हिंदी का विरोध नहीं, बल्कि थोपे जाने का है: उद्धव ठाकरे की सख्त टिप्पणी

शिवसेना (उबाठा) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी हिंदी का विरोध नहीं करती, बल्कि इसे ‘‘थोपे जाने’’ के खिलाफ है। दक्षिण मुंबई में एक विरोध-प्रदर्शन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए ठाकरे ने यह बात कही। इस विरोध-प्रदर्शन के दौरान 17 जून के उस सरकारी आदेश की प्रतियां जलाई गईं, जिसमें स्कूलों के लिए तीन नीति संबंधी निर्देश जारी किया गया था। शिवसेना (उबाठा) ने पूरे राज्य में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए। ठाकरे ने कहा, ‘‘हमने सरकारी आदेश की प्रतियां जलाई हैं, जिसका मतलब है कि हम इसे स्वीकार नहीं करते। हम हिंदी का विरोध नहीं करते, लेकिन हम इसे थोपे जाने की अनुमति नहीं देंगे। मराठी के साथ अन्याय हुआ है। सवाल यह है कि आप छात्रों पर कितना दबाव डालने जा रहे हैं।’’ पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर पांच जुलाई को होने वाला ‘मोर्चा’ भव्य होगा, जो उनकी पार्टी और राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाएगा। सरकार ने 17 जून को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को हिंदी ‘‘सामान्य रूप से’’ तीसरी के रूप में पढ़ाई जाएगी।

हिंदी का विरोध नहीं, बल्कि थोपे जाने का है: उद्धव ठाकरे की सख्त टिप्पणी
हम हिंदी का विरोध नहीं करते, सिर्फ उसे थोपे जाने के खिलाफ हैं : उद्धव ठाकरे

हिंदी का विरोध नहीं, बल्कि थोपे जाने का है: उद्धव ठाकरे की सख्त टिप्पणी

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कम शब्दों में कहें तो, उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी हिंदी का विरोध नहीं करती, बल्कि उसे थोपे जाने के खिलाफ है। दक्षिण मुंबई में एक विरोध-प्रदर्शन के दौरान यह बात कही गई।

शिवसेना (उबाठा) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने रविवार को एक विरोध-प्रदर्शन के बाद संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी पार्टी हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से लागू करने का विरोध करती है। पार्टी ने राज्यभर में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं, जिसमें 17 जून के एक सरकारी आदेश की प्रतियां जलाई गई थीं। यह आदेश स्कूलों में हिंदी को तीसरे विषय के रूप में पढ़ाने के संबंध में था।

विरोध-प्रदर्शन का ऐलान और उसके पीछे की वजहें

ठाकरे ने कहा कि सरकारी आदेश की प्रतियां जलाने का अर्थ है कि उनकी पार्टी इसे स्वीकार नहीं करती। उन्होंने कहा, "हम हिंदी का विरोध नहीं करते, लेकिन हम इसे थोपे जाने की अनुमति नहीं देंगे। मराठी के साथ अन्याय हुआ है। सवाल यह है कि आप छात्रों पर कितना दबाव डालने जा रहे हैं?" इससे स्पष्ट होता है कि ठाकरे भाषा एवं शिक्षा को लेकर अपनी पार्टी की चिंताओं को प्रकट करने का प्रयास कर रहे हैं।

समर्थकों की प्रतिक्रिया और आगे की योजनाएँ

ठाकरे के बयानों पर उनकी पार्टी के समर्थकों ने भी जोर दिया कि ऐसे प्रदर्शनों का सही निर्णय लेना आवश्यक है। उनका तर्क है कि यदि हिंदी जैसी महत्वपूर्ण विषयों पर विचार नहीं किया गया, तो यह केवल राजनीतिक खेल बनकर रह जाएगा। उन्होंने 5 जुलाई को जुटने वाले 'मोर्चा' के भव्य होने की बात कही, जिसमें उनकी पार्टी और राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) दोनों शामिल होंगी।

सरकार के आदेश का सामाजिक प्रभाव

सरकार के द्वारा जारी 17 जून के आदेश के अनुसार, मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को हिंदी को "सामान्य रूप से" तीसरे विषय के रूप में पढ़ाई जाएगी। ठाकरे इस निर्णय को छात्रों के हित में सकारात्मक नहीं मानते। उनका मानना है कि भाषा को अनिवार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे स्वेच्छा से अपनाया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

उद्धव ठाकरे का यह कहना कि वे हिंदी का विरोध नहीं करते, बल्कि इसे थोपे जाने के खिलाफ हैं, एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे को उजागर करता है। यह उनका प्रयास स्पष्ट करता है कि उनकी पार्टी मराठी भाषा और संस्कृति के संरक्षण को लेकर अत्यधिक सजग है। आने वाले दिनों में सत्ता और विपक्ष इस मुद्दे के समाधान के लिए कौन सी रणनीतियाँ अपनाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। हम सभी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रहना आवश्यक है।

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आपका विश्वासपात्र, टीम द ओड नारी
मुख्यातिथि: सविता शर्मा

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