सत्ता की लोलुपता ने कांग्रेस को बनाया कमजोर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान गोहाना में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर कांग्रेस गलती से भी हरियाणा में सत्ता में आ गई तो उसकी अंदरूनी कलह के कारण स्थिरता और विकास दांव पर लग जाएगा और यह राज्य को बर्बाद कर देगा। मोदी ने कहा कि कांग्रेस सरकारें 'अस्थिरता' के लिए जानी जाती हैं। मोदी ने कांग्रेस शासित कर्नाटक का उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों में जहां-जहां कांग्रेस की सरकारें बनीं, मुख्यमंत्री और मंत्री अंदरूनी कलह में शामिल रहे। मोदी ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान उसकी अंदरूनी कलह का भी जिक्र किया था। प्रधानमंंत्री मोदी का यह आरोप सही साबित हो रहा है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर कलह शीर्ष पर है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार सत्ता के लिए आपस में लड़ रहे हैं। एक ओर जहां भ्रष्टाचार को लेकर सीएम सिद्धारमैया घिरे हुए हैं और विपक्ष उनसे इस्तीफे की मांग कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कई नेता खुले तौर पर राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता रहे हैं। राज्य के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच सीएम की कुर्सी को लेकर हुई खींचतान किसी से छिपी नहीं है।   अब इस लिस्ट में कई नेताओं का नाम सामने आ रहा है। मंत्री शरणप्पा दर्शनपुर ने जताई इच्छा कर्नाटक के मंत्री शरणप्पा दर्शनपुर ने कहा कि अगर हाईकमान चाहेगा तो मैं सीएम बनूंगा। राज्य सरकार में लघु उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री दर्शनपुर ने कहा कि पार्टी में 136 विधायक हैं और सभी मंत्री बनने के योग्य हैं। लेकिन जनादेश केवल 33 सदस्यों को मंत्री बनाने का है। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य पात्र नहीं हैं। एक व्यक्ति को सीएम बनना है। अगर पद खाली होगा और और हाईकमान मुझे सीएम बनने के लिए कहेगा तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है स्थिति, मैं तैयार हूं। गौरतलब है कि शरणप्पा अकेले ऐसे कांग्रेसी नेता नहीं है जिन्होंने सीएम बनने की इच्छा जताई हो। उनसे पहले भी कई नेताओं ने इसको लेकर बयान दिए हैं। कुछ नेताओं को लेकर तो सोशल मीडिया पर अभियान भी चला रहे हैं।इसे भी पढ़ें: कांग्रेस की विभाजनकारी राहों से जुड़े खतरेकांग्रेसी नेता सतीश जारकीहोली के समर्थक उन्हें राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनाने का अभियान चला रहे हैं। बेलागावी में सतीश के समर्थन में सोशल मीडिया से लेकर अखबारों के इश्तहारों तक प्रचार किया जा रहा है। बेलागावी में सतीश जारकीहोली के समर्थकों ने पद खाली होने पर उन्हें कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करते हुए एक अभियान शुरू किया है। यह अभियान सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रमुख अखबारों में विज्ञापन देकर उनके पक्ष में समर्थक एक कदम आगे बढ़ गए हैं। सतीश के समर्थक भी इस अभियान में बड़े पैमाने पर जुटे हैं। कर्नाटक के मंत्री एमबी पाटिल भी इस रेस में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी फैसला करती है तो सीनियर या जूनियर का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा कि एक दिन मैं जरूर इस सीएम पद पर काबिज हो जाउंगा। फिलहाल ये पद खाली नहीं है।गौरतलब यह भी है कि कथित मुडा घोटाले समेत कई मामलों में सिद्धारमैया सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष लगातार उन पर इस्तीफे का दबाव बना रही है। विधानसभा में विपक्ष ने धरना तक दिया है। हालांकि, सिद्धारमैया अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताते रहे हैं। कर्नाटक सत्तारूढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर मचे घमासान के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी के अपने सहयोगियों को सख्त संदेश देते हुए कहा कि वे चुप रहें और निर्णय लेने का काम आलाकमान पर छोड़ दें। अपने आदेश की अवहेलना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर खरगे ने कहा, समय आने पर इस बारे में देखेंगे। आलाकमान इतना कमजोर नहीं है कि हम पार्टी के लिए एक-दो लोगों पर निर्भर रहें। कर्नाटक अकेला राज्य नहीं है, जहां कांग्रेस में सत्ता संघर्ष के हालात ने कांग्रेस को कमजोर बनाया है। मध्यप्रदेश में लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारने के बाद चर्ष 2018 में सत्ता में वापसी की। लेकिन कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच विवाद के कारण साल 2020 में सरकार गिर गई। छत्तीसगढ़ में पांच साल तक चली रस्साकशी चली। वर्ष 2018 में सरकार बनने के बाद सीएम की कुर्सी को लेकर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच खींचतान जारी रही। हिमाचल प्रदेश में सरकार वर्ष 2022 में चुनाव जीतने के बावजूद आलाकमान के फैसले में देरी की वजह से राज्य में सरकार गठन में बाधा आई। राजस्थान में सरकार साल 2018 में सत्ता में आने के बाद सीएम पद को लेकर गहलोत और पायलट के बीच विवाद बढऩे सरकार बाल-बाल बची थी। दरअसल लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता से अलग रहने की वजह से कांग्रेस पार्टी के नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं। क्षेत्रीय स्तर पर नेतृत्व के दावे करने वाले नेता अपने राज्यों में प्रभाव बनाने और मुख्यमंत्री पद को लेकर आपस में टकरा रहे हैं। राज्य में सरकार होने के बावजूद कई दिग्गज नेता खुलेआम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को लेकर विरोध दर्ज कर रहे हैं। इसके चलते पार्टी के भीतर खींचतान और गुटबाजी बढ़ रही है। कांग्रेस सरकारों में एक के बाद एक घोटालों और ग़लत निर्णयों ने सरकार की उपलब्धियों को बौना बना दिया। कांग्रेस आज यदि केंद्र की सत्ता से बाहर है और मात्र तीन राज्यों में सिमट कर रह गई है तो उसकी वजह कांग्रेस का सत्तालोलुप होना है। पार्टी के नेताओं को न कांग्रेस की परवाह है और न ही देश की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते रहते हैं और कांग्रेस उन्हें ग़लत साबित करने के लिए कुछ ख़ास नहीं कर रही है। कांग्रेस की सबसे बड़ी बाधा नेहरू-गांधी परिवार पर बहुत अधिक निर्भरता है। संगठन की अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार के मामलों पर जब तक कांग्रेस सख्त रूख नहीं दिखाएग

सत्ता की लोलुपता ने कांग्रेस को बनाया कमजोर
सत्ता की लोलुपता ने कांग्रेस को बनाया कमजोर

सत्ता की लोलुपता ने कांग्रेस को बनाया कमजोर

परिचय

भारतीय राजनीति में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की कमजोर स्थिति चर्चा का विषय बनी हुई है। सत्ता की लोलुपता और आंतरिक संघर्षों ने पार्टी को इस तरह की स्थिति में पहुंचा दिया है, जहाँ उसके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। आइए, देखते हैं कि कैसे ये कारक कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं।

सत्ता की लोलुपता का असर

कांग्रेस पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से देश की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। लेकिन हाल के वर्षों में, सत्ता की लोलुपता ने पार्टी के भीतर गंभीर विकार उत्पन्न किए हैं। पार्टी के नेताओं का ध्यान सत्ता पर न कि जनहित पर केंद्रित हो गया है। इसने पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष और बग़ावत को जन्म दिया है।

आंतरिक कलह और नेतृत्व संकट

कांग्रेस में नेतृत्व का संकट और आंतरिक कलह पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। कई नेता एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं, जिससे पार्टी की एकता को चोट पहुंची है। जब का चुनावों में भी पार्टी ने रणनीतिक गलतियाँ की हैं, जैसे कि उम्मीदवारों का चयन सही तरीके से न करना। परिणामस्वरूप, पार्टी ने कई महत्वपूर्ण चुनावों में हार का सामना किया है।

भ्रष्टाचार के आरोप और जन का विश्वास

कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप भी पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा रहे हैं। जनता का विश्वास खोना कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। इस परिस्थिति में पार्टी किसी प्रकार की सकारात्मक छवि बनाने में असफल रही है। यदि कांग्रेस चाहती है कि वह फिर से सत्ता में आए, तो उसे अपने नेतृत्व और नीति में सुधार करना होगा।

क्या कांग्रेस वापस आ सकती है?

कांग्रेस को अपनी आत्मा की तलाश करनी होगी। उसे अपने मूल सिद्धांतों पर लौटना होगा और अपनी पहचान को फिर से बनाना होगा। अगर पार्टी ने ऐसे बदलाव किए, तो यह संभव है कि वह वापसी कर सके। हालांकि, इसे पारदर्शिता और लगातार जनहित के मुद्दों पर ध्यान देना होगा।

निष्कर्ष

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति बताती है कि सत्ता की लोलुपता केवल एक ऐसा साधन बन गई है, जो एक मजबूत पार्टी को कमजोर कर सकती है। अगर कांग्रेस अपनी आंतरिक समस्याओं को सुलझाकर जनहित को ध्यान में रखती है, तो वह फिर से अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सकती है। जनता की उम्मीदें और आकांक्षाएं फिर से जगाने के लिए उसे ठोस योजना बनानी होगी।

इस प्रकार, कांग्रेस पार्टी को एक नई दिशा में बढ़ने का अवसर मिल सकता है, लेकिन इसके लिए उसे लंबी कड़ी मेहनत और सच्चाई के रास्ते पर चलना होगा।

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