Trump ने ब्रिक्स देशों को अमेरिकी डॉलर की जगह किसी और मुद्रा के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी
वाशिंगटन । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर चेतावनी दी है कि अगर ब्रिक्स देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर की जगह किसी और मुद्रा के इस्तेमाल का प्रयास करेंगे तो वह उन पर 100 प्रतिशत शुल्क लगा देंगे। ट्रंप ने कहा कि ब्रिक्स देश ‘‘कोई और मूर्ख देश’’ ढूंढ लें। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने सोशल मीडिया मंच ‘ट्रुथ सोशल’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘ब्रिक्स देश डॉलर से दूर जाने की कोशिश करें और हम खड़े होकर बस देखते रहें, इस तरह के विचारों के दिन खत्म हो चुके हैं।’’उन्होंने कहा कि वह ब्रिक्स देशों से यह प्रतिबद्धता चाहते हैं कि वे न तो नयी ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे न ही अमेरिकी डॉलर की जगह किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे। ट्रंप ने कहा, ‘‘नहीं तो, उन्हें 100 प्रतिशत शुल्क का सामना करना होगा या फिर शानदार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बिक्री को अलविदा कहने की उम्मीद करनी चाहिए।’’ उन्होंने धमकी देते हुए कहा, ‘‘वे (ब्रिक्स देश) कोई दूसरा मूर्ख देश ढूंढ़ सकते हैं। इस बात की कोई संभावना नहीं है कि ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय व्यापार में या कहीं और अमेरिकी डॉलर की जगह ले लेगा। हालांकि जो भी देश ऐसा करने की कोशिश करेगा, उसे शुल्क को नमस्ते और अमेरिका को अलविदा कह देना चाहिए।’’ट्रंप ने ब्रिक्स सदस्य देशों द्वारा अपनी मुद्रा जारी करने के किसी भी कदम की बार-बार आलोचना की है और यह अब तक का उनका सबसे कड़ा विरोध है। दिसंबर में भी ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को इस तरह के कदम के खिलाफ चेतावनी दी थी। ब्रिक्स दस देशों - ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात का एक अंतर-सरकारी संगठन है।2009 में गठित ब्रिक्स एकमात्र प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समूह है जिसका अमेरिका हिस्सा नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में इसके कुछ सदस्य देश विशेष रूप से रूस और चीन अमेरिकी डॉलर का विकल्प या ब्रिक्स मुद्रा बनाने की मांग कर रहे हैं। ब्रिक्स के एक महत्वपूर्ण स्तंभ भारत ने कहा है कि वह ‘डी-डॉलराइजेशन’ (विश्व व्यापार और वित्तीय लेनदेन में डॉलर के उपयोग में उल्लेखनीय कमी) के खिलाफ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दिसंबर में कहा था कि भारत कभी भी ‘डी-डॉलराइजेशन’ के पक्ष में नहीं रहा है और ब्रिक्स मुद्रा बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

Trump ने ब्रिक्स देशों को अमेरिकी डॉलर की जगह किसी और मुद्रा के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी
The Odd Naari
लेखक: सारा वर्मा, टीम नीतानागरी
परिचय
हाल के दिनों में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों को अमेरिकी डॉलर की जगह किसी भी अन्य मुद्रा के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी है। यह बयान यूरोप और अन्य देशों में मुद्रा प्रतिस्थापन के आंतरिक दबावों के बीच आया है। आइए इस विषय पर गहराई से चर्चा करें और जानें कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
डॉलर का महत्व
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक अर्थव्यवस्था में 'रिजर्व करेंसी' का दर्जा प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि यह दुनिया भर में विभिन्न देशों द्वारा व्यापार और निवेश के लिए प्राथमिक मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ट्रंप ने चेतावनी दी कि यदि ब्रिक्स देश डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं का उपयोग करते हैं, तो इससे वैश्विक आर्थिक स्थिरता को खतरा हो सकता है।
ब्रिक्स देशों का उदय
ब्रिक्स देशों ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया है और अब वे वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गए हैं। ये देश नए विकास के अंतर्राष्ट्रीय बैंक स्थापित कर रहे हैं और डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए कई प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में, इन देशों ने एक साथ आकर अपनी प्रगति को और भी तेज करने का निश्चय किया है।
ट्रंप की चेतावनी का प्रभाव
ट्रंप की चेतावनी इस बात की ओर इशारा करती है कि यदि ब्रिक्स देशों ने अपने व्यापार में अमेरिकी डॉलर का स्थान लेने की कोशिश की, तो अमेरिका गंभीर आर्थिक और राजनीतिक कदम उठा सकता है। यह स्थिति विश्व में विदेशी निवेशकों के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि आर्थिक अस्थिरता का सीधा असर उनके निवेश पर पड़ सकता है।
भविष्य की संभावनाएँ
हालांकि ब्रिक्स देशों का प्रयास डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने का है, लेकिन ट्रंप का यह बयान उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकता है। अगर ये देश अपनी मुद्राओं को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उनके प्रयोग को बढ़ावा देने में सफल होते हैं, तो यह वैश्विक आर्थिक शक्ति संतुलन को भी बदल सकता है।
निष्कर्ष
ट्रंप का यह बयान न केवल ब्रिक्स देशों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह एक संकेत भी है कि अमेरिकी डॉलर की स्थिति कितना महत्वपूर्ण है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलावों के चलते, यह देखना होगा कि ब्रिक्स(ब्राज़ील, रूस, भारत, China और दक्षिण अफ्रीका) अपनी मुद्राओं को कैसे मजबूत करते हैं और इसका प्रभाव वैश्विक बाजार पर क्या पड़ता है। साथ ही, उनके प्रयासों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी क्या असर होगा, यह महत्वपूर्ण रहेगा।
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