“स्पीकर के निर्णय में देरी पूरी लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती है” – सुप्रीम कोर्ट की गंभीर चेतावनी

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“स्पीकर के निर्णय में देरी पूरी लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती है” – सुप्रीम कोर्ट की गंभीर चेतावनी
“स्पीकर नहीं लें समय पर फैसला तो लोकतंत्र को होगा नुकसान” – सुप्रीम कोर्ट

“स्पीकर के निर्णय में देरी पूरी लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती है” – सुप्रीम कोर्ट की गंभीर चेतावनी

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Written by: Neha Sharma, Priya Verma, and Riya Singh

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चेतावनी

नई दिल्ली/देहरादून। भारत की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में राज्य के स्पीकरों को सख्त चेतावनी दी है कि यदि वे विधायकों या सांसदों की अयोग्यता से संबंधित याचिकाओं पर समय पर निर्णय नहीं लेते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पीकरों के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की है, जिसके भीतर उन्हें अपने निर्णय लेने होंगे। इस समय सीमा का पालन न होने पर लोकतंत्र की आधारशिला को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

स्पीकरों की सुस्ती पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह शामिल थे, ने स्पीकरों की कार्यप्रणाली पर गहरी नाराजगी व्यक्त की। उदाहरण के लिए, तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर को 10 BRS विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय देने का आदेश तीन महीने के भीतर दिया गया है।

इसके अलावा, उत्तराखंड में निर्दलीय विधायक उमेश कुमार का मामला पिछले तीन साल से लंबित है। सुश्री ऋतु खंडूड़ी, जो कि वहां की स्पीकर हैं, पर इस मामले में त्वरित निर्णय लेने का गंभीर नैतिक दबाव है।

उमेश कुमार का केस और इसके महत्व

उमेश कुमार, जो 2022 में निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीतने के बाद एक राजनीतिक दल का हिस्सा बने थे, का मामला अब सुर्खियों में है। बसपा के एक नेता ने 26 मई 2022 को विधानसभा में याचिका दायर की थी जिसमें उमेश कुमार की सदस्यता रद्द करने की मांग की गई थी। हालांकि, अब तक स्पीकर द्वारा इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

स्पीकर की भूमिका और न्यायिक तत्परता

स्पीकर की भूमिका एक लोकतांत्रिक प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि स्पीकर समय पर निर्णय नहीं लेते हैं, तो इस स्थिति को न्यायिक समीक्षा के तहत लाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह स्थिति ‘operation successful, patient dead’ जैसी हो सकती है।

संविधान में सुधार की आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने संसद को यह सुझाव दिया है कि स्पीकर की जिम्मेदारियों पर पुनर्विचार करना आवश्यक है। इसके तहत, एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश की गई है ताकि अयोग्यता से संबंधित मामलों का निष्पक्ष और त्वरित निपटारा हो सके। यह सुधार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी मजबूती प्रदान करेगा।

निष्कर्ष

स्पीकरों की जिम्मेदारी लोकतंत्र की स्थिरता के लिए अनिवार्य है। समय पर निर्णय न लेने की स्थिति में, यह लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है। आगे का समय स्पीकर ऋतु खंडूड़ी के निर्णय का इंतजार करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोकतंत्र का काम सही दिशा में आगे बढ़ता रहे।

कम शब्दों में कहें तो, सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी से यह साफ है कि स्पीकरों को अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा, नहीं तो इससे लोकतंत्र पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

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साभार,

टीम द ओड नारी (Neha Sharma)