मोटापे से जाता है देश में भुखमरी-कुपोषण को रोकने का रास्ता
भारत विडम्बनाओं से भरा देश है। इन्हीं में से एक है मोटापा और भुखमरी। इनमें एक जुड़ाव भी है। एक तरफ अनावश्यक और अत्यधिक खाने से बढऩे वाला मोटापे से होने वाली बीमारियां राष्ट्रव्यापी समस्या बनती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ आबादी का एक बड़े हिस्सा दो वक्त का भरपेट भोजन नसीब नहीं होने से कुपोषित होकर रोगग्रस्त हो रहा है। यदि मोटापा खत्म या नियंत्रित हो जाए तो इससे भुखमरी व कुपोषण के लिए धन की कमी पूरी हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 119वी श्रृंखला में देश में बढ़ती मोटापे की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मोटापे के मामले दोगुने हो गए हैं और भारत में मोटापे की व्यापकता पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयासों से इस चुनौती से निपट सकते हैं। जैसे एक तरीका है कि खाने के तेल में 10 पर्सेंट की कमी करना। भोजन में खाद्य तेल की खपत को कम करने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रधानमंत्री ने देश के दस प्रसिद्ध लोगों को नॉमिनेट किया। मोटापा सिर्फ सेहत का मसला नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा है। एक नई स्टडी के अनुसार, भारत में मोटापे का आर्थिक बोझ 2030 तक बढ़कर 6.7 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष हो जाएगा। यह लगभग 4,700 रुपये प्रति व्यक्ति होगा, जोकि जीडीपी का 1.57 फीसदी है। ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, 2019 में मोटापे का आर्थिक प्रभाव 2.4 लाख करोड़ रुपये था। यह लगभग 1,800 रुपये प्रति व्यक्ति और जीडीपी का 1.02 फीसदी था। 2060 तक यह आंकड़ा बढ़कर 69.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो प्रति व्यक्ति 44,200 रुपये और जीडीपी का 2.5 फीसदी होगा। यह स्टडी बताती है कि मोटापा सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं में क्रमश: 44 प्रतिशत और 41 प्रतिशत लोग अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं। पिछले सर्वेक्षण में यह आंकड़ा क्रमश: 37.7 फीसदी और 36 फीसदी था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। विश्व मोटापा महासंघ ने कहा कि भारत में दुनिया में मोटे व्यक्तियों का तीसरा सबसे बड़ा प्रतिशत है। किसी व्यक्ति को तब मोटापे की श्रेणी में रखा जाता है जब उसका बीएमआई 27.5 से अधिक हो। पिछले 10 वर्षों में, भारत की मोटापे की दर लगभग तीन गुनी हो गई है, जिसका असर देश की शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी पर पड़ रहा है। मोटापे का वैश्विक संकट सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मोटापे की दर अधिक है, जो देश के तेज़ आर्थिक विस्तार और बदलती जीवन शैली मानकों के साथ मेल खाता है। भारत में 100 मिलियन से अधिक लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। भारत में 12 प्रतिशत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं पेट के मोटापे से ग्रस्त हैं। केरल (65.4 प्रतिशत), तमिलनाडु (57.9 प्रतिशत), पंजाब (62.5 प्रतिशत) और दिल्ली (59 प्रतिशत) में यह दर बहुत ज़्यादा है। इसे भी पढ़ें: मोदी का मोटापामुक्त भारत: स्वास्थ्य-क्रांति का आधारमध्य प्रदेश (24.9 प्रतिशत) और झारखंड (23.9 प्रतिशत) में यह दर कम है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में पहले से ही 14.4 मिलियन बच्चे मोटे हैं। भारत में बचपन में मोटापे के प्राथमिक कारणों में खराब आहार विकल्प, निष्क्रियता और एक गतिहीन जीवन शैली शामिल है। प्रोसेस्ड स्नैक्स और फास्ट फूड की बढ़ती लोकप्रियता के कारण बच्चे उच्च कैलोरी, कम पोषक तत्व वाले आहार खा रहे हैं, जिससे वजन बढ़ता है और मोटापा होता है। बचपन में मोटापे के परिणाम व्यापक हैं और लंबे समय में बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मोटे बच्चों को टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और सांस लेने में कठिनाई जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं होने का उच्च जोखिम होता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें निराशा और खराब आत्मसम्मान सहित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव होने की अधिक संभावना है, जो उनके सामान्य स्वास्थ्य को खराब कर सकता है। विडम्बना यह है कि देश मोटापे से होने वाली चुनौतियों से जूझ रहा है, वहीं कुपोषण की समस्या से भी जूझ रहा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2024 में 127 देशों में भारत का स्थान 105वां है। हालांकि पिछले सालों की तुलना में इस साल भारत की रैंक में सुधार हुआ है। लेकिन भारत अभी भी गंभीर भूख की समस्याओं वाले देशों में शामिल है। 2024 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 27.3 है जो भुखमरी के एक गंभीर स्तर को दर्शाता है। रिपोर्ट में हाल के वर्षों में भारत में कुपोषण के प्रसार में मामूली वृद्धि का उल्लेख किया गया है। भारत की रैंकिंग अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से पीछे हैं, जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से केवल ऊपर है। श्रीलंका 56, नेपाल 68 और बांग्लादेश 84वें स्थान पर भारत से काफी आगे हैं। भारत में कुपोषण की जो स्थिति है वो किसी से छिपी नहीं है। यहां बहुतों को तो पेट भर खाना भी नहीं मिलता और जिनको मिल भी रहा है उनके भोजन में पोषण की भारी कमी है। इसका खामियाजा नन्हें बच्चों को उठाना पड़ रहा है। भारत को अभी भी बाल कुपोषण जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विश्व स्तर पर बच्चों में दुबलापन (18.7 प्रतिशत) सबसे अधिक है। देश में बच्चों के बौनेपन की दर 35.5 प्रतिशत, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 2.9 प्रतिशत और कुपोषण का प्रसार 13.7 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भारत में पोषण की स्थिति गंभीर बताई गई है। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक देश में पांच वर्ष से कम उम्र के 31.7 फीसदी बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं। मतलब की यह बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं। यह रिपोर्ट "लेवल्स एंड ट्रेंड इन चाइल्ड मालन्यूट्रिशन 2023" संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और वल्र

मोटापे से जाता है देश में भुखमरी-कुपोषण को रोकने का रास्ता
The Odd Naari
लेखक: सुषमा तिवारी, टीम नेता-नेगारी
भूमिका
भारत में भुखमरी और कुपोषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। वहीं, इस समस्या का एक छिपा हुआ पक्ष मोटापे के रूप में उभरता है, जो स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ पोषण की कमी का कारण भी बनता है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि मोटापा केवल एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज में भुखमरी और कुपोषण को रोकने की राह में एक बाधा भी है।
मोटापे का प्रभाव
मोटापे के बढ़ने से हमारे समाज में कुपोषण का स्तर भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा है। यह स्थिति विशेषकर उन परिवारों में देखी जा सकती है, जहां लोग फास्ट फूड और जंक फूड का सेवन अधिक करते हैं। यह भोजन पोषक तत्वों से भरपूर नहीं होते और इसके कारण बच्चों और युवाओं में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है। इसके अलावा, मोटापे के बढ़ने के परिणामस्वरूप अनेक स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं, जैसे कि डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, और हृदय रोग।
भुखमरी और कुपोषण का संबंध
भुखमरी और कुपोषण का स्पष्ट संबंध मोटापे से होता है। जब लोग कुपोषित होते हैं, तो उनका शरीर सही तरीके से कार्य नहीं कर पाता। वहीं, मोटापे से पीड़ित लोग अक्सर उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जो उन्हें त्वरित संतोष तो देते हैं, लेकिन पोषण की कमी का कारण बनते हैं। इस प्रकार से, मोटापे की समस्या भी समाज के विकास में रुकावट डालती है।
समाधान
कुपोषण और भुखमरी को रोकने के लिए हमें स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। लोगों को सही प्रकार के आहार और स्वस्थ खानपान की आदतें विकसित करनी चाहिए। सरकारी योजनाओं जैसे 'पोषण अभियान' और 'मिड-डे मील योजना' का सही कार्यान्वयन भी महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी को पौष्टिक भोजन प्राप्त हो।
निष्कर्ष
मोटापे को रोकना और अपने समुदाय में स्वास्थ्य एवं पोषण के प्रति जागरूकता फैलाना हम सभी की जिम्मेदारी है। यदि हम इस दिशा में प्रयास करते हैं, तो हम न केवल मोटापे को नियंत्रित कर सकेंगे, बल्कि भुखमरी और कुपोषण को भी समाप्त करने में मदद कर सकेंगे। सभी के सामूहिक प्रयास से ही हम इस गंभीर समस्या का समाधान निकालने में सक्षम हो सकेंगे।
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