रक्षा मंत्रालय ने 1.05 लाख करोड़ की खरीद को दी मंजूरी, आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने गुरुवार को लगभग 1.05 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 10 पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) प्रदान की। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, ये सभी खरीद स्वदेशी रूप से की जाएंगी, जिससे रक्षा उत्पादन में 'आत्मनिर्भर भारत' के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और मजबूत होगी। इसे भी पढ़ें: घाना की संसद में बोले PM मोदी, लोकतंत्र हमारे लिए सिस्टम नहीं, संस्कार हैइन स्वीकृतियों में रक्षा संबंधी महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। बयान में कहा गया है कि खरीद के लिए स्वीकृत की गई प्रमुख वस्तुओं में बख्तरबंद रिकवरी वाहन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, तीनों सेनाओं के लिए एकीकृत कॉमन इन्वेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें शामिल हैं। इन प्रणालियों का उद्देश्य भारतीय सशस्त्र बलों की गतिशीलता, वायु रक्षा क्षमताओं और रसद दक्षता को बढ़ाना है, जिससे अंततः उनकी समग्र परिचालन तैयारियों को बढ़ावा मिलेगा। इसे भी पढ़ें: Bihar Elections से पहले जानकी मंदिर की आधारशिला रखेंगे Modi, Ayodhya Ram Mandir भी जाएंगे, मतदाताओं के ध्रुवीकरण की हो रही तैयारी!समुद्री सुरक्षा के लिए समर्थन के एक मजबूत प्रदर्शन में, डीएसी ने मूर्ड माइंस, माइन काउंटर मेजर वेसल्स, सुपर रैपिड गन माउंट्स और सबमर्सिबल ऑटोनॉमस वेसल्स के अधिग्रहण के लिए एओएन भी प्रदान किए। इन प्रणालियों से शत्रुतापूर्ण या संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों में नौसेना और व्यापारी जहाजों दोनों के सामने आने वाले जोखिमों को काफी हद तक कम करने की उम्मीद है। बयान में कहा गया है कि स्वदेशी डिजाइन और विकास को और अधिक गति प्रदान करने के लिए, एओएन को खरीदें (भारतीय-स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित) श्रेणी के तहत प्रदान किया गया।

रक्षा मंत्रालय ने 1.05 लाख करोड़ की खरीद को दी मंजूरी, आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
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कम शब्दों में कहें तो, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 1.05 लाख करोड़ रुपये के 10 महत्वपूर्ण पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों को स्वीकृति प्रदान की है, जो भारतीय रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करेगी।
यह निर्णय रक्षा निर्माण में स्वदेशी उत्पादन को प्राथमिकता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। आधिकारिक बयान के अनुसार, ये खरीद स्वदेशी रूप से की जाएंगी, जो 'आत्मनिर्भर भारत' की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
सेना की प्रमुख आवश्यकताएँ
हाल ही में दी गई स्वीकृति में बख्तरबंद रिकवरी वाहन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, तीनों सेनाओं के लिए एकीकृत कॉमन इन्वेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का अधिग्रहण शामिल है। इन वस्तुओं की खरीद भारतीय सशस्त्र बलों की कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित करने और उनकी परिचालन तैयारियों को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम
इस अधिग्रहण का मुख्य उद्देश्य भारत को अपने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। सरकार द्वारा दी गई स्वीकृति केवल एक वित्तीय सहायता नहीं है, बल्कि यह एक दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत की गई है जो स्वदेशी निर्माण को प्रोत्साहित करती है। इससे भारत की सुरक्षा में सुधार होगा और रक्षा उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में भी यह एक बड़ा कदम होगा।
समुद्री सुरक्षा का नया अध्याय
डीएसी ने समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसमें मूर्ड माइंस, माइन काउंटर मेजर वेसल्स, सुपर रैपिड गन माउंट्स और सबमर्सिबल ऑटोनॉमस वेसल्स के अधिग्रहण के लिए एओएन भी प्रदान किया गया है। इससे भारतीय नौसेना और व्यापारी जहाजों की सुरक्षा में सुधार होगा और शत्रुतापूर्ण समुद्री क्षेत्रों में मुठभेड़ के जोखिमों को कम किया जा सकेगा।
निष्कर्ष
यह स्वीकृति भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की संभावना रखती है। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है जो भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन तैयारियों को काफी हद तक बढ़ावा देगा। यह विकास न केवल सुरक्षाबलों के लिए, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा। भारत अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के अपने लक्ष्य को तेजी से हासिल करने की दिशा में अग्रसर है।
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