क्या 'और कमाऊं' की तृष्णा कभी शांत होगी? जानें सच्चाई

सैकड़ों वर्ष पुरानी ‘भज गोविन्दं’ आज भी प्रासंगिक। डॉ. संतोष कुमार तिवारी। सैकड़ों वर्ष पुरानी आदि शंकराचार्य (788 – 820) की  कृति ‘भज गोविन्दं’ आज भी प्रासंगिक है। आप जितने बार इसे पढेंगे, उतने बार आपको इस मायावी दुनिया के बारे में कुछ न कुछ नया सीखने को और नया चिन्तन-मनन करने को  मिलेगा। ‘भज […] The post और कमाऊं’, ‘और कमाऊं’ की तृष्णा कभी शान्त क्यों नहीं होती first appeared on Apka Akhbar.

क्या 'और कमाऊं' की तृष्णा कभी शांत होगी? जानें सच्चाई
और कमाऊं’, ‘और कमाऊं’ की तृष्णा कभी शान्त क्यों नहीं होती

क्या 'और कमाऊं' की तृष्णा कभी शांत होगी?

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कम शब्दों में कहें तो, 'भज गोविन्दं' के अद्वितीय संदेश के माध्यम से हमें मनुष्य की अंतर्निहित इच्छाओं और धन की तृष्णा को समझने की आवश्यकता है। यह कृति, जो आदिकाल से आज तक प्रासंगिक है, हमें चेतावनी देती है कि भौतिक संपत्ति सिर्फ अस्थायी होती है।

डॉ. संतोष कुमार तिवारी के अनुसार, आदि शंकराचार्य की कृति 'भज गोविन्दं' (788 – 820) एक ऐसी कृति है जो समय के साथ-साथ अपनी प्रासंगिकता को नहीं खोती। जीवन के भौतिक संसाधनों और धन के संचय की प्रवृत्ति ने आज के इंसान के मन में 'और कमाऊं' की तृष्णा को लगातार बढ़ाया है। अब इस तृष्णा पर सोचने का समय है।

धन के पीछे दौड़ने का मनोविज्ञान

धन के प्रति यह उत्साह मनुष्य का स्वभाव है। ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे हम अधिक दूर जाते हैं, हमारी इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं। अब जरा सोचिए, क्या कभी आपने अपने स्तर पर हो रहे परिवर्तनों को देखा है? जब आपकी सैलरी बढ़ती है, तो क्या आप संतुष्ट होते हैं? या फिर आप और अधिक की इच्छा करने लगते हैं? इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि हम जब भी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं, नई आवश्यकताएँ उभरकर सामने आती हैं।

संपत्ति में खुशी की खोज

आदि शंकराचार्य ने 'भज गोविन्दं' के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि धन से वास्तविक संतोष नहीं मिल सकता। जब हम धन कमाने की धुन में होते हैं, तब हम जीवन के अनमोल पहलुओं जैसे संबंध, अनुभव और आत्मिक शांति को नजरअंदाज कर देते हैं। यही कारण है कि अनेक लोग धन अधिक होने के बावजूद सच्ची खुशी को महसूस नहीं कर पाते।

‘भज गोविन्दं’ का संदेश

‘भज गोविन्दं’ का मुख्य संदेश यही है कि भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति को प्राथमिकता देनी चाहिए। जो लोग ज्ञान और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होते हैं, वे भौतिक संपत्ति से दूर रहकर सच्ची खुशी और संतोष का अनुभव करते हैं। यह कृति हमें सिखाती है कि भौतिक वस्तुओं के बजाय अनुभव और रिश्तों का मूल्य अधिक है।

समाधान क्या है?

इस अंतहीन तृष्णा का समाधान सजगता में है। यह आवश्यक है कि हम अपनी इच्छाओं को पहचाने और उन्हें संतोष में बदलने का प्रयास करें। ध्यान और साधना से मन को शांति मिलती है। शंकराचार्य के विचारों को आत्मसात करते हुए, हमें अपने भीतर आत्मा की गहराई में जाकर सच्चे सुख को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

निष्कर्ष

‘और कमाऊं’, ‘और कमाऊं’ की तृष्णा जब तक हमारी समझ में नहीं आएगी, तब तक यह हमें परेशान करती रहेगी। जीवन की सच्चाई यह है कि धन कोई भी प्यारा अनुभव या रिश्ता नहीं खरीद सकता। यही असली समृद्धि है- आंतरिक संतोष और प्रेम में।

इसलिए जब भी आप ‘और कमाऊं’ की इच्छा महसूस करें, थोड़ी देर के लिए रुकें। आज की व्यस्तता से थोड़ी दूर हटकर, अपने भीतर झांकें। तभी आप वास्तव में समझ पाएंगे कि सच्चा धन क्या है।

— श्रुति शर्मा, टीम The Odd Naari

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