राष्ट्रपति मुर्मू पर बेचारी लेडी का कटाक्ष दुर्भाग्यपूर्ण

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर सोनिया गांधी की टिप्पणी को भारतीय जनता पार्टी एवं अन्य राजनीतिक दलों ने ही नहीं, बल्कि आम लोगों ने भी आपत्तिजनक, अशालीन एवं स्तरहीन बताया है। राष्ट्रपति भवन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। यह बयान न केवल गलत है, बल्कि राष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। संसद के बजट सत्र के पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सोनिया गांधी ने जिस तरह एवं जिन शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, उस पर विवाद खड़ा हो जाना इसलिये स्वाभाविक है क्योंकि यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण होने के साथ पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से ग्रस्त है। सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भाषा और आरोपों को लेकर सतर्क, शालीन एवं शिष्ट रहे। विशेषतः कांग्रेस के नेता अक्सर अपने बोल, बयान एवं भाषा की शिष्टता से चुकते रहे हैं। भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में सबसे प्रतिष्ठित पद राष्ट्रपति का है। लेकिन, सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जिस तरह से राजनीति प्रेरित होकर विचार एवं नीतियों की आलोचना करने की बजाय सीधा राष्ट्रपति पर कटाक्ष किया है, उससे इस पद की गरिमा को गहरा आघात लगा है। राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की नीतियों एवं योजनाओं को रेखांकित करता है, इसमें राष्ट्रपति की अपनी कोई विशिष्ट विचारधारा नहीं होती, इसलिए विपक्ष चाहे तो नीतियों एवं योजनाओं की आलोचना कर सकता है, यह उसका अधिकार होता है। वह इस अधिकार का उपयोग करता है और उसे करना भी चाहिए, लेकिन इस लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग राष्ट्रपति के व्यक्तित्व का छिद्रान्वेशन करना कैसे हो सकता है? यह अच्छा नहीं हुआ कि सोनिया गांधी ने अभिभाषण में व्यक्त विचारों के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करने के स्थान पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु पर ही कटाक्ष एवं तंज कस दिया। उन्हें यह कहने की आवश्यकता नहीं थी कि अभिभाषण के आखिर तक आते-आते राष्ट्रपति बहुत थक गई थीं। कठिनाई से बोल पा रही थीं। बेचारी महिला। पता नहीं सोनिया गांधी ने यह निष्कर्ष कैसे निकाल लिया और यदि निकाल भी लिया तो उन्हें उसे बेचारी महिला जैसे शब्दों में व्यक्त नहीं करना चाहिए था, यह उनकी राजनीति अशिष्टता, अशालीनता, अहंकार एवं अपरिपक्वता का ही द्योतक है। ऐसा लगता है कांग्रेस एवं उनके शीर्ष नेताओं की चेतना में स्वस्थ समालोचना के बजाय विरोध की चेतना मुखर रहती है। ऐसे अमर्यादित एवं अशोभनीय आलोचना ने राष्ट्रपति पद की अस्मिता एवं अस्तित्व पर सीधा एवं तीखा आक्रमण कर दिया है।यह आश्चर्य का नहीं बल्कि सर्तकता, समयज्ञता एवं जागरूकता विषय है कि राष्ट्रपति भवन को सोनिया गांधी की टिप्पणी पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करनी पड़ी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर सोनिया गांधी की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया देनी पड़ी है और कांग्रेस के बयान को न केवल गलत कहा, बल्कि इसे राष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला भी बताया। राष्ट्रपति ने हिंदी जो उनकी मातृभाषा नहीं है, फिर भी उन्होंने बहुत ही बेहतरीन एवं प्रभावी भाषण दिया, लेकिन कांग्रेस का शाही परिवार उनके अपमान पर उतर आया है। राष्ट्रपति भवन ने अपने बयान में कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने संबोधन के दौरान किसी भी पल थकी नहीं थीं, उन्होंने पूरे आत्मविश्वास और ऊर्जा के साथ संसद को संबोधित किया। विशेष रूप से जब वे हाशिए पर खड़े समुदायों, महिलाओं और किसानों के अधिकारों की बात कर रही थीं, तब वे और भी ज्यादा संकल्पित एवं ऊर्जा से भरी हुए थीं। राष्ट्रपति को विश्वास है कि इन वर्गों की आवाज उठाना कभी भी थकावट का कारण नहीं बन सकता, बल्कि यह उनके कर्तव्य का एक अहम हिस्सा है। इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन ने कांग्रेस नेताओं की हिंदी भाषा की समझ पर भी सवाल उठाए। बयान में कहा गया कि संभवतः ये नेता हिंदी भाषा की लोकोक्तियों और मुहावरों से भली-भांति परिचित नहीं हैं, जिसके कारण उन्होंने राष्ट्रपति के भाषण की गलत व्याख्या कर ली। राष्ट्रपति भवन ने कहा कि ऐसे भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण बयानों से बचा जाना चाहिए, जो न केवल अनावश्यक विवाद खड़ा करते हैं, बल्कि देश के सर्वाेच्च संवैधानिक पद की गरिमा को भी ठेस पहुंचाते हैं। राष्ट्रपति भवन ने कांग्रेस नेताओं के बयानों को खराब और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए यह भी कहा कि इस तरह की टिप्पणियां पूरी तरह से अनुचित हैं और इन्हें टाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भाषा और आरोपों को लेकर सतर्क रहें। राष्ट्रपति भवन की यह कठोर प्रतिक्रिया कांग्रेस नेताओं के लिये सबक एवं सीख बननी चाहिए।इसे भी पढ़ें: दिल्ली के जनादेश की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी, दांव पर केजरीवाल और राहुल गांधी की प्रतिष्ठास्वाभाविक रूप से कांग्रेस नेताओं और खुद प्रियंका गांधी ने सोनिया गांधी का बचाव किया, लेकिन यह समझा जा सके तो बेहतर होता कि उन्हें अपने शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए थी। ऐसे बयान ने न केवल गैरजिम्मेदाराना एवं विध्वंसात्मक इरादों को ही नहीं, छल-कपट की राजनीति को भी बेनकाब किया है। कांग्रेस न जाने क्यों मानसिक दुर्बलता की शिकार है कि उसे अंधेरे सायों से ही प्यार है। ऐसे राजनीतिक दलों एवं सोनिया गांधी जैसे राजनेताओं की आंखों में किरणें आंज दी जाएं तो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि उन्हें उजालों के नाम से ही एलर्जी है। तरस आता है सोनिया जैसे राजनेताओं की बुद्धि पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते हैं, आकाश में पैबन्द लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर राजनीतिक सागर की यात्रा करना चाहते हैं। इसीलिये राष्ट्रपति भवन ने यह सही कहा कि सोनिया गांधी की ओर से जो टिप्पणी की गई, वह सर्वथा टालने योग्य थी। शीर्ष नेताओं को अपनी बात कहते समय पद की गरिमा के साथ अपने शब्द चयन में सावधानी बरतनी चाहिए। उस समय तो और भी जब टिप्पणी राष्ट्रपत

राष्ट्रपति मुर्मू पर बेचारी लेडी का कटाक्ष दुर्भाग्यपूर्ण
राष्ट्रपति मुर्मू पर बेचारी लेडी का कटाक्ष दुर्भाग्यपूर्ण

राष्ट्रपति मुर्मू पर बेचारी लेडी का कटाक्ष दुर्भाग्यपूर्ण

The Odd Naari

लेखिका: सुमन शर्मा, टीम नेटानागरी

परिचय

भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ हाल ही में की गई टिप्पणी ने राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। यह कटाक्ष एक महिला के द्वारा किया गया था, जिसने न केवल द्रौपदी मुर्मू की स्थिति को चुनौती दी, बल्कि पूरे महिला समुदाय को प्रभावित किया। ऐसे समय में जब महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं, इस प्रकार की टिप्पणियाँ बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

कटाक्ष का संदर्भ

बुधवार को, एक प्रमुख महिला नेता ने राष्ट्रपति मुर्मू को संबोधित करते हुए कई भौतिक विशेषताओं को लेकर कटाक्ष किया। उनके बयान में केवल व्यक्तिगत आक्षेप नहीं, बल्कि एक प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को भी मजाक में लिया गया। इस प्रकार के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह की कमी नहीं है।

महिलाओं का सशक्तिकरण

भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को पुरुषों के समान विषयों पर चर्चा करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इस प्रकार की टिप्पणियों से न केवल व्यक्तिगत अपमान होता है, बल्कि यह महिलाओं को एक दूसरे से विभाजित भी करता है। राष्ट्रपति मुर्मू के उदाहरण से हमें यह सीखना चाहिए कि हमें एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए, बजाय कि आलोचना के।

राजनीतिक संदेश और प्रभाव

इस कटाक्ष का राजनीतिक प्रभाव भी हो सकता है। जब एक महिला एक अन्य महिला की क्षमता और सफलता को चुनौती देती है, तो यह निश्चित रूप से सामाजिक व्यवहारों को प्रभावित करता है। ऐसे बयानों से हमें यह समझना चाहिए कि हमें अपनी आवाज उठाने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए, लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी टिप्पणियाँ दूसरों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।

निष्कर्ष

इस कटाक्ष ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि हमें समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और समर्थन की आवश्यकता है। भविष्य में, हमें उम्मीद करनी चाहिए कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाएँ अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएँगी और एक-दूसरे का समर्थन करेंगी। ऐसे वक्त में, जब राष्ट्रपति मुर्मू जैसी महिलाएँ उच्च पदों पर बैठी हैं, तो समय आ गया है कि हमें उनके कार्यों की सराहना करनी चाहिए और न कि उन्हें काटने के लिए।

kam sabdo me kahein to, राष्ट्रपति मुर्मू पर कटाक्ष एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो महिलाओं के सशक्तिकरण के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।

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