मुख्यमंत्री स्टालिन का हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया। इसके बावजूद की पूरे अमरीका में ज्यादातर अंग्रेजी बोली जाती है। ट्रंप के अनुसार, यह आदेश राष्ट्रीय एकता, साझा संस्कृति, और सरकारी कार्यों में समरसता लाने में मदद करेगा। अमरीका जैसे सुपर पावर की एक आधिकारिक भाषा हो सकती है पर भारत में ऐसा करना आसान नहीं है। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार सिर्फ क्षुद्र स्वार्थों और वोट बैंक की खातिर हिन्दी का विरोध कर रही हैं। जबकि देश के ज्यादातर राज्यों में हिन्दी न सिर्फ आधिकारिक भाषा है बल्कि सर्वाधिक बोली जाने वाली भी है।मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को देश को खोखला करने वाले भ्रष्टाचार के कैंसर की परवाह नहीं पर देश की एकता, समरसता और अखंडता के लिए जरूरी हिन्दी भाषा की केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई राष्ट्रीय नीति का जम कर विरोध कर रहे हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उससे लगता है कि तमिलनाडु भारत का हिस्सा नहीं होकर कोई अलग देश है। उन्होंने कहा कि सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य में लागू नहीं करेगी, चाहे केंद्र सरकार इसके बदले 10,000 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता ही क्यों न दे। स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाले 2,000 करोड़ रुपये की राशि रोकने की धमकी दी थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसकी शिकायत भी की। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्टालिन के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार राजनीतिक लाभ के लिए हिंदी थोपने का फर्जी नैरेटिव बना रही है। इसे भी पढ़ें: वर्चस्व पर संकट का कवच बनती हिंदी विरोध की राजनीतिगौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जितना विरोध तमिलनाडु की स्टालिन सरकार कर रही है, उतना देश के किसी अन्य राज्य ने नहीं किया। यहां तक की बात-बात पर केंद्र की भाजपा सरकार से टकराने को तैयार रहने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस मुद्दे पर मुखर नहीं दिखी। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने 1948-49 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाले आयोग ने हिंदी को केंद्र सरकार के कामकाज की भाषा बनाने की सिफारिश की थी। आयोग की सिफारिश थी कि सरकार के प्रशासनिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक कामकाज अंग्रेजी में किए जाएं। इस आयोग ने कहा था कि प्रदेशों का सरकारी कामकाज क्षेत्रीय भाषाओं में हो। राधाकृष्णन आयोग की यह सिफारिश ही आगे चलकर स्कूली शिक्षा के लिए त्रिभाषा फार्मूला के नाम से मशहूर हुआ। इस सिफारिश को राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने 1964-66 में स्वीकार किया। इंदिरा गांधी की सरकार की ओर से पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में इसे शामिल किया गया। सरकार ने प्रस्तावित किया कि माध्यमिक स्तर तक हिंदी भाषी राज्यों में छात्र हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दक्षिणी भाषाओं में से एक और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी सीखें।   राजीव गांधी सरकार में 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति और नरेंद्र मोदी सरकार में 2020 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसी फार्मूले को रखा गया। लेकिन इसके क्रियान्वयन में लचीलापन लाया गया। पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत 2020 में बनी नीति में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कहा गया है कि बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, बशर्ते कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं हों।   यह पहला मौका नहीं है जब तमिलनाडु में हिंदी विरोध की आड़ में राजनीतिक की जा रही है। हिन्दी का विरोध करना तमिलनाडु में वोट बैंक साधने का साधन बन चुका है। स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) ही नहीं इससे पहले सत्ता में रहे अन्य क्षेत्रीय दल भी वोटों की खातिर हिंदी विरोध के मुद्दे् को भुनाते रहे हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलनों का करीब सौ साल पुराना है। केरल और कर्नाटक के विपरीत तमिलनाडु में दो भाषा फार्मूले का पालन किया जाता है। इसके तहत छात्रों को केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। साल 1937 में मद्रास में सी राजगोपालाचारी की सरकार ने माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसका जस्टिस पार्टी ने विरोध किया था।   हिंदी के विरोध में हुए आंदोलन में थलामुथु और नटराजन नाम के दो युवकों की जान चली गई थी। बाद में वो हिंदी विरोधी आंदोलन के प्रतीक बन गए। इस विरोध के आगे झुकते हुए राजाजी को इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं 1960 के दशक में जब देश में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की समय सीमा आई तो तमिलनाडु में हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगे। हिंदी विरोधी इस आंदोलन में पुलिस कार्रवाई और आत्मदाह की घटनाओं में करीब 70 लोगों की जान चली गई थी। मौजूदा स्टालिन सरकार हिन्दी का जिस कदर विरोध कर रही है, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कभी उतनी मुखर नहीं रही है। स्टालिन सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी और उनकी पत्नी पी विसलाची को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया गया है। जल संसाधन मंत्री रईमुरुगन का नाम अक्सर तमिलनाडु में अवैध रेत खनन से जुड़ा रहा है। ग्रामीण विकास मंत्री आई पेरियासामी चेन्नई में एक भूखंड के अवैध आवंटन का आरोप झेल रहे हैं।   आयकर विभाग ने तमिलनाडु के लोक निर्माण और राजमार्ग मंत्री ईवी वेलु से जुड़े कई परिसरों पर छापेमारी की थी। डीएमके नेता से जुड़ी संपत्तियों से 29 करोड़ रुपये नकद जब्त किए। आश्चर्य की बात यह है कि मंत्रियों पर लगे संगीन आरोपों के बावजूद मुख्यमंत्री स्टालिन ने एक बार भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान नहीं दिया, जबकि हिंदी का विरोध खूब कर रहे हैं। यह निश्चित है कि ऐसे विरोध देश की एकता-अखंडता के ल

मुख्यमंत्री स्टालिन का हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी
मुख्यमंत्री स्टालिन का हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी

मुख्यमंत्री स्टालिन का हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी

The Odd Naari

लेखिका: नीतू शर्मा, टीम नेतानागरी

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी ने हाल में राजनीतिक सरगर्मियों को बढ़ा दिया है। जिस तरह से उन्होंने हिन्दी भाषा के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की है, वह न केवल राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या राजनीतिक नेता अपने राज्यों के विषयों पर पारदर्शिता से बात करने के लिए तैयार हैं।

हिन्दी वाद और स्टालिन का रुख

इस बार स्टालिन ने हिन्दी भाषा के प्रचार पर सवाल उठाया और इसे दक्षिण भारत के लिए नई चुनौतियों के रूप में पेश किया। उन्होंने यह दावा किया कि हिन्दी को थोपना, क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृति को खतरे में डालता है। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि लोग जानें कि दक्षिण भारत के मुख्यमंत्री का हिन्दी के प्रति यह रुख क्यों महत्वपूर्ण है।

भ्रष्टाचार पर चुप्पी का कारण

जब बात भ्रष्टाचार की आती है, तो मुख्यमंत्री स्टालिन की चुप्पी और भी विचारशील है। हाल ही में, उनके प्रशासन से जुड़े कई आरोप सामने आए हैं, लेकिन उन्होंने इन मामलों को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। इससे ऐसा लगता है कि वह इस पर चर्चा करने से बच रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या वह अपनी छवि को बचाने की कोशिश कर रहे हैं या उन्हें सवालों का सही जवाब देने में कठिनाई हो रही है?

सामाजिक प्रतिक्रिया

स्टालिन के हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी के प्रति जनता की प्रतिक्रियाएं भी विभाजित हैं। कुछ लोग उनका समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य उन पर हमलावर हैं। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ कई प्रखर टिप्पणियां चल रही हैं, जो दर्शाती हैं कि जनता अब जागरूक हो रही है और अपने नेताओं से जवाब मांग रही है।

निष्कर्ष

मुख्यमंत्री स्टालिन का हिन्दी विरोध और भ्रष्टाचार पर चुप्पी वास्तव में चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है। क्या यह केवल राजनीतिक रणनीति है या वाकई में एक गंभीर मामला है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता? जनता का क्या जवाब है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। हमें उम्मीद है कि स्टालिन इस विषय पर स्पष्टता प्रदान करेंगे और जनता की अपेक्षाओं का सम्मान करेंगे।

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