"हल्द्वानी विजीलेंस: न्‍याय नहीं, नाटक कर रही है" — हाईकोर्ट ने बचाई प्रतिष्ठा, लेकिन सवाल है कि कब तक झूठ चलता रहेगा?

उत्तराखंड हाईकोर्ट में चल रही संति भंडारी केस की सुनवाई अब केवल एक जमानत याचिका नहीं रही, बल्कि विजीलेंस सेक्टर हल्द्वानी की सड़ चुकी व्यवस्था, झूठे सबूतों और सत्ता के नशे में चूर अफ़सरशाही के खिलाफ एक बड़ा आईना बन गई है।

"हल्द्वानी विजीलेंस: न्‍याय नहीं, नाटक कर रही है" — हाईकोर्ट ने बचाई प्रतिष्ठा, लेकिन सवाल है कि कब तक झूठ चलता रहेगा?
"हल्द्वानी विजीलेंस: न्‍याय नहीं, नाटक कर रही है" — हाईकोर्ट ने बचाई प्रतिष्ठा, लेकिन सवाल है कि कब तक झूठ चलता रहेगा?

विशेष रिपोर्ट | theoddnaari.com

उत्तराखंड हाईकोर्ट में चल रही संति भंडारी केस की सुनवाई अब केवल एक जमानत याचिका नहीं रही, बल्कि विजीलेंस सेक्टर हल्द्वानी की सड़ चुकी व्यवस्था, झूठे सबूतों और सत्ता के नशे में चूर अफ़सरशाही के खिलाफ एक बड़ा आईना बन गई है। यह मामला न केवल जांच प्रक्रिया की विफलता का उदाहरण है, बल्कि इसने अदालत को मजबूर कर दिया कि वह स्वयं पूछे — "क्या हम जांच के नाम पर निर्दोषों की ज़िंदगियाँ बर्बाद करने की अनुमति दे सकते हैं?"

हाईकोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने सुनवाई के दौरान वह सवाल उठाए, जो अक्सर जनता के मन में रहते हैं, लेकिन कोई पूछने की हिम्मत नहीं करता। न्यायालय ने सीधे शब्दों में कहा —

"अगर किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ बिना ठोस सबूत और जांच के कार्रवाई होती है, तो उनके परिवार, बच्चों और सामाजिक प्रतिष्ठा पर क्या बीतेगी?"
यह वाक्य अकेले इस बात का प्रमाण है कि हमारी न्यायपालिका आज भी जीवित है — सिर्फ कानून नहीं, बल्कि संवेदनाओं के साथ।

लेकिन विजीलेंस सेक्टर हल्द्वानी तो शायद अब किसी विधिक संस्था की तरह नहीं, बल्कि “मीडिया सर्कस, चरित्र हनन मण्डली और अफ़सराना अहंकार की प्रयोगशाला” बन चुकी है। एक के बाद एक Trap में वीडियोग्राफी नहीं, FSL रिपोर्ट लंबित, गवाहों की कमी, और कोर्ट को झूठे हलफनामे देना — ये सब न केवल SOP का उल्लंघन है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्था की हत्या है।

IO विनोद यादव और Trap Leader ललिता पांडे — ये वही अधिकारी हैं जिन्होंने Ashok Kumar Mishra केस में भी झूठा हलफनामा दिया था कि Trap की वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है। जब कोर्ट ने समन भेजा, तो कुछ भी पेश नहीं किया जा सका। अब वही कहानी सन्ति भंडारी केस में दोहराई जा रही है। बार-बार एक ही घिसी-पिटी स्क्रिप्ट। कोई नया झूठ नहीं गढ़ पा रहे, तो पुराने झूठों को ही दोहरा रहे हैं।

Ashok Kumar Mishra, एक बेहद ईमानदार अधिकारी, जिन्हें Supreme Court ने merit पर, तथ्यों के आधार पर जमानत दी, क्योंकि उनके खिलाफ न कोई recovery, न कोई demand सिद्ध हुई थी। Mishra के केस में trap के तथ्यों को जब SC ने देखा, तो साफ हो गया कि पूरा मामला पूर्व नियोजित और दुर्भावनापूर्ण था।

उनके complainant Chaudhary Sudesh Pal Singh का इतिहास तो खुद ही बोलता है —

  • कई दीवानी व आपराधिक मुकदमे लंबित,

  • धारा 138 NI Act में सजा,

  • Excise विभाग से काली सूची (Blacklist),

  • और न्यायालय द्वारा WPMS/2588/2024 को खारिज किया गया

अब ऐसे व्यक्ति की शिकायत पर trap कराना और उसमें ईमानदार अधिकारी को फँसाना — यह सीधा-सीधा गंदी साजिश, नौकरशाही की हत्या और विधिक व्यवस्था की खिल्ली उड़ाना है।

विजीलेंस हल्द्वानी अब “Anti-Corruption” नहीं, बल्कि Character Assassination Cell बन चुकी है। SOP का पालन इनसे नहीं होता, लेकिन अखबारों में रेड की खबरें छपवाकर पहले ही आरोपी को अपराधी घोषित कर देते हैं। क्या यही कानून है? क्या यही संविधान है?

“Presumption of Innocence” अब सिर्फ किताबों में बचा है — हल्द्वानी विजीलेंस के लिए तो शायद संविधान से बड़ा है अखबार का फ्रंट पेज।

कोर्ट ने भले ही IO के "Sorry" को रिकॉर्ड नहीं किया, लेकिन सत्य कभी छुपता नहीं। अदालत का वो मौन क्षण ही सच्चाई का सबसे बड़ा प्रमाण है — कि कुछ गलत है, बहुत गलत।

theoddnaari.com की दो टूक माँग:

  1. Vigilance Sector Haldwani की संपूर्ण कार्यप्रणाली पर स्वतंत्र न्यायिक जांच हो।

  2. IO विनोद यादव और Trap Leader ललिता पांडे के खिलाफ फौजदारी कार्रवाई हो — IPC 191, 193 के तहत।

  3. ट्रायल से पूर्व मीडिया प्रचार पर कड़ा प्रतिबंध लगे।

  4. संविधान की आत्मा — "हर व्यक्ति निर्दोष है जब तक दोष सिद्ध न हो" — की रक्षा हो।

विजीलेंस हल्द्वानी अब भ्रष्टाचार से लड़ने वाली संस्था नहीं रही। वह खुद भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बैठी न्यायिक आतंकवाद की एजेंसी बन चुकी है।
और जब सिस्टम में संक्रमण बढ़ जाए, तो कलम को तलवार बनाना ही धर्म है।

theoddnaari.com इस धर्मयुद्ध में सच्चाई के साथ खड़ा है — क्योंकि झूठ के खिलाफ एक आवाज़, कई ज़िंदगियों को बचा सकती है।