भारत से पड़ोसी अब केवल दूर ही नहीं जा रहे, दुश्मनों से मिलकर उन्हें उकसा भी रहे, एक लाइन में बिठाकर करना होगा सबका तगड़ा इलाज

बांग्लादेश हिंदुस्तान का सबसे भरोसेमंद सहयोगी और पार्टनर हुआ करता था। अब नहीं है। शेख हसीना के तख्तापलट के बाद इस रिश्ते का चरित्र बदला बदला है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत विरोधियों के साथ रिश्ते मजबूत करने में लगी है। उसने भारत से खुद को दूर करने की भरसक कोशिश की है। बांग्लादेश में हिन्दुओं और मंदिरों पर हमले हो, शेख हसीना का प्रत्यर्पण हो या सीमा विवाद दोनों देशों के बीच कई मौकों पर हॉट टॉक हो गई है। इसके बरक्स बांग्लादेश और पाकिस्तान जिसके अत्याचार के चलते उसका जन्म हुआ वो नजदीक आ रहे हैं। उनके बीच सैन्य समझौते हुए। 1971 की ज्यादती को दरकिनार करने की बात हो रही है। बांग्लादेश की आजादी को खारिज किया जा रहा है। भारत के हित इसमें कमजोर हो रहे हैं। इसी कड़ी में बांग्लादेश ने भारत के एक और प्रतिद्ववंदी की तरफ हाथ बढ़ाया है। बांग्लादेशी अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस का विमान 26 मार्च को चीन के हेनान में उतरा। 27 मार्च को उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की है। इसे भी पढ़ें: Muhammad Yunus ने चीन का ध्यान North-East India की तरफ खींचा, भारत को आया गुस्सा, बांग्लादेश को दिखाई जायेगी उसकी औकाततीस्ता प्रोजेक्ट के लिए चीनी कंपनियों को न्योता यूनुस ने ये भी कहा कि चीन का विकास बांग्लादेश के लिए प्रेरणादायक है। दोनों देशों के साझा बयान में बांग्लादेश में तीस्ता प्रोजेक्ट के लिए चीनी कंपनियों को न्योता दिया। याद रहे है कि पिछले साल जून में पूर्व पीएम शेख हसीना चीन गई थीं और दौरे को अधूरा छोड़ वह बांग्लादेश लौट आई थीं। उन्होंने कहा था कि वह चाहती हैं कि प्रोजेक्ट भारत की ओर से पूरा हो। अब हालात अलग है, हसीना के जाने के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध बहुत सहज नहीं रहे हैं। शी-यूनुस के बीच हुई बैठक से जुड़े एक बयान को लेकर भी भारत की ओर से बहुत सकारात्मक तरीके से नहीं देखा जा रहा है। यूनुस के फेसबुक पर मौजूद इस कथित बयान में यूनुस चीन के सामने भारत के उत्तर-पूर्व के 7 राज्यों का जिक्र कर कह रहे हैं कि भारत के पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं। बांग्लादेश उस क्षेत्र में समुद्र का एकमात्र गार्जियन है। चीन बांग्लादेश की ये नजदीकी कई लिहाज से भारत के लिए चिंताजनक है। एक ओर तीस्ता नदी विकास परियोजना से भारत की सुरक्षा चिंताए जुड़ी हैं। इसे भी पढ़ें: आक्रामक और निंदनीय...; मोहम्मद यूनुस के भारत-विरोधी बयान पर भड़के असम CM, कहा- इसे हल्के में नहीं लिया जा सकताचिकेन नेक पर भड़का रहे यूनुसनॉर्थ ईस्ट के मद्देनजर बांग्लादेश का चीन को प्रस्ताव भी खतरे की घंटी की तरह है। जनवरी में यूनुस सरकार ने भारत के चिकन नेक के नाम से मशहूर सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास रंगपुर में पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल को दौरा कराया था। इसी चिकन नेक के दूसरी ओर चीन की निगाहें लगी हुई है। यह कॉरिडोर भारत के लिए बेहद अहम है। भारत से क्यों दूर जा रहे पड़ोसी? ये यूनुस की पहली बाइलैट्रल विजिट है। आमतौर पर बांग्लादेश के मुखिया अपनी पहली बाइलैट्रल विजिट पर हिंदुस्तान आते हैं। यूनुस के प्रेस सैक्रेटरी शफीकुल आलम ने द हिंदू से बातचीत में दावा किया कि यूनुस चीन जाने से पहले हिंदुस्तान आना चाहते थे। लेकिन हिंदुस्तान की तरफ से पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला। वैसे देखा जाए तो पिछले कुछ समय से भारत के पड़ोसियों का रुख बदला है। वो फॉरेन विजिट के मामलों में भारत के बजाए चीन को तरजीह देते हैं। जैसे नवंबर 2023 में मालदीव में सरकार बदली। वहां इंडिया आउट कैंपेन चलाने वाले मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति बन गए। उनका पहला विदेश दौरा तुर्किए से हुआ। तुर्किए से वो यूएई गए और फिर जनवरी 2024 में उन्हें चीन का न्यौता मिल गया। इसी तरह जुलाई 2024 में नेपाल में केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। वो वैसे भी चीन के ज्यादा करीबी माने ही जाते हैं। लेकिन अतीत में वो प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले विदेश दौरे में हिंदुस्तान आया करते थे। 2016 और 2018 में ऐसा हुआ भी है। लेकिन इस बार वो परंपरा टूट गई। भारत ने अभी तक न्यौता नहीं भेजा और ओली ने नवंबर 2024 में चीन का चक्कर लगा लिया है। त्रिकोण को रोकना चुनौती ? विदेश मंत्री जयशंकर पहले कई बार कह चुके हैं कि भारत, बांग्लादेश के साथ सहयोगात्मक रिश्ते चाहता है, लेकिन उसे अपना दोहरा रवैया छोड़ना होगा। हालांकि, इसके बावजूद भारतीय डिप्लोमेसी को भारत के इर्द-गिर्द बनते एक त्रिकोण को कोई शक्ल लेने से पहले ही रोकना होगा।

भारत से पड़ोसी अब केवल दूर ही नहीं जा रहे, दुश्मनों से मिलकर उन्हें उकसा भी रहे, एक लाइन में बिठाकर करना होगा सबका तगड़ा इलाज
भारत से पड़ोसी अब केवल दूर ही नहीं जा रहे, दुश्मनों से मिलकर उन्हें उकसा भी रहे, एक लाइन में बिठाकर करना होगा सबका तगड़ा इलाज

भारत से पड़ोसी अब केवल दूर ही नहीं जा रहे, दुश्मनों से मिलकर उन्हें उकसा भी रहे, एक लाइन में बिठाकर करना होगा सबका तगड़ा इलाज

The Odd Naari

लेखिका: सिया मेहता, टीम नेतानगरी

परिचय

भारत का पड़ोसी प्रकरण हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है। इन दिनों, यह मामला और भी जटिल होता जा रहा है। केवल दूरियां बढ़ने के साथ-साथ, पड़ोसी देश दुश्मनों के साथ मिलकर गतिविधियों को उकसा भी रहे हैं। ऐसे में अब हमें एक ठोस रणनीति की आवश्यकता है जो न केवल स्थितियों का समाधान करे बल्कि सभी को एक लाइन में बिठा सके।

पड़ोसी देशों का बदलता रवैया

पाकिस्तान, चीन और नेपाल जैसे पड़ोसी देश कभी दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं, तो कभी दुश्मनी के रास्ते पर चलने लगते हैं। पाकिस्तान की आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति और चीन का सीमा विवाद, भारत के लिए चुनौती बन गए हैं। नेपाल द्वारा हाल में किए गए कथित झगड़ों ने मौजूदा स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है।

दुश्मनों से मिलकर राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ

हमारे पड़ोसी देश अब केवल दूरी नहीं बना रहे हैं, बल्कि वो हमारे दुश्मनों के साथ मिलकर हमें उकसाने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे पाकिस्तान के आतंकी समूहों ने भारत में कई बार हमले करने की योजना बनाई है। चीन का विस्तारवादी नीति भी इसी श्रेणी में आता है। इन घटनाओं को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि भारत को एक ठोस योजना बनानी होगी।

सभी को एक लाइन में बिठाना: कैसे संभव है?

इस दिशा में पहला कदम तो हमें अपनी सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना होगा। भारत को अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक सुरक्षा ढांचा तैयार करना होगा। इसके अलावा, सामरिक ज्ञान को साझा करना और एक दूसरे की सहायता करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे में एक नई रणनीति का निर्माण आवश्यक हो गया है, जहां सभी को एक ही पंक्ति में रखा जा सके।

निष्कर्ष

भारत के संदर्भ में, यह स्पष्ट है कि केवल पड़ोसी देशों से दूरी बनाना पर्याप्त नहीं है। हमें अपने दुश्मनों के खिलाफ ठोस योजनाएं अपनाने की आवश्यकता है। एक लाइन में बिठाकर सबका तगड़ा इलाज करना ही सही उपाय प्रतीत होता है। इसके लिए, रणनीतिक सहयोग, सामरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल जरूरी है।

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Keywords

India, neighbors, Pakistan, China, terrorism, security, strategy, diplomatic relations, national security, military cooperation