आखिर भारत का 'असली' दुश्मन कौन?
जब ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा दलील देते हैं कि भारत को चीन को अपना दुश्मन नहीं मानना चाहिए, तो सवाल पैदा होता है कि आखिर इंडिया गठबंधन के मुख्य घटक समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने चीन को भारत का दुश्मन नम्बर वन क्यों करार दिया था? दरअसल, 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर 2020 के गलवान घाटी हिंसक झड़प तक, क्रमशः उसके पहले या इसके बाद भारत को लेकर चीन के जो अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार दिखते आए हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि चीन भारत का मजबूत दुश्मन है। नेहरू-मोदी की मित्रता की भावना को उसने कुचला है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से पता चलता है कि भले ही ईसाईयत और इस्लाम से सम्भाव्य मुकाबले के लिए हिंदुत्व (भारत) को बुद्धत्व (चीन) की जरूरत पड़ेगी, लेकिन इसके लिए दोनों देशों को समझदारी भरी दूरदर्शिता दिखानी पड़ेगी, अन्यथा वैश्विक परिस्थितियों की धर्मांध चक्की में दोनों देश पिसे जाएंगे और युगों-युगों तक पछताएंगे।इसलिए स्वाभाविक सवाल है कि भारत का असली दुश्मन कौन है? तो जवाब होगा कि भारत के कई दुश्मन हैं और इसके कारण भी अलग-अलग हैं। जहां तक राजनीतिक नजरिए और भौगोलिक सीमाओं का सवाल है तो चीन हमारा दुश्मन नम्बर वन है। वहीं, पाकिस्तान दुश्मन नम्बर 2, बंगलादेश दुश्मन नम्बर 3, नेपाल दुश्मन नम्बर 4, श्रीलंका दुश्मन नम्बर 5, मालदीव दुश्मन नम्बर 6, म्यामांर दुश्मन नम्बर 7, अफगानिस्तान दुश्मन नम्बर 8 और भूटान दुश्मन नम्बर 9 हैं। इन सबकी दांवपेंच भरी नीतियों से भारत किसी न किसी रूप में परेशान रहता है, क्योंकि अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस और पश्चिमी देशों के शह पर ये भारत विरोधी नीतियों पर बहुधा अमल करते आए हैं। इसे भी पढ़ें: 2012 के MoU की कहानी, 183 करोड़ अमेरिका से भारत आए, मोदी से मिलने के बाद मस्क ने क्यों ले लिया बड़ा एक्शनवहीं, सांस्कृतिक नजरिए से हिन्दू विरोधी होने के कारण कट्टर इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध आदि के आंतरिक गठजोड़ भी भारत के लिए आस्तीन के सांप जैसे हैं। क्योंकि पाकिस्तान, तुर्किये, ईरान आदि की शह पर कभी मुस्लिम देशों के संघ द्वारा, तो कभी ईसाई देशों के संघ द्वारा और इनके धर्मांध कारोबारियों द्वारा भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचे जाते हैं। साथ ही जैसे भारतीय मूल वाले सिख धर्म से जुड़े विदेशी लोगों को कनाडा-यूएसए द्वारा, दलित बौद्धों को चीन द्वारा भड़काया जाता है, अलगाववाद को बढ़वाया जाता है, वह भी भारत के भविष्य से दुश्मनी जैसा ही है। क्योंकि इनको शह देने वाले मुल्क भारत के हिंदुओं की जातीय और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काकर न केवल धर्मांतरण करवाते हैं, बल्कि गृह युद्ध के बीज भी यत्र-तत्र-सर्वत्र बुनते रहते हैं। दलित-ओबीसी साहित्य, साम्प्रदायिक इतिहास को शह आदि इनके सांस्कृतिक औजार बन चुके हैं।वहीं, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में गुटनिरपेक्षता, सत्य व अहिंसा से अभिप्रेरित वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया जैसी उदात्त सोच से ग्लोबल साउथ मतलब तीसरी दुनिया के देशों के हितों की वकालत के चलते भी पश्चिमी राष्ट्र कनाडा, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली आदि भारत से कभी प्रत्यक्ष और कभी परोक्ष शत्रुता रखते आए हैं।हालांकि, कड़वा सच यह है कि भारत के असली शत्रु हमारे मूढ़ राजनेता हैं, जो 'महाभारत' काल से अभिप्रेरित सार्थक नीतियों को प्रश्रय देने तथा राष्ट्रवाद-हिंदूवाद को संरक्षित करने के बजाय पश्चिमी लोकतंत्र प्रेरित उस क्षुद्र धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते आए हैं जो एक अंतर्राष्ट्रीय नैतिक महामारी समझी जाती है। चूंकि इसके सिद्धांत और व्यवहार में काफी अंतर दुनिया के देशों में पाया जाता है, इसलिए एशियाई संदर्भ में यह धर्मनिरपेक्षता भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति को कुचलने का एक बौद्धिक हथियार समझी जाती है। इसके अलावा दलित-महादलित, पिछड़ा-अत्यंत पिछड़ा की जातीय अवधारणा, आदिवासी और आर्य के अंतर्राष्ट्रीय विभेद, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के धार्मिक विभेद, भाषाई क्षेत्रवाद और एक समान कानून बनाने के बजाय आभिजात्य वर्गों के हितों के मुताबिक कानून निर्माण और इनको लेकर बहुमत-अल्पमत की आत्मघाती राजनीति ऐसे संवैधानिक सवाल हैं जिसका विवेकसम्मत समाधान हमारे राजनेताओं को देना चाहिए लेकिन वह पीछे 75 साल में वह इस मामले में विफल रहे हैं। इस नजरिए से संविधान संरक्षण को लेकर अविवेकी न्यायिक हठ और कुतर्क भी एक बड़ी वजह है जिससे धर्मनिरपेक्षता जैसी टुच्ची सोच लाभान्वित है। वहीं जातीयता आदि विधि व्यवस्था के सवाल पर प्रशासनिक पूर्वाग्रह भी एक राजनैतिक त्रासदी ही है। इसलिए भारत के इस असली शत्रु को यदि हमलोग पहचान लिए, वैदिक संस्कृति के मुताबिक यहां के जनमानस को ढाल लिए, राजनीतिक अश्वमेध यज्ञ की पुनः शुरुआत कर लिए, तो भारत के जितने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष शत्रु हैं, सबके दांत खट्टे किए जा सकते हैं। निःसन्देह, बदलते विश्व की यही डिमांड भी है, जिसको लेकर भारत के लोगों के बीच सांस्कृतिक व राजनीतिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इससे अखण्ड भारत यानी महाभारत के सपनों को पुनः हासिल करना आसान हो जाएगा। हमारा देश विश्व गुरु और सोने की चिड़िया बन जाएगा।अब बात पुनः सैम पित्रोदा के बयानों की। ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने भले ही एक इंटरव्यू में कहा कि चीन से खतरे को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इसलिए भारत को चीन को अपना दुश्मन मानना बंद कर देना चाहिए। ऐसा करके उन्होंने भाजपा और सपा दोनों पर निशाना साध दिया। सपा तो मित्रतापूर्ण सम्बन्धों के चलते चुप रही लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उनके बयान आलोचना की है। लिहाजा, पित्रोदा के बयान के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है। इस बीच पार्टी ने उनके बयान से खुद को अलग कर लिया है। इस संबंध में कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "सैम पित्रोदा के चीन पर व्यक्त किए गए कथित विचार कांग्रेस के विचार नहीं हैं।" सवाल है कि च

आखिर भारत का 'असली' दुश्मन कौन?
The Odd Naari
लेखन: राधिका शर्मा, टीम नेटानागरी
परिचय
भारत, एक प्राचीन सभ्यता और समृद्ध संस्कृति का गहना, जिसके अनेक पड़ोसी देश हैं। लेकिन समय के साथ, यह सवाल उठता है कि भारत का असली दुश्मन कौन है? क्या यह बाहरी ताकतें हैं, या फिर आंतरिक समस्याएँ? इस लेख में हम इस सवाल का गहराई से विश्लेषण करेंगे।
बाहरी दुश्मन: पाकिस्तान या चीन?
भारत के सामने जो बाहरी चुनौतियाँ आती हैं, उनमें सबसे प्रमुख नाम पाकिस्तान और चीन का है। पाकिस्तान के साथ लम्बे समय तक चले विवाद और संघर्ष ने एक सुरक्षा चुनौती पैदा की है। वहीं, चीन का बढ़ता प्रभाव और सीमा पर तनाव ने भारतीय सुरक्षा को और भी जटिल बना दिया है। ये देश न केवल सैन्य शक्ति में, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी भारत के लिए चुनौती के रूप में खड़े हैं।
आंतरिक दुश्मन: क्या हम खुद ही अपने दुश्मन हैं?
जब हम दुश्मनों की बात करते हैं, तो क्या कभी-कभी हम अपने अंदर के दुश्मनों को भूल जाते हैं? भ्रष्टाचार, जातिवाद, और धार्मिक भेदभाव जैसी आंतरिक समस्याएँ भारत की प्रगति में मुख्य बाधाएँ हैं। ये मुद्दे न केवल हमारे समाज को कमजोर करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी खतरे में डालते हैं।
भारत की सुरक्षा तंत्र की जिम्मेदारी
भारत की सुरक्षा न सिर्फ बाहरी दुश्मनों से बल्कि आंतरिक समस्याओं से भी लड़ने की ज़िम्मेदारी है। सरकार और सुरक्षा बलों को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतियाँ बनानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, जनता का सहयोग और जागरूकता भी बेहद आवश्यक है।
किस प्रकार का दुश्मन अधिक खतरनाक है?
ये समझना आवश्यक है कि बाहरी दुश्मन और आंतरिक दुश्मन, दोनों हमें प्रभावित कर सकते हैं। बाहरी दुश्मन अक्सर स्पष्ट होते हैं, जबकि आंतरिक दुश्मन हमारी मानसिकता और समाज में धीमी तरीके से कार्य करते हैं। इस विपरीतता को समझते हुए, हमें समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत का असली दुश्मन केवल युद्ध की कला में नहीं है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी इसे समझना आवश्यक है। हमें मिलकर अपने देश की सुरक्षा को अटूट रखने के लिए एकजुट होना पड़ेगा। यह लक्ष्य तब ही संभव होगा जब हम अपने आंतरिक मुद्दों को सुलझाएँगे और बाहरी चुनौतियों का सामना एकजुट होकर करेंगे।
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