कुदरत का कहर: पहाड़ों में बढ़ते लालच का खामियाजा
धराली के उपजाऊ खेतों में मौत की इबारत किसने लिखी? व्योमेश चन्द्र जुगरान भागो-भागो… की आवाजें, सड़क और घरों से निकल जान बचाने को भागते लोग और तूफानी गति से घरों और होटलों को तबाह करता एक राक्षसी गुबार! ऐसे दृश्य हम-आप अमूमन हॉलीवुड की हॉरर फिल्मों में देखते आए हैं। मगर मंगलवार दोपहर करीब […] The post पहाड़ों पर कुदरत का कहर हमारे बढ़ते लालच की देन first appeared on Apka Akhbar.

कुदरत का कहर: पहाड़ों में बढ़ते लालच का खामियाजा
कम शब्दों में कहें तो, धराली में कुदरत ने एक ऐसा कहर बरपाया, जिसने न केवल स्थानीय जीवन को प्रभावित किया बल्कि पूरे देश को एक गंभीर संदेश देने का काम किया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि हमारे बढ़ते लालच और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का परिणाम विनाशकारी हो सकता है।
धराली के उपजाऊ खेतों में मौत की इबारत किसने लिखी? व्योमेश चन्द्र जुगरान ने देखा कि कैसे मंगलवार दोपहर को भागो-भागो की आवाजें शोशित वातावरण में गूंजने लगीं, जहां लोग अपने घरों और होटलों से जान बचाने के लिए भाग रहे थे। एक विशाल गुबार ने तूफानी गति से बर्बादी का तांडव किया, जो किसी हॉलीवुड की हॉरर फिल्म से कम नहीं था।
कुदरत के कहर का दृश्य
जलवायु परिवर्तन की यह घटना, जो उचित पर्यावरणीय नीतियों और मानव गतिविधियों के फलस्वरूप आई, पहाड़ों के निवासियों के लिए एक जीवनदायिनी संकट बन गई है। इससे यह साफ है कि जब तक हम अपनी प्राथमिकताओं को नहीं बदलते, तब तक कुदरत की पूरी शक्ति हमें इसका खामियाजा देकर दिखाएगी। यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि पूरे मानवता के लिए भी एक गंभीर प्रश्न लेकर आई है।
मानवीय गतिविधियों का प्रभाव
विकास और आर्थिक लाभ के नाम पर, हमने इस धरती के संसाधनों का जिस तरह से दोहन किया है, वह हम सभी के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। पहाड़ों में Tourism और Construction की बढ़ती गतिविधियाँ, प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रही हैं, और यह स्थिति इस आपदा का केंद्र बन गई। इस विनाशकारी घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए पर्यावरण का अंधाधुंध शोषण कर रहे हैं?
स्थानीय निवासियों की चिंताएँ
स्थानीय निवासी इस दुर्घटना के बाद बेहद भयभीत हैं। उनके खेतों का पानी, जो एक समय उनके जीवन का आधार था, अब उनके लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। यह विमर्श इस बार केवल स्वार्थ का नहीं, बल्कि रोजगार और भविष्य का है। यह घटना कई प्रश्नों को जन्म देती है कि क्या हम अपनी आवश्यकताओं के लिए प्रकृति का बेजा फायदा उठा रहे हैं? क्या हमें अपनी जरूरतों के सामने पर्यावरण को स्थायी जीवन का हिस्सा मानने की जरुरत नहीं है?
निष्कर्ष
कुदरत का यह कहर एक गूंजती हुई चेतावनी है कि हमें अपने लालच को नियंत्रित करने की आवश्यकता है ताकि हम प्राकृतिक संतुलन को बनाए रख सकें। यदि हम अपनी गतिविधियों के प्रति सजग नहीं हुए, तो परिणाम भयानक हो सकते हैं। यह समय है कि हम अपनी सोच और दृष्टिकोण में बदलाव लाएं ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकें।
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लेखक: दीप्ति वर्मा, प्रिया रावत, टीम – The Odd Naari