25 साल- राजनीतिक अस्थिरता के झटकों से बेहाल

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25 साल- राजनीतिक अस्थिरता के झटकों से बेहाल

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भाजपा के डार्क रूम में डेवलप हुई राजनीतिक अस्थिरता की अधिकतर फिल्म

उत्तराखण्ड 25 साल- बार-बार सीएम बदलने से विकास योजनाएं प्रभावित

अविकल थपलियाल

देहरादून। नौ नवंबर 2000 को गठित उत्तराखण्ड आजकल अपनी स्थापना के रजत जयंती समारोह में व्यस्त है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू नवंबर के पहले सप्ताह में विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित करेंगी। उधर, प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के भी उत्तराखण्ड पधारने की खबर है।

जाहिर, है आने वाले दिनों में बीते 25 साल की कुल जमा उपलब्धियों का ब्यौरा पेश किया जाएगा। जिस समय उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। ठीक उसी समय नवंबर 2000 में दो अन्य राज्य झारखंड व छत्तीसगढ़ भी अस्तित्व में आये।

इन 25 साल में उत्तराखंड में घोटालों से ज्यादा गूंज कुर्सी की जंग की रही। राज्य गठन के समय से ही नेताओं की महत्वाकांक्षा ने उत्तराखंड को कई बार राजनीतिक अस्थिरता के गहरे गड्ढे में धकेला।

नये व आर्थिक दृष्टि से कमजोर उत्तराखण्ड को राजनीति के इस कुर्सी-कुर्सी खेल से आज तक घाटा हो रहा है। भाजपा व कांग्रेस के आकाओं ने उत्तराखंड को कठपुतली की तरह नचाया।
कुर्सी बदल के खेल में कांग्रेस के बजाय भाजपा ने ज्यादा अधीरता का परिचय दिया।
कांग्रेस के दस साल के शासन में एक बार सीएम को बदला गया। लेकिन भाजपा के लगभग 11 साल से अधिक कार्यकाल में स्वामी, खण्डूड़ी, निशंक,त्रिवेंद्र व तीरथ बीच कार्यकाल में कुर्सी से उतार दिए गए।
कांग्रेस के कद्दावर नारायण दत्त तिवारी को कांग्रेस आलाकमान ने पूरे पांच साल सत्ता की चाबी सौंपे रखी। और आज इसीलिए राज्य की जनता, अधिकारी और राजनीतिक दल तिवारी के कार्यकाल में हुए ढांचागत समेत अन्य कार्यों को आज भी गिनाते हैं।

यूं तो झारखंड (15 नवंबर 2000) में भी राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के बूते झारखंड में राजस्व का ग्राफ बेहतर स्थिति में है। इसके उलट छत्तीसगढ़ (1 नवंबर 2000)में जनता ने बीते 25 साल में चार सीएम देखे।
झारखंड में सीएम का आंकड़ा 13 की संख्या तक पहुंचा। जबकि उत्तराखण्ड ने इन 25 साल में 11 नेताओं को सीएम की शपथ लेते देखा। इनमें भाजपा के बीसी खण्डूड़ी ने दो बार सीएम पद की शपथ ली। जुलाई 2021 में भाजपा विधायक पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के 12वें सीएम के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

झारखंड में दो बार राष्ट्रपति शासन लगा।  और उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार गिरते ही 27 मार्च 2016 को राष्ट्र्पति शासन लगा था। कांग्रेस के विजय बहुगुणा व हरक सिंह रावत ने 2016 में कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी। राजनीतिक अस्थिरता की यह पटकथा भाजपा के किले में रची गयी थी। हालांकि, बाद में हरीश रावत सरकार बहाल हुई थी। और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नौ विधायकों की दल बदल कानून के तहत सदस्यता रद्द हुई थी।

कांग्रेस ने 2012 में सीएम बने विजय बहुगुणा को हटा कर 2014 की शुरुआत में हरीश रावत को सीएम बनाकर एकमात्र फेरबदल किया । इधऱ, भाजपा ने अंतरिम सरकार के पहले सीएम नित्यानन्द स्वामी को हटा कर भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बनाया। भाजपा की अंदरूनी जंग से आजिज जनता ने अलग राज्य बनाने वाली भाजपा को किनारे कर 2002 में कांग्रेस को सत्ता सौंप दी।

कांग्रेस आलाकमान ने वरिष्ठ व अनुभवी नारायण दत्त तिवारी को पूरे पांच साल सीयम5 बनाये रखा। अलबत्ता, हरीश गुट और तिवारी का छत्तीस का आंकड़ा बना रहा।

2007 में भाजपा ने खण्डूड़ी को हटा कर निशंक को सीएम बनाया। और फिर पांच साल के अंदर फिर खण्डूड़ी को फिर से सीएम बनाया। लेकिन खण्डूड़ी है जरूरी के नारे के बीच भाजपा एक सीट के अंतर से सत्ता से दूर हो गयी। और 2012 में कांग्रेस ने सत्ता संभाली।

2017 में भी भाजपा ने सीएम बदलने के प्रयोग जारी रखे। और पांच साल में तीन सीएम दे डाले। त्रिवेंद्र, तीरथ के बाद युवा पुष्कर सिंह धामी को जुलाई 2021 में सीएम बनाया। धामी को सीधे विधायक से मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा आलाकमान का यह फैसला काफी चर्चाओं में रहा था।
लेकिन 2012 में जो काम खण्डूड़ी नहीं कर पाए। वो इस बार हो गया। 2012 में खण्डूड़ी की तरह बेशक 2022 के चुनाव में धामी हार गए। लेकिन भाजपा ने सरकार बना कर इतिहास रच दिया। 2022 से सीएम धामी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड अपनी स्थापना के 25 साल पूरा करने जा रहा है।

लेकिन इन बीते 25 साल में फटाफट सीएम बदल से उपजी राजनीतिक महाभारत व अस्थिरता ने कर्ज में डूबे राज्य को कई गहरे जख्म दिए। इस राजनीतिक अस्थिरता के दौर ने  प्रदेश की विकास गति पर भी खूब ब्रेक लगाए।  घोटालों की कहानी के साथ कुर्सी की जंग की फिल्में भी खूब हिट हुई।

इन हिट फिल्मों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के डार्क रूम शूट और डेवलप किया गया। अब 25 साल पूरा होने पर देवभूमि उत्तराखंड राजनीतिक स्थायित्व की ओर बढ़े, बद्री-केदार से अब यही करबद्ध निवेदन है…

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