भारत का ताइवान के प्रति स्थिर रुख: विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण

ताइवान पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है और नयी दिल्ली के ताइवान के साथ आर्थिक, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित रिश्ते हैं। सरकारी सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। यह स्पष्टीकरण ऐसे समय पर आया जब चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान को गलत तरीके से पेश करते हुए कहा कि उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात के दौरान कहा कि नयी दिल्ली, ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है। जयशंकर की वांग से बातचीत उनके दो दिवसीय दौरे पर भारत आने के तुरंत बाद सोमवार शाम को हुई। विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘चीनी पक्ष ने ताइवान का मुद्दा उठाया। भारतीय पक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि इस मुद्दे पर उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।’’ इसमें कहा गया, ‘‘इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, भारत का ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंधों पर केंद्रित रिश्ता है और यह आगे भी जारी रहेगा। भारतीय पक्ष ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि चीन भी इन्हीं क्षेत्रों में ताइवान के साथ सहयोग करता है।’’ एक अन्य सूत्र ने बताया कि सोमवार की बैठक में वांग ने भारतीय पक्ष से ताइवान के साथ कोई समझौता न करने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि वांग के आह्वान पर जयशंकर ने आश्चर्य जताया कि यह कैसे संभव है, जब चीन स्वयं ताइवान के साथ उन्हीं क्षेत्रों में सहयोग कर रहा है, जिनमें भारत कर रहा है। सूत्रों ने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय ने जयशंकर के बयान को गलत तरीके से उद्धृत किया। अतीत में भारत ने ‘एक चीन’ नीति का समर्थन किया था, लेकिन 2011 के बाद से यह किसी द्विपक्षीय दस्तावेज़ में शामिल नहीं है। चीन अक्सर भारत से ‘एक-चीन’ नीति का पालन करने का आह्वान करता रहा है। भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, फिर भी दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं। भारत ने 1995 में ताइपे में भारत-ताइपे संघ (आईटीए) की स्थापना की थी, ताकि दोनों पक्षों के बीच संपर्क को बढ़ावा दिया जा सके और व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुगम बनाया जा सके। आईटीए को सभी वाणिज्यिक और पासपोर्ट सेवाएं प्रदान करने का भी अधिकार दिया गया है। उसी वर्ष, ताइवान ने भी दिल्ली में ताइपे आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की थी। पिछले कुछ वर्षों में भारत और ताइवान के बीच व्यापारिक संबंधों में प्रगति हुई है। भारत विशेष रूप से सेमीकंडक्टर सहित उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ताइवान के साथ सहयोग चाहता है। ताइवान 2.3 करोड़ से अधिक आबादी का एक स्व-शासित द्वीप है जो दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का उत्पादन करता है। इनमें सबसे उन्नत चिप्स शामिल हैं जो लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे स्मार्टफोन, कार घटकों, डेटा केंद्रों, लड़ाकू जेट और एआई प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक हैं। दोनों पक्षों ने पिछले साल एक प्रवासन और गतिशीलता समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जो स्व-शासित द्वीप में विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय कामगारों के लिए रोजगार को सुगम बनाएगा। दोनों पक्ष कई वर्षों से इस समझौते पर बातचीत कर रहे थे।

भारत का ताइवान के प्रति स्थिर रुख: विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण
ताइवान पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं: विदेश मंत्रालय

भारत का ताइवान के प्रति स्थिर रुख: विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण

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कम शब्दों में कहें तो, भारत का ताइवान के प्रति रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। नयी दिल्ली ने ताइवान के साथ अपने आर्थिक, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखने की बात कही है। यह जानकारी सरकारी सूत्रों ने मंगलवार को साझा की।

यह स्पष्टीकरण तब आया जब चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा दिए गए एक बयान को गलत तरीके से पेश किया। चीनी अधिकारियों ने दावा किया कि जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात के दौरान कहा कि नयी दिल्ली, ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है। वास्तव में, जयशंकर की वांग से बातचीत उनके भारत दौरे के तुरंत बाद सोमवार शाम को हुई।

भारत और ताइवान के संबंध

विदेश मंत्रालय ने कहा, "चीनी पक्ष ने ताइवान का मुद्दा उठाया। भारतीय पक्ष ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।" इस बयान में यह भी कहा गया कि भारतीय सरकार का ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित है, और यह संबंध आगे भी जारी रहेगा।

भारतीय अधिकारियों ने यह भी कहा है कि ताइवान के साथ रिश्ते को वे सहयोगात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं। चर्चा के दौरान, वांग ने भारतीय पक्ष से ताइवान के साथ कोई समझौता न करने की अपील की। इसके जवाब में, जयशंकर ने सवाल किया कि यह कैसे संभव है, जब चीन ताइवान के साथ उन्हीं क्षेत्रों में सहयोग कर रहा है, जिसमें भारत कर रहा है।

एक-चीन नीति और द्विपक्षीय संबंध

सूत्रों ने यह भी बताया कि चीनी विदेश मंत्रालय ने जयशंकर के बयान को गलत तरीके से उद्धृत किया। भारत ने अतीत में 'एक चीन' नीति का समर्थन किया था, लेकिन 2011 के बाद से यह किसी द्विपक्षीय दस्तावेज़ में शामिल नहीं है। हालांकि, भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, इसके बावजूद दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ रहा है।

1995 में भारत ने ताइपे में भारत-ताइपे संघ (आईटीए) की स्थापना की थी, जो दोनों पक्षों के बीच संपर्क बढ़ाने और व्यापार, पर्यटन, एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुगम बनाने के लिए बनाया गया था। इस संघ को वाणिज्यिक और पासपोर्ट सेवाएं प्रदान करने का अधिकार भी है।

उच्च प्रौद्योगिकी का महत्व

भारत और ताइवान के बीच पिछले कुछ वर्षों में व्यापार में काफी प्रगति हुई है। भारत, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर समेत उच्च तकनीक के क्षेत्र में ताइवान के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है। ताइवान, 2.3 करोड़ से अधिक आबादी वाला एक स्व-शासित द्वीप है, जो लगभग 70 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का वैश्विक उत्पादन करता है। ये सेमीकंडक्टर स्मार्टफोन, डेटा केंद्रों और एआई प्रौद्योगिकियों में आवश्यक होते हैं।

दोनों पक्षों ने पिछले साल एक प्रवासन और गतिशीलता समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो भारतीय कामगारों के लिए ताइवान में रोजगार के अवसरों को सुगम बनाता है। यह समझौता दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध को एक नया आयाम देने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारत का ताइवान के प्रति रुख अपने आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक पहलुओं में मजबूत बना हुआ है। चीनी दबाव के बावजूद, भारत ने स्पष्ट किया है कि उसके ताइवान के साथ संबंधों में कोई बदलाव नहीं आया है। यह स्थिति केवल भारत और ताइवान के बीच सहयोग को बढ़ावा दे रही है, जो दोनों देशों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।

यह घटना अंतरराष्ट्रीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाती है, जहां भारत और ताइवान एक नई साझेदारी के तहत भविष्य में और आगे बढ़ सकते हैं।

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