दिल्ली की किस्मत 'रेखा' से एनसीआर की अपेक्षाएं

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से न केवल दिल्ली वासियों बल्कि एनसीआर के लोगों की अपेक्षाएं बढ़ चुकी हैं। क्योंकि दिल्ली-एनसीआर के इतिहास में संभवतया यह पहला मौका है जब दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा और उत्तरप्रदेश में भी भाजपा की सरकार है। चूंकि दिल्ली और एनसीआर के शहरों यथा- गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, फरीदाबाद, गुरुग्राम, रोहतक, सोनीपत आदि में चोली-दामन का सम्बन्ध बन चुका है, इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री से सबकी सकारात्मक अपेक्षाएं रहती आई हैं। लिहाजा, अब यह रेखा गुप्ता पर निर्भर करेगा कि हरियाणा-उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकारों को साधकर वह दिल्ली-एनसीआर वासियों के दूरगामी हित कितने महत्वपूर्ण कदम उठा पाती हैं। वहीं यदि वह राजस्थान और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों को भी साध लें तो दिल्ली-एनसीआर वासियों का ज्यादा भला कर पाएंगी। ध्रुवसत्य है कि जब लोगों की रोजमर्रा की जरूरतें किसी नेता के एजेंडे में शामिल हो जाती हैं तो दोनों का संतुलित विकास होता है।इसे भी पढ़ें: Rekha Gupta ने 'शीश महल' में रहने से किया इनकार, कहा- सीएम आवास को संग्रहालय में बदल दिया जाएगाऐसे में यदि भाजपा और उसके तीनों-चारों मुख्यमंत्री जनहित में 'ग्रेटर दिल्ली' बनाने की पहल करे तो एनसीआर वासियों के लिए इससे बड़ी खुशी की बात कुछ हो ही नहीं सकती। क्योंकि ऐसा होने से जहां गाजियाबाद-गौतमबुद्धनगर के लोगों को लखनऊ-प्रयागराज-कानपुर के चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी, वहीं फरीदाबाद-गुरुग्राम-रोहतक-सोनीपत के लोगों को चंडीगढ़ जाने से मुक्ति मिलेगी। वहीं, जो लोग अब तक यह कहते आए हैं कि दिल्ली का न अपना मौसम है, न पानी है, उनकी यह शिकायत भी दूर हो जाएगी। क्योंकि ग्रेटर दिल्ली के पास अपना मौसम और अपना पानी दोनों हो जाएगा। निर्बाध विद्युत आपूर्ति में भी कोई बाधा नहीं आएगी। सड़कें चकाचक हो जाएंगी। यही नहीं, ग्रेटर दिल्ली बनने से यहां की लोकसभा सीटें बढ़ेंगी, विधानसभा सीटें बढ़ेगी, नगर निगम का आकार बढ़ेगा और यहां विधान परिषद के गठन की भी बात बढ़ेगी। इसके अलावा, यहां न केवल अपराध पर लगाम लगाया जा सकेगा, बल्कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के संतुलित विकास में भी मदद मिलेगी। इसलिए भले ही हरियाणा सरकार, उत्तरप्रदेश सरकार या राजस्थान सरकार ग्रेटर दिल्ली बनाने के लिए अपने विकसित शहर व जनपद देने को राजी न हों, लेकिन दिल्ली-एनसीआर वासियों के भावी हितों के मद्देनजर केंद्र सरकार को इसके लिए खुले दिल से विचार करना चाहिए। यह मुद्दा कोई कपोलकल्पित बात नहीं है, बल्कि जब तब चुनावों में उठता भी आया है। इस बार दिल्ली में भाजपा सरकार बनवाने के पीछे लोगों के जेहन में भी यह बात रही है। चूंकि मोदी हैं तो मुमकिन है, इसलिए ये वाला फॉर्मूला यहां भी लागू होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो दिल्ली की दो बड़ी समस्याओं- यमुना नदी प्रदूषण और वायु प्रदूषण का भी ठोस समाधान निकल पाएगा। यहां के उद्योगों के विस्तार के लिए भूमि और जनसंख्या की किल्लत भी महसूस नहीं होगी। एक सीजीएसटी और चार एसजीएसटी से भी उद्यमी बच जाएंगे। चूंकि दिल्ली को छोटा हिंदुस्तान करार दिया जाता है, इसलिए इसका दायरा भी थोड़ा बड़ा हो जाएगा। इससे विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक विकास में भी यहां मदद मिलेगी। यदि आप देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर नजर डालेंगे तो अधिकांश जगहों पर भाजपा और एनडीए की सरकार मिलेगी। इसलिए उनसे तालमेल बिठाकर भी ग्रेटर दिल्ली के सपने को साकार किया जा सकता है।वहीं, दिल्ली-एनसीआर के कूड़े-कचरों का भी सही समायोजन हो पाएगा। दिल्ली के तीनों कूड़े के पहाड़ों को 100-150 किलोमीटर दूर ले जाने में भी मदद मिलेगी।वाकई, दिल्ली-एनसीआर का भौगोलिक क्षेत्र जितना बड़ा है, यदि उसे ग्रेटर दिल्ली में सम्मिलित कर लिया जाए तो इस दिल्ली प्रदेश के विकास में आशातीत उन्नति होगी। ऐसा इसलिए कि अमूमन यहां के लोग एक दिन में दो-तीन-चार-पांच प्रदेशों का दौरा कारोबारी, राजनीतिक, समाजसेवा या व्यक्तिगत कारणों से करते हैं, इससे उन्हें सभी राज्यों को अलग-अलग टैक्स/टोल टैक्स आदि भी देना पड़ता है, जिससे यहां के उत्पाद महंगे हो जाते हैं।यदि ऐसा हुआ तो यहां के लोगों को रोजगार भी ज्यादा मिलेगा। ऐसा देखा जाता है कि एनसीआर के शहरों को सलीके से लूटने के लिए इनके इनके प्रदेश मुख्यालयों में गिरोह सक्रिय रहता है। लिहाजा ग्रेटर दिल्ली बनने से इस घटिया मानसिकता से भी मुक्ति मिलेगी। चूंकि आप और कांग्रेस से चुनावी प्रतिस्पर्धा में भाजपा ने कई फ्रीबीज की घोषणाएं की हैं, इसलिए उनको भी एक एक करके पूरा करवाने की जिम्मेदारी रेखा गुप्ता के कंधों पर होगी।दिल्ली में सड़कों का निर्माण, शिक्षा व जनस्वास्थ्य व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण, झुग्गी-झोपड़ियों का विकास, अवैध से वैध हुई कॉलोनियों में पार्क, सामुदायिक भवन, शौचालय, पेयजल आदि जनसुविधाओं की बहाली पर भी रेखा गुप्ता सरकार को तुरंत फोकस करना होगा, क्योंकि दिल्ली के मतदाता जागरूक बहुत हैं। चूंकि रेखा गुप्ता हरियाणा मूल की भाजपा नेत्री हैं, अग्रवाल वैश्य समाज से आती हैं, प्रगतिशील महिला हैं, आरएसएस-भाजपा के लोगों को साथ लेकर चलती आई हैं, मोदी-शाह के एजेंडे के प्रति ततपर रहती आई हैं, इसलिए नवनिर्वाचित विधायक होने के बावजूद पार्टी नेतृत्व ने उन्हें मौका दिया है। कहना न होगा कि उन्हें तीन बार निगम पार्षद बनने, डीयू छात्र संघ की अध्यक्ष रहने, एमसीडी मेयर का चुनाव लड़ने और पार्टी में विभिन्न पदों पर सक्रिय रहने का गौरव हासिल है, इसलिए लोगों को उम्मीद है कि वह उन्हें निराश नहीं करेंगी। दरअसल, दिल्ली के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में उन्होंने पार्टी के जितने बड़े-बड़े कद्दावर नेताओं को धराशायी किया है, उससे स्पष्ट है कि साधारण दिखती हुई भी वो असाधारण शख्सियत रखती हैं। इसलिए दिल्ली-एनसीआर के सपनों ग्रेटर दिल्ली को भी साकार कर सकती हैं, यदि वह ठान लें तो।- कमलेश पांडेयवरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

दिल्ली की किस्मत 'रेखा' से एनसीआर की अपेक्षाएं
दिल्ली की किस्मत 'रेखा' से एनसीआर की अपेक्षाएं

दिल्ली की किस्मत 'रेखा' से एनसीआर की अपेक्षाएं

The Odd Naari - लेखिका: सुमिता वर्मा, टीम नेटानागरी

दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में कई सामाजिक और आर्थिक बदलावों का साक्षी बना है। इसके बीच एक नया नाम 'रेखा' उभरता है, जिसमें एक सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक कहानी समाई हुई है। आज हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार 'रेखा' दिल्ली की किस्मत को नई दिशा दे सकती है और एनसीआर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकती है।

रेखा की पहचान: दिल्ली की नई समर्थता का प्रतीक

दिल्ली की एक आम लड़की जिसे 'रेखा' कहा जाता है, ने अपने जीवन के संघर्ष और प्रभावों के माध्यम से एक नई पहचान बनाई है। 'रेखा' अपने परिवार की चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ी है और उसने यह साबित किया है कि संघर्षों में ही सफलता का मार्ग छिपा होता है। यह न केवल दिल्ली की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है बल्कि एनसीआर की महिलाओं के लिए भी एक नया मोड़ प्रदान करता है।

आर्थिक बदलाव: विकास और अवसर

दिल्ली और एनसीआर का क्षेत्र अब तेजी से विकास कर रहा है। डिजिटल इंडिया की पहल, स्टार्टअप संस्कृति, और नए व्यापार मॉडल ने 'रेखा' जैसे कई लोगों को खुदरा और सेवा क्षेत्र में नई संभावनाएं दी हैं। यह न केवल दिल्ली में कार्यरत महिलाओं के लिए अवसर पैदा कर रहा है, बल्कि एनसीआर क्षेत्र में भी रोजगार के नए द्वार खोल रहा है।

सांस्कृतिक समृद्धि और सामुदायिक सहयोग

दिल्ली का सांस्कृतिक ताना-बाना भी 'रेखा' की कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ की विविधता और एकजुटता ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मेलों का आयोजन किया है, जिससे स्थानीय समुदाय को एक साथ लाया जा सके। इस तरह के आयोजनों से न केवल विशेष उत्सव मनाए जाते हैं बल्कि समुदाय में सहयोग की भावना भी प्रबल होती है।

समाज में बदलाव: महिला सशक्तीकरण का मार्ग

दिल्ली और एनसीआर में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अनेक कार्यक्रम और पहलें चल रही हैं। 'रेखा' जैसे किरदारो की कहानियाँ समाज में बदलाव लाने का काम कर रही हैं। ये न केवल रोजगार के अवसर पैदा कर रही हैं बल्कि महिलाओं में आत्मविश्वास भी प्रसारित कर रही हैं।

निष्कर्ष: भविष्य की ओर बढ़ते कदम

दिल्ली की 'रेखा' अब केवल एक नाम नहीं रह गई है, बल्कि यह एक प्रेरणा है। एनसीआर की अपेक्षाएं अब इस दिशा में बढ़ रही हैं कि वे 'रेखा' जैसे लोगों को प्रोत्साहित कर सकें। बदलाव की जरूरत है, और यह 'रेखा' की कहानी हमें दिखाती है कि कैसे एक साधारण लड़की ने अपने साहस और मेहनत से न केवल अपने जीवन को बदला बल्कि समाज को भी नई दिशा दी। हमें अपनी उम्मीदों को मजबूत करना होगा और आगे बढ़ना होगा।

नई संभावनाओं और अवसरों के साथ, यह जरूरी है कि हम एक दूसरे का सहयोग करें और मिलकर समाज को आगे बढ़ाएं।

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Keywords

Delhi, NCR, Rekha, women's empowerment, social change, economic growth, cultural diversity, community support, employment opportunities, success stories.