भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर चोट करने के लिए चीन की नई चाल, कंपनियों को टारगेट पूरे करने में हो रही दिक्कत

भारत और चीन फिर से कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू करने पर राजी हो गए हैं। एलएसी पर डिसइंगेजमेंट को लेकर भारत और चीन के बीच सहमति बन गई है। वहीं चीनी विदेश मंत्री वांग यी का हालिया बयान कि  चीन और भारत को एक दूसरे से आधे रास्ते पर मिलना चाहिए और आपसी समझदारी व सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। ये सब सुनने में कितना अच्छा लगता है और एकदम ट्रू फ्रेंड वाली फिलिंग आने लगती है। लेकिन क्या सच में चीन पर भरोसा किया जा सकता है? ये एक ऐसा सवाल है , जिसका जवाब चीन ने इतिहास में पिछले कई मौकों पर अपने कदमों के जरिये खुद ही दिया है। हमारे पड़ोसी का भरोसा तोड़ने का पुराना इतिहास रहा है। शनि की साढ़े साती के बारे में सुनते ही लोग परेशान हो जाते हैं। चीन भारत की कुंडली में साढे साती सरीखा ही है। उसका मकसद किसी भी तरह भारत की तरक्की में विघ्न डालना है। लेकिन बात इस बाद विवादास्पद सीमाओं की नहीं बल्कि गहरे आर्थिक संबंधों की है, जिसे लिए ड्रैगन अपनी गंदी नीति पर उतर आया है। चीन की नई एक्सपोर्ट पॉलिसी के चलते भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर संकट में है।इसे भी पढ़ें: ख़ुशख़बरी! भारत-चीन के बीच हुई सबसे बड़ी डील, कैसे मान गया ड्रैगन? 3750KM दूर लिखी गई पटकथा, जानिए पर्दे के पीछे की कहानी चीन ने रोका मशीनी उपकरणों का निर्यातइलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) इंडस्ट्री इस पॉलिसी के कारण मुख्त तौर पर प्रभावित हुए हैं। चीन ने जरूरी मशीनी उपकरणों का निर्यात बंद कर दिया है। इससे कंपनियों को प्रोडक्शन में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के लिए चीन एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसने हाल ही में भारत में इन महत्वपूर्ण मशीनों की बिक्री को रोकना शुरू कर दिया है, जिससे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाएं उथल-पुथल में पड़ गई हैं। स्थिति इस हद तक बढ़ गई कि वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जर्मनी के वाइस चांसलर रॉबर्ट हेबेक को चेतावनी दी कि अगर चीन इन महत्वपूर्ण बिक्री में बाधा डालना जारी रखता है तो भारत के पास जर्मन निर्मित टीबीएम खरीदना बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। फार्मास्युटिकल क्षेत्र में जहां भारत की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई), दवा मध्यवर्ती (डीआई), और प्रमुख प्रारंभिक सामग्री (केएसएम) के लिए वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण को बढ़ावा दे रही है, चीनी कंपनियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की सरकार ने जानबूझकर कैपिटल इक्विपमेंट का निर्यात रोक दिया है। इसका असर ये हो रहा है कि भारतीय कंपनियों के लिए उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और मांग के अनुसार उत्पादन करना मुश्किल हो गया है। इसे भी पढ़ें: भारत से दोस्ती पर चीन का बड़ा बयान, जिनपिंग के मंत्री ने भारतीय विदेश सचिव का बीजिंग में किया जोरदार स्वागतचीन प्‍लस वन रणनीति से हो गया परेशानचीन प्लस वन रणनीति ग्लोबल ट्रेंड स्ट्रैटजी है। इसके तहत कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए उसके अलावा अन्य देशों में भी निवेश करती है। ये रणनीति मुख्य रूप से चीन अमेरिका व्यापार युद्ध और कोविड-19 महामारी के बाद उभरी है। पिछले 3 दशकों पर नजर डालें तो पश्चिमी देशों की कई कंपनियों ने चीन में बड़े पैमाने में निवेश किया। निवेश को बढ़ाने की कम परिश्रमिक वाले मजदूरों का मिलना, सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट आदि रही है। बनते-बिगड़ते दूसरे देशों का असर उन कंपनियों पर पड़ने लगा जिन्होंने चीन में बड़े स्तर पर निवेश किया था। इस समस्या के समाधान के तौर पर नई नीति बनाई गई और नाम रखा गया चाइना प्लस वन स्ट्रेटेजी। एप्पल, फॉक्सकॉन और टाटा इलेक्ट्रॉनिक जैसी कंपनियां अब भारत में अपने उत्पादन का विस्तार कर रही है। जिससे ये साफ हो गया है कि भारत मैन्यूफैक्चरिंग का एक प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर चोट करने के लिए चीन की नई चाल, कंपनियों को टारगेट पूरे करने में हो रही दिक्कत
भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर चोट करने के लिए चीन की नई चाल, कंपनियों को टारगेट पूरे करने में हो रही दिक्कत

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर चोट करने के लिए चीन की नई चाल, कंपनियों को टारगेट पूरे करने में हो रही दिक्कत

The Odd Naari द्वारा रिपोर्ट: साक्षी शर्मा

परिचय

भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है, लेकिन हाल ही में चीन ने इसे प्रभावित करने के लिए नई चालें चली हैं। इन चालों का असर भारतीय कंपनियों की उत्पादन क्षमता और उनके लक्ष्यों को पूरा करने में मुश्किलें पैदा कर रहा है। चलिए जानते हैं इस नई स्थिति का विस्तार से।

चीन की रणनीतियाँ

चीन ने भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को कमजोर करने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाई हैं। इनमें आर्थिक दबाव, बाजार में आक्रामकता और तकनीकी प्रतिस्पर्धा शामिल है। चीन को उम्मीद है कि ये उपाय भारतीय कंपनियों की विकास गति को धीमा कर देंगे।

भारतीय कंपनियों पर असर

इस स्थिति का प्रभाव भारतीय कंपनियों के उत्पादन लक्ष्यों पर स्पष्ट रूप से दिख रहा है। कई कंपनियों ने अपनी उत्पादन योजनाओं को फिर से बनाना शुरू किया है और कुछ को अपने श्रम बल में कमी करनी पड़ी है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल निर्माताओं को इस जद्दोजहद का सामना करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे समय में भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार में खुद को बनाए रखने के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी और नवोन्मेषी बनना होगा।

सरकारी पहल

भारतीय सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है और कई कदम उठाए हैं ताकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को स्थिरता दी जा सके। जैसे कि, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना, निर्यात के लिए सब्सिडी प्रदान करना और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना। इन पहलों से कंपनियों को एक नई दिशा मिलेगी और संकट के समय में उन्हें सहारा मिलेगा।

भविष्य की संभावनाएँ

अगर चीन की चालों पर समय रहते काबू न पाया गया, तो भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि रुक सकती है। लेकिन दूसरी ओर, यह समय है जब भारतीय कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए और अधिक मजबूत होना चाहिए। इसके लिए, अनुसंधान एवं विकास में निवेश और स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं के साथ भागीदारी को बढ़ाना आवश्यक है।

निष्कर्ष

चीन की नई चालों ने भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए चुनौतियाँ खड़ी की हैं, लेकिन सही रणनीतियों के माध्यम से यह सेक्टर पहले से ज्यादा मजबूत बन सकता है। सरकार और कंपनियों को मिलकर इस संकट का सामना करना होगा ताकि वे वैश्विक आधिपत्य को बनाए रख सकें।

कम शब्दों में कहें तो, भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को चीन की नई चालों से निपटने के लिए मजबूती और नवाचार की आवश्यकता है। समाधान के लिए एकजुटता ही कुंजी होगी। और यदि आप अधिक जानकारी चाहते हैं, तो theoddnaari.com पर जाएं।

Keywords

manufacturing sector, China tactics, Indian companies, production challenges, government initiatives, global competition, supply chain issues, economic pressure, electronics industry, automotive sector.