महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में 'संस्कृत सप्ताह' का सफल आयोजन, दो प्रशिक्षण शिविरों की शुरूआत
कैथल। संस्कृत भाषा के महत्व और भारतीय ज्ञान-परंपरा को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल में 'संस्कृत सप्ताह' के तहत विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। कुलपति प्रो. राजबीर सिंह के संरक्षण में विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान-परंपरा शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र और संस्कृत भारती के संयुक्त तत्वावधान में दस दिवसीय दो संस्कृत संभाषण प्रशिक्षण शिविरों का शुभारंभ हुआ। ये शिविर 5 अगस्त से 14 अगस्त, 2025 तक, प्रतिदिन प्रातः 9:15 बजे से 10:30 बजे तक विश्वविद्यालय के टीक परिसर में आयोजित किए जा रहे हैं।इस शुभ अवसर पर, शिविर के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं शैक्षणिक अधिष्ठाता, प्रो. संजय गोयल ने संस्कृत को भारतीय ज्ञान-परंपरा का मूल स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का आधार है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि संस्कृतभारती जैसे संगठन इसे केवल शैक्षणिक भाषा से हटाकर, व्यवहार में लाने के लिए सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे संस्कृत को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं और विश्वविद्यालय में एक ऐसा वातावरण तैयार करें, जहाँ हर तरफ संस्कृत का ही बोलबाला हो।साहित्य संस्कृति संकायाध्यक्ष, डॉ. जगतनारायण ने अपने संबोधन में विद्यार्थियों को संस्कृत सीखने के साथ-साथ अपने आचार-व्यवहार को भी संस्कारमय बनाने का संदेश दिया। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे संस्कृत केवल व्याकरण और साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों और नैतिकता को भी प्रभावित करती है। उन्होंने व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से संस्कृत की प्रासंगिकता और उपयोगिता पर प्रकाश डाला।ये प्रशिक्षण शिविर शास्त्री, आचार्य और डिप्लोमा के विद्यार्थियों को संस्कृत से भली-भांति परिचित कराने के लिए आयोजित किए गए हैं। शिविर का मुख्य उद्देश्य संस्कृत को रुचिपूर्ण तरीके से पढ़ना और इसकी सरलता का बोध कराना है। शिविर के पहले दिन, विद्यार्थियों को 'खेल-खेल में' संस्कृत में अपना परिचय देना सिखाया गया। यह शिक्षण पद्धति भाषा को मनोरंजक और सुलभ बनाने पर केंद्रित है, ताकि विद्यार्थी बिना किसी बोझ के आसानी से संस्कृत सीख सकें।इन प्रशिक्षण शिविरों का सफल संचालन ज्योतिष विभाग के सहायक आचार्य डॉ. नवीन शर्मा और दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. विनय गोपाल त्रिपाठी द्वारा किया जा रहा है, जो शिविर के संयोजक के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनके साथ संस्कृतभारती के अनुभवी कार्यकर्ता मोहित, सचिन, मंजू और अक्षय भी शिक्षकों की भूमिका में हैं, जो विद्यार्थियों को व्यावहारिक रूप से संस्कृत संभाषण का अभ्यास करा रहे हैं।कार्यक्रम का समापन हिंदू अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण चंद्र पाण्डेय के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को इन दस दिनों के प्रशिक्षण शिविर में अनिवार्य रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे इसका अधिकतम लाभ उठा सकें। इस कार्यक्रम में डॉ. रामानन्द मिश्र, डॉ. देवेन्द्र सिंह, डॉ. चन्द्रकान्त, डॉ. गोविन्द वल्लभ और डॉ. हरीश सहित विश्वविद्यालय परिवार के अन्य सदस्य भी उपस्थित रहे।
महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में 'संस्कृत सप्ताह' का सफल आयोजन, दो प्रशिक्षण शिविरों की शुरूआत
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कैथल। संस्कृत भाषा के बढ़ते महत्व को समझते हुए और भारतीय ज्ञान-परंपरा को समाज में व्यापक रूप से फैलाने के उद्देश्य से महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल में 'संस्कृत सप्ताह' का भव्य आयोजन किया गया। कुलपति प्रो. राजबीर सिंह की देखरेख में भारतीय ज्ञान-परंपरा शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र और संस्कृत भारती के सहयोग से दो संस्कृत संभाषण प्रशिक्षण शिविरों का शुभारंभ 5 अगस्त, 2025 से किया गया है। ये शिविर 14 अगस्त तक, प्रतिदिन प्रातः 9:15 बजे से 10:30 बजे तक विश्वविद्यालय के टीक परिसर में आयोजित होंगे।
शिविर का उद्घाटन समारोह
उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलसचिव एवं शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. संजय गोयल ने संस्कृत को भारतीय ज्ञान-परंपरा का मूल आधार करार दिया। उन्होंने कहा कि, “संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रमुख स्रोत है।” उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृतभारती जैसे संगठनों का प्रयास इस भाषा को सिर्फ शैक्षणिक दायरे में सीमित नहीं रखने का, बल्कि इसे जीवन में व्यवहारिक रूप से लागू करने का सराहनीय है। विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा कि वे संस्कृत को अपने दैनिक जीवन में अपनाएँ और विश्वविद्यालय में संस्कृत का आधिपत्य स्थापित करें।
संस्कृत के महत्व पर चर्चा
साहित्य संस्कृति संकाय के अध्यक्ष, डॉ. जगतनारायण ने अपनी बात में कहा कि संस्कृत न केवल व्याकरण और साहित्य तक सीमित है, बल्कि यह हमारे आचार-व्यवहार और जीवन मूल्यों को भी आकार देती है। उन्होंने उदाहरण के जरिए दर्शाया कि कैसे संस्कृत हमारे नैतिकता और दृष्टिकोण को भी प्रभावित करती है। यह दर्शाता है कि संस्कृत का ज्ञान केवल अध्ययन का विषय नहीं होना चाहिए, बल्कि जीवन का एक हिस्से के रूप में इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
प्रशिक्षण शिविर का उद्देश्य
ये प्रशिक्षण शिविर शास्त्री, आचार्य और डिप्लोमा के विद्यार्थियों के लिए संस्कृत के ज्ञान को बढ़ावा देने का एक सुन्दर मंच है। इस शिविर का मुख्य उद्देश्य संस्कृत भाषा को रोचक तरीके से पढ़ाना और इसकी सरलता को छात्रों के समक्ष लाना है। पहले दिन, विद्यार्थियों को 'खेल-खेल में' संस्कृत में अपना परिचय देने का अभ्यास कराया गया। यह शिक्षण पद्धति भाषा को मजेदार और सुलभ बनाने पर केंद्रित है, जिससे विद्यार्थियों की सीखने की प्रक्रिया सहज होती है।
शिविर का संचालन
इन प्रशिक्षण शिविरों की जिम्मेदारी ज्योतिष विभाग के सहायक आचार्य डॉ. नवीन शर्मा और दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. विनय गोपाल त्रिपाठी द्वारा सफलतापूर्वक निभाई जा रही है। इसके अलावा, संस्कृतभारती के अनुभवी कार्यकर्ताओं जैसे मोहित, सचिन, मंजू और अक्षय भी विद्यार्थियों को व्यावहारिक रूप से संस्कृत संभाषण का अभ्यास करवा रहे हैं।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम का समापन हिंदू अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण चंद्र पाण्डेय के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने सभी छात्रों को इस दस दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे अधिकतम लाभ उठा सकें। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अन्य सदस्य, जैसे डॉ. रामानन्द मिश्र, डॉ. देवेन्द्र सिंह, डॉ. चन्द्रकान्त, डॉ. गोविन्द वल्लभ और डॉ. हरीश भी उपस्थित थे।
संस्कृत सप्ताह की यह पहल महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर रही है। ऐसे आयोजन न केवल शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाते हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में भी मदद करते हैं।
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