योगी आदित्यनाथ ने बदल दी राजनीति की परिभाषा

दायित्व के अनुसार अस्थायी रूप से किसी व्यक्ति का स्थान बदल सकता है। पर, उसकी परंपरा और संस्कार नहीं बदलते। बल्कि उसके पद और दायित्व के अनुसार इनका और विस्तार ही होता है। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके आठ साल का सफल कार्यकाल इसका प्रमाण है।उल्लेखनीय है कि योगी जी का गृह जनपद गोरखपुर है। यहीं उत्तर भारत की प्रमुख धार्मिक पीठों में शुमार गोरक्षपीठ है। इस पीठ को देश-दुनिया में फैले नाथपंथ का मुख्यालय माना जाता है। योगी जी मुख्यमंत्री होने के साथ इसी पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। इस रूप में दीक्षित योगी (संन्यासी) भी है। खुद के योगी होने पर उनको गर्व भी है। समय-समय पर सदन से लेकर सार्वजनिक सभाओं में वह इस बात को कहते भी हैं।आठ साल पहले जब एक लंबे अंतराल के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत मिला तो 19 मार्च 2017 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर, आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े और राजनीति के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील सूबे के मुखिया का दायित्व संभाला। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने पीठ की लोककल्याण की परंपरा और संस्कार के फलक को अपने पद के अनुसार लगातार विस्तार दिया। उन्होंने साबित किया कि जनकेंद्रित राजनीति के केंद्र में भी धर्म हो सकता है। उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के समय में जिस ‘हिंदू और हिंदुत्व’ को प्रतिगामी माना जाता था उसे योगी ने बहस के केंद्र में ला दिया। जो पहले भगवान श्रीराम की आलोचना करते थे, उनको काल्पनिक बताते थे ऐसे लोग भी खुद को हिंदू कहलाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस तरह उन्होंने धर्म और राजनीति को लोक कल्याण का जरिया बनाकर साबित किया कि संत, समाज का वैचारिक मार्गदर्शन करने के साथ सत्ता का कुशलता से नेतृत्व भी कर सकता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के खाते में ढेर सारी उपलब्धियां दर्ज हैं। 2019 में एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सर्वे में उनको देश का सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री माना गया। इसे भी पढ़ें: 'जिसने 'राम' पर लिखा, वह महान हुआ', CM Yogi बोले- राम मंदिर के लिए छोड़ भी सकते हैं सत्तासच साबित हुई ‘मैं कभी हारा नहीं’ का बयानएक इंटरव्यू में कभी योगी जी कहा था कि वह कभी हारे नहीं हैं। गोरखपुर से संसदीय चुनावों में वह अजेय रहे हैं तो पहली बार 2022 में विधानसभा चुनाव लड़कर उन्होंने अपनी अपराजेय लोकप्रियता को पुनः प्रमाणित किया।  मंदिर आंदोलन के दौरान आए महंत अवेद्यनाथ के संपर्क मेंजन, जल, जंगल और जमीन से प्यार करने वाले योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पौढ़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) के पंचुर गांव में एक सामान्य परिवार में हुआ था। संयोग से उसी दिन विश्व पर्यावरण दिवस भी पड़ता है। उनके पिता स्वर्गीय आनंद सिंह विष्ट वन विभाग में रेंजर थे। बाल्यकाल से राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित योगी का जुड़ाव नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन से हो गया। राम मंदिर आंदोलन के दौरान ही वह इस आंदोलन के नायक गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के संपर्क में आए। महंत जी के सानिध्य और उनसे प्राप्त नाथपंथ के बारे में मिले ज्ञान ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक विज्ञान तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने सन्यास लेने का निर्णय कर लिया। इसी क्रम में वह 1993 में गोरखनाथ मंदिर आ गए और नाथ पंथ की परंपरा के अनुरूप धर्म, अध्यात्म की तात्विक विवेचना और योग साधना में रम गए। उनकी साधना और अंतर्निहित प्रतिभा को देख महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में दीक्षा प्रदान किया। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने पीठ की लोक कल्याण और सामाजिक समरसता के ध्येय को सदैव विस्तारित किया। 22 साल की उम्र में ली नाथपंथ की दीक्षामहज 22 साल की उम्र में योगी जी नाथपंथ में दीक्षित होकर वह संन्यासी (योगी) बने। इस रूप में वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के उत्तराधिकारी बने। अवेद्यनाथ संत समाज एवं समाज में एक सर्व स्वीकार्य नाम था। इसलिए उनको राष्ट्र संत भी कहा जाता है। एक योग्य गुरु को एक योग्य शिष्य से अधिक क्या चाहिए। अपने गुरु के ब्रह्मलीन होने के बाद अपने पहले साक्षात्कार में योगी ने कहा भी था, ‘गुरुदेव के सम्मोहन ने सन्यासी बना दिया।’ दोनों का एक दूसरे पर अटूट भरोसा था। यही वजह रही कि पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में धार्मिक विरासत सौंपने के कुछ साल बाद ही ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने अपने प्रिय शिष्य (योगी) को अपनी राजनीतिक विरासत भी सौंप दी।14 सितंबर 2014 में बने गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वरमहंत अवेद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के उपरांत वह14 सितंबर 2014 को गोरक्षपीठाधीश्वर (महंत) के रूप मे पदासीन हुए। इसी भूमिका के तदंतर वह इसी तिथि से अखिल भारतीय बारह भेष पंथ योगी सभा के अध्यक्ष भी हैं। बेदाग रहा राजनीतिक सफरयोगी आदित्यनाथ को राजनीतिक दायित्व भी गोरक्षपीठ से विरासत में मिला है। उनके दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का एक बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चार बार सांसद और मानीराम विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे हैं। 1996 में गोरखपुर लोकसभा से चुनाव जीतने के बाद ही महंत अवेद्यनाथ ने घोषणा कर दी थी कि उनकी राजनीति का उत्तराधिकार भी योगी ही संभालेंगे। इसके बाद योगी 1998 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल कर बारहवीं लोकसभा में उस वक्त सबसे कम उम्र (26 वर्ष) के सांसद बने। तब से 2014 तक लगातार पांच बार संसदीय चुनाव में जीत हासिल करने वाले वह विरले सांसदों में रहे। मठ छूटा संस्कार वही2017 में उत्तर प्रदेश में जब भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले य

योगी आदित्यनाथ ने बदल दी राजनीति की परिभाषा
योगी आदित्यनाथ ने बदल दी राजनीति की परिभाषा

योगी आदित्यनाथ ने बदल दी राजनीति की परिभाषा

The Odd Naari
यह समाचार लेख टीम नेतानागरी द्वारा लिखा गया है।

परिचय

भारतीय राजनीति में कई नेता आए हैं और गए हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल के दौरान राजनीति की परिभाषा को एक नई दिशा दी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने जो नीतियाँ और फैसले लिए हैं, उन्होंने न केवल राज्य बल्कि सम्पूर्ण देश की राजनीति को प्रभावित किया है।

योगी आदित्यनाथ का उदय

योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। एक साधु संत से लेकर एक प्रभावशाली नेता बनने तक, उनका विकास उल्लेखनीय है। 2017 में जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब से उनके नेतृत्व में राज्य ने कई बदलाव देखे हैं। उनके कार्यकाल में कानून-व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएँ, और विकास परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।

राजनीति में बदलाव

योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, जो पिछले असफलताओं को पीछे छोड़ते हैं। उनके शासन में, महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उन्होंने "महिला सुरक्षा" को प्राथमिकता में रखा है, जो उनकी शासन की एक महत्वपूर्ण पहचान बन गया है। ऐसा लगता है कि वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि समाज के घटक के रूप में काम कर रहे हैं।

स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार

योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में स्वास्थ्य और शिक्षा में बड़ा सुधार देखा गया है। "जनता के दरवाजे पर स्वास्थ्य सेवाएँ" योजना के तहत, उन्होंने हर गाँव में स्वास्थ्य केन्द्र खोले हैं, जिससे ग्रामीणों को चिकित्सा सेवाएं समय पर मिल सकें। इसके अलावा, उनका "मिशन उच्च शिक्षा" कार्यक्रम भी चर्चा का विषय बना हुआ है, जो कि छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए लागू किया गया है।

संस्कृति और धर्म का संगम

योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को संस्कृति और धर्म का केंद्र बनाने का भी लक्ष्य रखा है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन्होंने अपनी स्पष्ट राय रखी है। यह कदम न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष

योगी आदित्यनाथ ने अपनी कार्यशैली, नीतियों और जनता के प्रति उत्तरदायित्व को दर्शाते हुए भारतीय राजनीति की परिभाषा को बदल दिया है। उनकी पहलें न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि सम्पूर्ण भारत में प्रभाव डाल रही हैं। आज, जब हम उनके कार्यों की समीक्षा करते हैं, तो हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि वे एक सशक्त नेता हैं, जिन्होंने विश्वास और सकारात्मकता के साथ राजनीति में अपनी जगह बनाई है।

कम शब्दों में कहें तो, योगी आदित्यनाथ ने राजनीति को एक नई पहचान दी है।

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