राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य: राष्ट्रीय संघर्ष का प्रेरणास्त्रोत
राष्ट्रकवि का साहित्य राष्ट्रीय जागरण व संघर्ष के आह्वान का है जीता-जागता दस्तावेजः प्रधानाचार्य The post राष्ट्रकवि का साहित्य राष्ट्रीय जागरण व संघर्ष के आह्वान का है जीता-जागता दस्तावेजः प्रधानाचार्य appeared first on Prabhat Khabar.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य: राष्ट्रीय संघर्ष का प्रेरणास्त्रोत
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कम शब्दों में कहें तो, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य हमारे समाज के जागरण और संघर्ष का जीता-जागता दस्तावेज है।
सहरसा में, राजेंद्र मिश्र महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में उनके साहित्य के महत्व को रेखांकित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डॉ. गुलरेज रौशन रहमान ने की, जिन्होंने कहा कि दिनकर का साहित्य न केवल काव्यात्मक मूल्य रखता है, बल्कि यह राष्ट्रीय चेतना का संवाहक भी है।
रामधारी सिंह दिनकर की साहित्यकृतियाँ
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य जैसे "हुंकार", "रेणुका", और "इतिहास के आंसू" ने विद्रोह और संघर्ष का स्वर प्रस्तुत किया है। इन कृतियों के माध्यम से उन्होंने संदर्भित किया है कि कैसे कर्म और उत्साह का संचार करना आवश्यक है, जो तब के राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ।
साहित्य की सामाजिक भूमिका
पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. ललित नारायण मिश्र ने बताया कि दिनकर जी ने आम जनमानस में संघर्ष का आह्वान किया। इसके अलावा, डॉ. अरुण कुमार झा ने कहा कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना दिलो दिमाग से उपजती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने देश की मिट्टी, संस्कृति और मातृभूमि से प्रेम करेगा, वह इसे केवल भौगोलिक इकाई नहीं मानेगा। दिनकर जी ने अपने कर्तव्य को राष्ट्र धर्म के रूप में मान्यता दी।
मनवाजनकता और प्रगतिवाद
महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. इंद्रकांत झा ने कहा कि दिनकर के मानस में मानवतावाद भरा हुआ था। वे प्रगतिवादी मानवतावाद के पक्षधर रहे हैं। हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. शुभ्रा पांडेय ने कहा कि दिनकर की राष्ट्रीय चेतना संकीर्ण नहीं थी, यह केवल ब्रिटिश उपनिवेश के खिलाफ नहीं थी, बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी सामाजिक-आर्थिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाली थी।
नवजागरण और सांस्कृतिक चेतना
डॉ. पिंकी कुमारी ने बताया कि दिनकर जी की राष्ट्रीयता वास्तव में भाववादी है, जिसमें आवेग और भावनाएं प्रधान हैं। वहीं, डॉ. अपर्णा ने कहा कि दिनकर जी ने भारत की सुसुप्त जनता को जगाने के लिए उनकी सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने का कार्य किया। यह समाज में एक नई ऊर्जा का संचार करने का प्रयास था।
विद्यार्थियों की सहभागिता
कार्यक्रम का संचालन स्नातक की छात्रा काजल कुमारी ने किया। संगोष्ठी में कई छात्रों ने अपने विचार रखे, जिनमें कोमल कुमारी, शिवशंकर, निर्भय, सुदीप, प्रतीक, नैना, प्रियंका, सबनम, फरहत और सत्यम शामिल थे। ये युवा विद्यार्थी दिनकर के संदेश को अपने समय में लागू करने का प्रयास कर रहे हैं।
सार्वजनिक विचार और प्रतिभागी
इस कार्यक्रम में डॉ. राजीव कुमार झा, डॉ. आशुतोष झा, और डॉ. कविता कुमारी जैसे कई प्रमुख विद्वानों ने भी शिरकत की। इस संगोष्ठी ने दिनकर जी के साहित्य की गहराई और सामाजिक प्रभाव को समझाने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया।
इन विचारों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि यह आज भी हमारे संघर्ष और जागरण का अभिन्न हिस्सा है।
इसके अलावा, इस संगोष्ठी ने यह भी दिखा दिया कि युवा पीढ़ी दिनकर के विचारों को सीखने और आगे बढ़ाने में तत्पर है।
इस प्रकार, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
फिर से, इसे ध्यान में रखते हुए, हम सभी को दिनकर जी के आदर्शों से प्रेरणा लेकर अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए।
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Team The Odd Naari - संजना देवी