सीडीएस अनिल चौहान शनिवार को सिंगापुर में शांगरी ला वार्ता को संबोधित करेंगे
भारत के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) अनिल चौहान शुक्रवार से रविवार तक यहां आयोजित होने वाली 22वीं शांगरी ला वार्ता में हिस्सा लेने के लिए सिंगापुर में हैं। शांगरी ला वार्ता को सबसे बड़े रक्षा मंचों में से एक माना जाता है। इस महत्वपूर्ण वार्ता के दौरान जनरल चौहान शनिवार को ‘भविष्य के युद्ध और युद्धकला’ विषय पर अपने विचार रखेंगे। चौहान कार्यक्रम के तहत विशेष सत्रों में भी भागीदारी करेंगे और ‘‘भविष्य की चुनौतियों के लिए रक्षा नवोन्मेष समाधान’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करेंगे। अधिकारियों ने बताया कि जनरल चौहान ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपीन, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका के वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों और सैन्य नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे। इन वार्ताओं में सैन्य संबंधों को मजबूत करने, रक्षा सहयोग को बढ़ाने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित किए जाने की संभावना है। दक्षिण एशियाई पर्यवेक्षकों के अनुसार, शांगरी ला वार्ता एक बड़ा रक्षा आयोजन है जहां रक्षा विशेषज्ञ भारत और पाकिस्तान संबंधी परिदृश्य को समझने की कोशिश करेंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ भी वार्ता को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम में 40 मंत्री-स्तरीय प्रतिनिधियों सहित 47 देशों के रक्षा विशेषज्ञों के भाग लेने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन के रक्षा मंत्री डोंग जून को वार्षिक वार्ता में नहीं भेजेगा। इसके बजाय, ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी’ का प्रतिनिधिमंडल तीन दिवसीय सम्मेलन में भाग लेगा, जिसमें रक्षा मामलों, विशेष रूप से ताइवान पर अमेरिका-चीन के रुख और दक्षिण चीन सागर में समुद्री अधिकार क्षेत्र पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा। ‘स्ट्रेट टाइम्स’ समाचार पत्र के अनुसार, 2019 के बाद यह पहली बार है जब चीन अपने रक्षा मंत्री को इस मंच में नहीं भेज रहा है।

सीडीएस अनिल चौहान शनिवार को सिंगापुर में शांगरी ला वार्ता को संबोधित करेंगे
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भारत के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) अनिल चौहान शुक्रवार से रविवार तक सिंगापुर में आयोजित होने वाली 22वीं शांगरी ला वार्ता में हिस्सा लेने के लिए वहां पहुंचे हैं। यह वार्ता दुनिया के सबसे बड़े रक्षा मंचों में से एक मानी जाती है, जो न केवल भारत, बल्कि विश्व के विभिन्न देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
शांगरी ला वार्ता का महत्व
शांगरी ला वार्ता को रक्षा मामलों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण वैश्विक मंच माना जाता है। इस कार्यक्रम में, जनरल चौहान ‘भविष्य के युद्ध और युद्धकला’ विषय पर अपने विचार रखेंगे। यह चर्चा न केवल भारत के रक्षा रणनीति को समझने में मदद करेगी, बल्कि इस बात पर भी प्रकाश डालेगी कि भविष्य में हमारे सैन्य सहयोग कैसे विकसित होंगे।
विशेष सत्रों की भागीदारी
वास्तव में, जनरल चौहान कार्यक्रम के तहत विशेष सत्रों में भी हिस्सा लेंगे और ‘‘भविष्य की चुनौतियों के लिए रक्षा नवोन्मेष समाधान’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करेंगे। यह विचार-विमर्श सुरक्षा और सामरिक सहयोग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। साथ ही, अधिकारियों ने बताया कि जनरल चौहान ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपीन, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका के वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा चुनौतियाँ
इन वार्ताओं में मुख्य रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। दक्षिण एशियाई पर्यवेक्षकों के अनुसार, इस वार्ता का उद्देश्य भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी बल देना है। यह स्पष्ट है कि शांगरी ला वार्ता कई देशों के रक्षा संबंधों को मजबूत करने का एक अवसर प्रदान करेगा।
प्रतिभागियों का व्यापक समूह
इस कार्यक्रम में 40 मंत्री-स्तरीय प्रतिनिधियों सहित 47 देशों के रक्षा विशेषज्ञों के भाग लेने की उम्मीद है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ भी वार्ता को संबोधित करेंगे।
चीन का रुख
एक महत्वपूर्ण बिंदु ये भी है कि चीन के रक्षा मंत्री, डोंग जून, इस वार्ता में भाग नहीं लेंगे। इसके बजाय, ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी’ का प्रतिनिधिमंडल सम्मेलन में शामिल होगा। इस साल की वार्ता महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि 2019 के बाद पहली बार चीन अपने रक्षा मंत्री को इस मंच में नहीं भेज रहा है।
निष्कर्ष
इस वार्ता के माध्यम से, हम विश्व की रक्षा नीतियों में एक सकारात्मक बदलाव देख सकते हैं, जो सभी देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को बढ़ाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि जनरल चौहान की भागीदारी से न केवल भारत के प्रभाव को बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि यह विश्व स्तर पर स्थिरता और शांति को भी प्रोत्साहित करेगी।
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