धनाढ्यों के विदेश पलायन पर प्रदर्शन क्यों नहीं?
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद सौ से अधिक अवैध भारतीयों के पहले बैच को अपराधियों की तरह अपमानजनक तरीके से भारत भेजा गया है। सितम्बर- 2024 तक सालभर में अवैध रूप से अमेरिका जाने की कोशिश में 90 हजार से अधिक लोग पकडे़ गये थे। ये लोग अपनी जीवनभर की कमाई एवं पूंजी को दांव पर लगाकर अमेरिका जैसे देशों में जाने के वैध एवं अवैध तरीके अपनाते हैं, इनका इस तरह देश छोड़कर जाने का कारण समझ में आता है, लेकिन धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का बढ़ता सिलसिला समझ से परे हैं। ऐसे क्या कारण है कि लोगों को देश की बजाय विदेश की धरती रहने, जीने, व्यापार करने, शिक्षा एवं रोजगार के लिये अधिक सुविधाजनक लगती है, नये बनते भारत के लिये यह चिन्तन-मंथन का कारण बनना चाहिए। संसद परिसर में अमेरिका से लौटे अवैध भारतीयों के स्वदेश लौटने की विडम्बनापूर्ण एवं विसंगतिपूर्ण स्थितियों को लेकर व्यापक प्रदर्शन हुए, लेकिन क्या इन बुद्धिमान विपक्षी दलों के सांसदों को कभी धनाढ्यों के भारत छोड़कर जाने एवं इस तरह भारत का अपमान करने की स्थितियों पर भी प्रदर्शन नहीं करना चाहिए? ‘हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट’ के अनुसार पिछले दो साल से ऐसे लोगों की संख्या औसतन 5,000 रही है। इन अमीरों को आप कभी शिकायत करते नहीं सुनेंगे। ये इतने स्मार्ट हैं कि बिना हौ-हल्ला किये विदेश में जाकर बस जाते हैं। तथ्य यह है कि इनके पास ‘सरप्लस’ है, और ये भारत में निवेश करने की जगह विदेश का रुख कर रहे हैं। इनमें से कई इसलिए देश छोड़ रहे हैं क्योंकि विदेश में सुरक्षा है और गुमनाम रहने की सुविधा है। इनसे भी जो ज्यादा अमीर हैं, ऐसे करोड़पति, अरबपति और खासकर डॉलर अरबपति कमाई तो भारत में करते हैं और जीते अमेरिका जैसे देशों में है। ‘फोर्ब्स’ के आंकड़ों के अनुसार ये केवल 200 हैं। करोड़पति अगर चुपचाप देश से जा रहे हैं, तो अरबपति विदेश की धरती से तेज आवाज में सरकार की तारीफ कर रहे हैं और इस तरह के मंत्रों का जाप कर रहे हैं कि ‘हमारी अर्थव्यवस्था जल्द ही सबसे बड़ी तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है’, कि यह ‘दुनिया में सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करा रही विशाल अर्थव्यवस्था है’। प्रश्न है कि इन समृद्ध लोगों का देश की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने में क्या योगदान है? उनका भारत से पलायन क्यों हो रहा है? सरकार इन पर क्या कदम उठा रही है? विपक्षी दल क्यों मौन धारण किये हुए है? इसे भी पढ़ें: अवैध प्रवासियों की बेहूदा तरीके से वापसी जुड़े सवालक्या कारण है कि जन्मभूमि को जननी समझने वाला भारतवासी आज अपनी समृद्धि को भोगने या अपनी प्रतिभा का विदेश की चकाचौंध भरी धरती पर उपयोग करने, उन्हें लाभ पहुंचाने विदेश की ओर भागता है और वहां जाकर सम्पन्न एवं भोगवादी जीवन जीने लगता है? क्या कारण है कि शस्य श्यामला भारत भूमि पर अपनी समृद्धि से विकास के नये क्षितिज उद्घाटित करने या अपनी प्रतिभा से देश को लाभान्वित करने की बजाय विदेश की धरती को लाभ पहुंचाते हैं। बड़ा सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्या कमी है हमारे यहां? यह बात सही है कि गांव से कस्बे, कस्बे से शहर और शहरों से महानगरों में जाकर बसने की मानवीय प्रवृत्ति होती है। इसे विकास से भी जोड़ा जा सकता है। लेकिन जब यह दौड़ बहुत ज्यादा होने लगे और लोग अपनी जड़ें ही छोड़ने को आकुल दिखें तो सोचना जरूरी हो जाता है। मुम्बई, दिल्ली, बेंगलूरु जैसे महानगर दुनिया के दूसरे महानगरों को टक्कर देने वाले हैं। फिर भी अगर ये भारतीय विदेशी महानगरों को ही चुन रहे हैं, तो तमाम पहलुओं पर विचार भी करना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है कि यह दौड़ भारतीय महानगरों से विदेशी महानगरों की तरफ ही है। विदेश में बसने की यह दौड ऐसे समय देखने को मिल रही है जब देश में विकास के नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, जीवनशैली उन्नत एवं सुविधापूर्ण होती जा रही है, व्यापार एवं व्यवसाय की संभावनाओं को पंख लग रहे हैं। भारत दुनिया में साख एवं धाक जमा रहा है। दुनिया की नजरें भारत पर लगी है और यहां अनंत संभावनाओं को देखते हुए विदेशी भारत आ रहे हैं। फिर भारतीय विदेशों की ओर क्यों जा रहे हैं।सशक्त एवं विकसित भारत निर्मित करने, उसे दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने और अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर निर्मित करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। मोदी सरकार ने देश के आर्थिक भविष्य को सुधारने पर ध्यान दिया, उनके अमृत काल का विजन तकनीक संचालित और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। मोदी सरकार की नियोजित एवं दूरगामी सोच का ही परिणाम है रिजर्व बैंक के पास सोने के भंडार में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में आर्थिक गतिविधियां नये शिखरों पर सवार है, क्योंकि भारत में डीमैट खाते 19 करोड़ के पार पहुंच चुके हैं। देश के कुल डीमैट खाते अब अन्य देशों की तुलना में नौवें स्थान पर हैं, जिसका मतलब है डीमैट खाते रूस, जापान, इथियोपिया, मैक्सिको जैसे देशों की आबादी से अधिक और बांग्लादेश की आबादी के करीब है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें 1,40,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप और हर 20 दिन में एक यूनिकॉर्न उभरता है। यूनिकॉर्न उन स्टार्टअप को कहा जाता है, जिनका मूल्यांकन एक अरब डॉलर हो जाता है। इन उजले आंकड़ों में जहां मोदी के विजन ‘हर हाथ को काम’ का संकल्प साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से उजागर हो रहा है। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर भारत ने अनेक क्षेत्रों में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। नयी आर्थिक उपलब्धियों एवं फिजाओं के बीच धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का सिलसिला चिन्ताजनक है। पलायनवादी सोच के कगार पर खड़े राष्ट्र को बचाने के लिए राजनीतिज्ञों एवं नीति नियामकों को अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागना होगा। तभी समृद्ध हो या प्रतिभाशाली व्यक

धनाढ्यों के विदेश पलायन पर प्रदर्शन क्यों नहीं?
The Odd Naari - लेखिका: स्नेहा शर्मा, टीम नीतानागरी
परिचय
भारत में धनाढ्यों का विदेश पलायन एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। यह प्रवृत्ति न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज में भी अविश्वास की भावना पैदा करती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस मुद्दे पर कहीं कोई जोरदार प्रदर्शन देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिरकार धनाढ्यों के इस पलायन के खिलाफ प्रदर्शन करने की आवश्यकता क्यों महसूस नहीं की जा रही है?
धनाढियों का पलायन: कारण और प्रभाव
हाल के वर्षों में, कई धनकुबेरों ने विदेशों में अपने आवेदन पेश किए हैं। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। पहली बात, जिन देशों में ये लोग जा रहे हैं, वहां की कर नीतियाँ, निवेश सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं। दूसरी बात, देश में बढ़ती हुई राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक चुनौतियों ने भी धनाढ्यों को विदेश जाने के लिए मजबूर किया है।
समाज का मौन: प्रदर्शन नहीं क्यों?
जब विदशी पलायन के इस मुद्दे की बात आती है, तो हमारे समाज में कई सवाल उठते हैं। अधिकांश लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा मानते हैं और इसलिए विरोध नहीं करते। इसके साथ ही, यह भी सच है कि धनाढ्यों की आवाज़ें अक्सर प्रभावी होती हैं और इसका नकारात्मक पहलू कम दिखता है। सामाजिक मीडिया प्लेटफार्म और चर्चाएं इस पर सीमित रह गई हैं।
मीडिया की भूमिका
इस मुद्दे पर मीडिया की भी जिम्मेदारी है। पत्रकारिता में सामाजिक मुद्दों की ओर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है, ताकि जन जागरूकता बढ़ सके। अगर समाचार पत्रों और चैनलों पर इस विषय को उचित रूप से उठाया जाए, तो लोगों में जागरूकता बढ़ सकती है।
समाप्ति
धनाढ्यों के विदेश पलायन पर न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखना महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सामाजिक मुद्दा भी है। इसके लिए जन जागरूकता और संवाद की आवश्यकता है। एक सक्षम समाज ही सुनिश्चित कर सकता है कि किसी भी वर्ग के लोग अपने देश को छोड़ने के लिए मजबूर न हों। अधिक अपडेट के लिए, विजिट करें theoddnaari.com