बुलेट पर बैलेट की जीत से ही निकलेगा नक्सली आतंक का हल
नक्सलियों के आतंक के गढ़ रहे नक्सली प्रभावित इलाकों में चुनावों के जरिए लोकतंत्र के सूरज का उदय हो रहा है। इससे लोकतंत्र के प्रति भरोसा बढऩे के साथ ही इसकी जड़ें मजबूत हो रही हैं। भटके हुए युवाओं और डरे हुए ग्रामीणों को समझ में आने लगा है कि सिर्फ लोकतांत्रित तरीके से ही उनकी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के प्रथम चरण के लिए वोट डाले गए। इस दौरान बस्तर संभाग के सुकमा और बीजापुर जिले के अनेक मतदान केंद्रों पर पहली बार अनेक दशकों के बाद ग्राम पंचायतों में मतदान हुए। इस बार बस्तर में पंचायत चुनावों का नक्सलियों की ओर से कोई विरोध नहीं किया जाना क्षेत्र में 40 से अधिक नई सुरक्षा कैंपों की स्थापना और सरकार की ओर से ग्रामीणों में विश्वास बहाल करने की रणनीति का परिणाम है। यह एक ऐतिहासिक बदलाव है और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत को दर्शाता है। राज्य में मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, दंतेवाड़ा और गरियाबंद जिलों में और बीजापुर के पुसनार, गंगालूर, चेरपाल, रेड्डी, पालनार जैसे क्षेत्रों में ग्रामीणों ने निर्भीक होकर मतदान किया। गौरतलब है कि बस्तर में नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती में भी इस बार ग्रामीण मतदान के लिए उत्साहित हैं। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव हो रहे हैं। पंचायत चुनावों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब नक्सलियों ने इसका विरोध नहीं किया है। राज्य में कमजोर हो रहे नक्सलवाद का यह सबसे बड़ा उदाहरण है।इसे भी पढ़ें: नक्सलियों के खिलाफ चल रही निर्णायक मुहिम के मिलने लगे हैं बेहतर नतीजेछत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से हर बार पंचायत चुनावों में नक्सलियों की तरफ से पोस्टर जारी किए जाते थे लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब नक्सलियों ने विरोध नहीं किया। इसके साथ ही स्थानीय लोग भी वोटिंग करने के लिए घरों से बाहर निकले। इससे पहले नक्सली बस्तर इलाके में वोटिंग करने पर ग्रामीणों को धमकी देते थे। नक्सलियों ने कई बार पोस्टर जारी कर कहा था कि वोटिंग करने वालों की ऊंगलियों को काट लिया जाएगा जिस कारण से ग्रामीण वोटिंग करने के लिए नहीं निकलते थे। इस बार पंचायत चुनाव में ग्रामीणों ने बड़े उत्साह से साथ वोटिंग की है। हार्डकोर नक्सली इलाकों में वोटिंग के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी। हिडमा के गांव में पहली बार वोटिंग छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में पंचायत चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। यहां सुरक्षाबल के जवानों के कारण लोग वोटिंग करने के लिए घरों से बाहर आ रहे हैं। बस्तर संभाग के 7 नक्सल प्रभावित जिलों में कुल 1855 ग्राम पंचायतें हैं। लोकतंत्र की बुनियादी विजय पताका के फहरे जाने की वजह यह है कि सुरक्षाबल के जवानों ने नक्सलियों के हार्डकोर इलाके में 40 से अधिक कैंप स्थापित कर लिए हैं। जिस कारण से इन इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ है। नए कैंप खुलने के बाद नक्सली पीछे हट गए हैं। वहीं, सुरक्षाकर्मी अब जवानों के गढ़ में घुसकर लगातार कार्रवाई कर रहे हैं जिससे नक्सलियों में खौफ व्याप्त है। यही कारण है कि नक्सलियों ने इस बार इसका विरोध नहीं किया है। सुरक्षाबल के जवान नक्सलियों के गढ़ में घुसकर कार्रवाई कर रहे हैं। जिस कारण से वह पंचायत चुनाव का विरोध नहीं कर पाए। इससे पहले नक्सली मजबूत होते थे और हमारे सिस्टम पर हमला करते थे लेकिन अब वह लगातार कमजोर हो रहे हैं। अब वह अपना गढ़ बचाने में लगे हुए हैं। सुरक्षाबल के कैंप स्थापित होने से जो गांव नक्सलवाद के प्रभाव से मुक्त हो रहे हैं वहां से लोग सबसे पहले आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड बनवा कर सरकार की योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। सरकार की योजनाओं का विस्तार इन इलाकों तक हुआ है। वह मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं। पूर्व में सुरक्षा बलों की कार्रवाई सीधे अबूझमाड़ में नहीं होती थी। जिस कारण से नक्सलियों का गढ़ सुरक्षित था और वह इस तरह की हरकतें करते थें। पंचायत चुनाव के विरोध में पोस्टर लगाते थे और ग्रामीणों को धमकियां देते थे। मौजूदा सरकार की रणनीत से सुरक्षाबल के जवान गढ़ को भी घेर रहे हैं और कार्रवाई कर रहे हैं, वहीं गढ़ के आसपास भी नक्सलियों पर हमले हो रहे हैं जिस कारण से नक्सली बैकफुट पर आ गए हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कहा कि इस बार बस्तर में पंचायत चुनावों का नक्सलियों की ओर से कोई विरोध नहीं किया जाना क्षेत्र में 40 से अधिक नई सुरक्षा कैंपों की स्थापना और सरकार की ओर से ग्रामीणों में विश्वास बहाल करने की रणनीति का परिणाम है। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संकल्प के मुताबिक मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य सरकार बस्तर के नागरिकों को विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं से जोडऩे के लिए संकल्पित है। बस्तर में सड़कें, पुल, स्कूल, अस्पताल और रोजगार परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे ग्रामीणों का शासन और लोकतंत्र पर विश्वास बढ़ा है। सुरक्षा बलों ने नक्सली आतंक के साए को खत्म करके वोटों के जरिए लोकतंत्र की बुनियाद आतंक प्रभावित क्षेत्रों में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भी सुरक्षाबलों ने बीते दिनों 31 नक्सलियों को मार गिराया। साल 2025 में 40 दिनों के अंदर अब तक कुल 81 नक्सलियों का खात्मा किया गया। साल 2024 में 239 नक्सलियों को सुरक्षाबलों ने ढेर किया था, वहीं साल 2023 में 24 नक्सली, 2022 में 305 नक्सली हमले हुए थे, जिसमें 10 जवान शहीद हुए थे और 31 नक्सली ढेर हुए थे। वर्ष 2021 में 48 नक्सली, 2020 में 44 और वर्ष 2019 में 79 नक्सलियों को सुरक्षाबलों ने ढेर किया था। केंद्र और राज्य का लक्ष्य है कि 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलियों से मुक्त कराना है। बचे हुए भटके नक्सलियों के पास अब

बुलेट पर बैलेट की जीत से ही निकलेगा नक्सली आतंक का हल
परिचय
नक्सली आतंकवाद ने देश के कई हिस्सों में अपनी जड़ें जमा ली हैं। इस समस्या का समाधान केवल सुरक्षा बलों की ताकत में नहीं, बल्कि लोकतंत्र में जनता की भागेदारी से संभव है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि कैसे बुलेट (सैन्य शक्ति) पर बैलेट (मतदान) की जीत ही नक्सली आतंक का हल हो सकती है।
नक्सलवाद की जड़ें
नक्सलवाद का इतिहास कई दशकों पुराना है और यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों और वंचित वर्गों में अपने विचारों का प्रचार कर रहा है। इसके पीछे का मुख्य कारण है सामाजिक और आर्थिक असमानता। जब लोग महसूस करते हैं कि उनके अधिकारों का सम्मान नहीं हो रहा है, तो वे उग्रवाद का सहारा लेते हैं।
लोकतंत्र का महत्व
लोकतंत्र में मतदान का महत्व बहुत अधिक होता है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें लोग अपनी आवाज उठा सकते हैं। अगर ग्रामीण क्षेत्र के लोग सही प्रतिनिधियों को चुनें, तो उनकी समस्याओं का समाधान और बेहतर तरीके से किया जा सकता है। मतदान से न केवल विकास योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सकता है, बल्कि नक्सलवाद की गतिविधियों पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
बुलेट और बैलेट का संतुलन
सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ-साथ स्थानीय जनता के साथ भी संवाद करना चाहिए। जब लोग समझेंगे कि उन्हें पुलिस और सरकारी अधिकारियों से क्या अपेक्षाएं रखनी हैं, तो नक्सलियों की शक्ति अपने आप कम हो जाएगी। बुलेट का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब बैलेट के माध्यम से समस्याओं का समाधान संभव न हो।
समुदाय की भागीदारी
स्थानीय लोगों की भागीदारी न केवल चुनावों में बल्कि विकास कार्यों में भी आवश्यक है। यदि ग्रामीण समुदाय स्वायत्तता के साथ निर्णय लेने में सक्षम होते हैं, तो इससे न केवल स्थानीय विकास होगा, बल्कि नक्सलवाद के प्रति भी एक दीर्घकालिक समाधान निकलेगा।
निष्कर्ष
एक मजबूत लोकतंत्र ही नक्सली आतंकवाद का स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है। बुलेट पर बैलेट की जीत, लोगों की आवाज और उनकी भागीदारी के माध्यम से नक्सलवाद की समस्या का हल संभव है। हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है और गांवों के विकास के लिए एकजुट होना होगा। इस प्रयास में हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण है।
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