संघ-भाजपा में तालमेल से जुड़े सुखद संकेत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 25 साल बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय के अंगने में पहुंचकर संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) के स्मारक स्मृति मंदिर में श्रद्धांजलि दी, जिससे संघ एवं भाजपा के बीच एक नई तरह की ऊर्जामयी सोच एवं समझ विकसित हुई है। एक नई प्राणवान ऊर्जा का सूरज उगा है, नये संकल्पों को पंख लगे हैं। संघ के सौ वर्ष पूरे करने के ऐतिहासिक अवसर पर मोदी ने सही कहा कि संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है, जो निरंतर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 34 मिनट की संबोधन में देश के इतिहास, भक्ति आंदोलन, इसमें संतों की भूमिका, संघ की निःस्वार्थ कार्य प्रणाली, देश के विकास, युवाओं में धर्म-संस्कृति, स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, शिक्षा, भाषा और प्रयागराज महाकुंभ की चर्चा करते हुए जहां नये बन रहे भारत की बानगी प्रस्तुत की, वही संघ की उपयोगिता एवं महत्व को चार-चांद लगाये। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की संघ के मुख्यालय की इस पहली यात्रा के गहरे निहितार्थ भी हैं तो दूरगामी परिदृश्य भी है। जो इस बात का संकेत है कि पिछले आम चुनाव के दौरान संघ व भाजपा के रिश्तों में जिस खटास को अनुभव किया गया था, वह संवाद, समझ, सकारात्मक सोच व संपर्क से दूर कर ली गई है। जो इस बात का भी संकेत है कि आने वाले वक्त में भाजपा व सरकार के अहम फैसलों में संघ की भूमिका बढ़ेगी, जिससे देश हिन्दू राष्ट्र के रूप में सशक्त होते हुए विश्व गुरु बनने के अपने संकल्प को पूरा कर सकेगा। वसुधैव कुटुम्बकम के भारत के उद्घोष को अधिक सार्थक करते हुए दुनिया के लिये एक रोशनी बनेगा। इसे भी पढ़ें: RSS मुख्यालय के साथ ही दीक्षाभूमि का दौरा कर मोदी ने गजब का राजनीतिक संतुलन साधा हैयह सर्वविदित है कि मोदी भी संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। साथ ही वे संघ की रीति-नीतियों से भली-भांति परिचित हैं। लेकिन पिछले आम चुनाव के दौरान भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण एवं अहंकारी बयानों से भाजपा का कद संघ से बड़ा बताने की कोशिशें हुई थी, जिसके चलते संघ व भाजपा के रिश्तों में कुछ कसक एवं खटास देखी गई। जिसका असर लोकसभा चुनाव में चार सौ पार के लक्ष्य पर पड़ा, उसके मूल में संघ कार्यकर्ताओं की उदासीनता रही है। बाद में दोनों के रिश्ते सामान्य होने के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ एवं दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जो आशातीत सफलता हाथ लगी, कहा जा रहा था कि उसमें संघ कार्यकर्ताओं का समर्पण व सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण घटक रहा। अब संघ मुख्यालय में प्रधानमंत्री की यात्रा से यह तथ्य भी उजागर हुआ कि दोनों की रीतियों-नीतियों फिर से बेहतर तालमेल स्थापित हुआ है। इसका असर आने वाले दिनों में भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में संघ की भूमिका को लेकर देखने को मिलेगा, ऐसा ही असर बदलते वक्त के साथ पार्टी के अन्य फैसलों पर भी नजर आ सकता है। आने वाले समय में भाजपा के लिये संघ का सहयोग पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपनी जमीन मजबूत करने एवं जड़े जमाने में मील का पत्थर साबित होगा। इन राज्यों में संघ अपनी आधार भूमि को विस्तार दे रहा है। यानी दोनों अब सामंजस्य, सहयोग व सहजता के साथ आगे बढ़ेंगे। अर्थात भाजपा अब अपने वैचारिक एवं ऊर्जा स्रोत के साथ बेहतर तालमेल करके चलना चाहेगी। मोदी की नागपुर यात्रा के अनेक शुभ संकेत देखे जा रहे हैं, इसको औरंगजेब, राणा सांगा, संभल विवाद के बीच हिन्दुत्व की राजनीति को नई धार देने की कोई योजना के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है, नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की इस मुलाकात को 2029 के चुनावों की कोई नई पटकथा तैयार करने की पृष्ठभूमि में भी देखा जा रहा है।प्रधानमंत्री मोदी के संघ मुख्यालय के दौरे पर जहां विपक्ष बौखला रहा है वहीं इस यात्रा ने संघ के भीतर भी कई लोगों को सुखद आश्चर्य में डाल दिया है। मोदी दीक्षाभूमि भी गए, जहां डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। उन्होंने दीक्षाभूमि की सामाजिक न्याय और दलितों को सशक्त बनाने के प्रतीक के रूप में सराहना करते हुए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों के भारत को साकार करने के लिए और भी अधिक मेहनत करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहरा कर सबका दिल जीत लिया। मोदी की ओर से नागपुर में अपने संबोधन के दौरान संघ की भरपूर प्रशंसा को अपने वैचारिक मार्गदर्शक के प्रति भाजपा के रुख में आये बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। मोदी ने संघ की ‘राष्ट्र निर्माण और विकास में रचनात्मक भूमिका’ को रेखांकित करके अपनी ‘2047 तक विकसित भारत’ की योजनाओं में संघ की भूमिका के महत्व को भी दर्शाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने प्रयागराज में हाल ही में संपन्न महाकुंभ मेले में “महत्वपूर्ण भूमिका” निभाने के लिए भी स्वयंसेवकों को श्रेय दिया था। इसके अलावा, हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों पर आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने पर लगाए गए प्रतिबंध को भी हटा दिया गया था।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जीवन-संकल्पों एवं विचार-ऊर्जा के जिस आंगन में आठ वर्ष की आयु में कदम रख कर जीने की कला सीखी। उस संघ से संस्कार ग्रहण कर ही उनके दिल में राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रज्ज्वलित हुई। उसी संघ के आंगन में नरेन्द्र मोदी के जाने पर अलग-अलग कयास लगाने एवं स्तरहीन राजनीति करने की जरूरत नहीं है। इस पर ज्यादा आश्चर्य भी जताने का कोई औचित्य इसलिये नहीं है कि कोई अपने घर, अपने संस्कार-भूमि एवं अपनी पवित्र पाठशाला में गया है। संघ उनकी राजनीति की आत्मा तो है ही, जीवन-संस्कारदाता भी है। उनका संघ से रिश्ता दशकों पुराना है। नरेन्द्र मोदी के साथ संघ भी हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहा है। खुद को संघ के प्रचारक मानने वाले मोदी समय-सम

संघ-भाजपा में तालमेल से जुड़े सुखद संकेत
The Odd Naari
लेखक: साक्षी शर्मा, टीम नेतनागरी
परिचय
भारतीय राजनीति में संघ और भाजपा का संगठित तालमेल कई बार चर्चा का विषय बनता रहा है। हाल की घटनाएँ यह संकेत दे रही हैं कि इस तालमेल में न केवल मजबूती आई है, बल्कि यह सकारात्मक दिशा में भी बढ़ रहा है।
संघ-भाजपा का इतिहास
भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का संबंध एक ऐसा बंधन है जिसे भारतीय राजनीति में सूत्रधार के रूप में देखा जाता है। यह संबंध केवल राजनीतिक कारणों से नहीं, बल्कि विचारधारा और सांस्कृतिक मूल्यों के साझा प्रमाण पर आधारित है। संघ की स्थापना के पीछे जिस विचारधारा की नींव रखी गई थी, वहां भाजपा ने उसे एक राजनीतिक स्वरूप में विकसित किया।
हाल की घटनाएँ
हाल ही में संघ और भाजपा के नेताओँ द्वारा किए गए कई संयुक्त कार्यक्रम और घोषणाएँ इस तालमेल को प्रगाढ़ बनाने में सहायक रही हैं। भाजपा के नेताओं का संघ के कार्यक्रमों में सक्रिय हिस्सा लेना इस बात का प्रमाण है कि दोनों में आपसी सहयोग और समझ में वृद्धि हो रही है। इससे न केवल भाजपा के राजनीतिक दृष्टिकोण को मजबूती मिली है, बल्कि संघ के मूल सिद्धांतों को भी एक नया जीवन मिला है।
सकारात्मक संकेत
संघ और भाजपा के तालमेल को लेकर कुछ सुखद संकेत सामने आ रहे हैं जैसे कि:
- दृढ़ नेतृत्व: दोनों संगठनों के नेतृत्व में समन्वय और दृढ़ता का स्पष्ट संकेत है।
- कार्यकर्ताओं का उत्साह: कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग और सामंजस्य बढ़ा है, जिससे चुनावी तैयारियों में सुधार हो रहा है।
- सामाजिक कार्यों पर ध्यान: संघ का सामाजिक कार्य में अधिकतम जुड़ाव भाजपा की छवि को एक सकारात्मक रूप दे रहा है।
संभावित चुनौतियाँ
भले ही तालमेल के संकेत सकारात्मक हों, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं। अलग-अलग विचारधाराओं का आपस में टकराना, मुद्दों की प्राथमिकता में भिन्नता, और स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता एकता की कमी जैसी समस्याएँ सामने आ सकती हैं। इन चुनौतियों का सामना करने की ज़रूरत है ताकि दोनों संगठन अपने उद्देश्यों को सफलतापूर्वक निपुण कर सकें।
निष्कर्ष
संघ और भाजपा के बीच हो रहा तालमेल भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है। यदि यह सहयोग इसी प्रकार से आगे बढ़ता रहा, तो निश्चित ही यह दोनों संगठनों के लिए लाभदायक सिद्ध होगा और इस तरह संघ-भाजपा का संगठित नेतृत्व भारतीय राजनीति को स्थिरता और सकारात्मकता की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है।
अंत में, हम कह सकते हैं कि संघ और भाजपा की साझेदारी में यह सुखद संकेत दर्शाता है कि राजनीतिक मैदान में बदलाव आ रहा है, और इसके दुष्प्रभावों को न्यूनतम करने की आवश्यकता है।
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