नत देशों से 6-7 साल पीछे था। लेकिन इसरो ने कठिनाईयों को पार करते हुए न केवल अपनी तकनीक को विकसित किया बल्कि एक समय में अन्य देशों की अंतरिक्ष सेवाओं के लिए विश्वसनीय प्रक्षेपण भागीदार बन गया।
जनसंचार में भूमिका
1975 तक, इसरो ने अमेरिकी उपग्रह डेटा के साथ, 2400 गांवों में 2400 टेलीविज़न सेट लगाकर 'जनसंचार' का प्रदर्शन किया। यह भारत के विकास में डिजिटल कनेक्टिविटी की पहली कदम थी, और तब से लेकर अब तक के सफ़र में इसरो ने अपनी महत्ता साबित की है।
NISAR उपग्रह का सफल प्रक्षेपण
30 जुलाई को, इसरो ने दुनिया के सबसे महंगे उपग्रह, NASA-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) को GSLV-F16 के जरिए सफलतापूर्वक प्रक्षिप्त किया। इस प्रक्षेपण ने इसरो की तकनीकी क्षमताओं की एक नई मिसाल कायम की है। जैसे ही L-बैंड SAR पेलोड अमेरिका से आया, S-बैंड पेलोड इसरो ने प्रदान किया। उद्देश्य स्पष्ट था: पृथ्वी के पर्यावरण में बदलावों का अध्ययन करना और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना।
अंतरिक्ष में नई संभावनाएँ
नारायणन ने कहा, "NASA ने सटीक प्रक्षेपण के लिए ISRO की सराहना की।" इस वर्ष का ये प्रक्षेपण भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं की बढ़ती साख को और मजबूती देगा। अगले कुछ महीनों में, India अपने Launch Vehicle का उपयोग करते हुए अमेरिका द्वारा निर्मित 6,500 किलोग्राम के संचार उपग्रह को प्रक्षिप्त करेगा।
भविष्य की योजनाएँ
इसरो के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि पिछले 50 वर्षों में, इसरो ने अपने वाहनों का उपयोग करके 34 देशों के 433 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। यह न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है बल्कि वैश्विक स्तर पर सहकारी अंतरिक्ष मिशनों की संभावनाओं को भी दर्शाता है।
निष्कर्ष
ISRO द्वारा अमेरिका के 6500 किलोग्राम संचार उपग्रह के सफल प्रक्षेपण की योजना एक नई दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से विकसित हो रहा है और अपनी क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर दृश्यमान कर रहा है। भारत न केवल अपने लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में नई संभावनाएँ खोलने की दिशा में अग्रसर है।
इसरो के इस समझौतें को ध्यान में रखते हुए, हम उत्सुकता से देख रहे हैं कि यह भारतीय अंतरिक्ष यात्रा के लिए क्या नए अवसर लाएगा।