सुप्रीम कोर्ट में AI डीपफेक रेगुलेशन पर जनहित याचिका, निजता व राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र सरकार से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI आधारित तकनीकों को लेकर एक व्यापक नियामक और लाइसेंसिंग ढांचा तैयार करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता आरती साह ने कहा है कि खास तौर पर ऐसे एआई सिस्टम, जो वास्तविक लोगों की आवाज, तस्वीर या वीडियो की हूबहू नकल कर सकते हैं, उनके लिए तुरंत कानूनी व्यवस्था बनाना जरूरी है।याचिका के मुताबिक गहराई से बनाई गई फर्जी सामग्री यानी डीपफेक का बेकाबू प्रसार लोगों की निजता, गरिमा और प्रतिष्ठा का गंभीर उल्लंघन कर रहा है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की तकनीकों ने पहले ही कई व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाया है और यह सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनती जा रही हैं। बता दें कि हाल के दिनों में कई मशहूर हस्तियों जैसे अक्षय कुमार, कुमार सानू और पत्रकार सुधीर चौधरी को डीपफेक से जुड़ी शिकायतों पर दिल्ली और बॉम्बे हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिल चुकी हैं।मौजूद जानकारी के अनुसार याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और दूरसंचार विभाग (DoT) को एक वैधानिक व्यवस्था बनाने का निर्देश देने की अपील की गई है, ताकि एआई तकनीकों का जिम्मेदाराना उपयोग सुनिश्चित हो सके और गूगल, मेटा जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से जवाबदेही तय हो सके। याचिकाकर्ता ने अंतरराष्ट्रीय उदाहरण देते हुए बताया है कि यूरोपीय संघ, अमेरिका, चीन और सिंगापुर ने पहले से ही जोखिम आधारित वर्गीकरण, लेबलिंग और सख्त प्रवर्तन प्रणालियों की शुरुआत कर दी हैं।गौरतलब है कि याचिका में सरकार की निष्क्रियता को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताया गया है। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म डीपफेक शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई नहीं करते, जिससे पीड़ितों को राहत नहीं मिल पाती हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के महत्त्वपूर्ण फैसलों जैसे पुट्टस्वामी केस (निजता अधिकार) और तहरीन पूनावाला केस (डिजिटल हिंसा रोकथाम) का हवाला देते हुए कहा गया है कि अब न्यायिक हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया है।याचिका में तीन प्रमुख आदेशों की मांग की गई है। पहला, केंद्र सरकार को एआई तकनीकों पर व्यापक नियामक ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया जाए। दूसरा, डिजिटल प्लेटफॉर्म को डीपफेक सामग्री हटाने के लिए पारदर्शी और समयबद्ध तंत्र बनाने को अनिवार्य किया जाए। और तीसरा, सरकार, तकनीक विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के सदस्यों की एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए जो नैतिक एआई मानकों की सिफारिश कर सके। याचिका में चेतावनी दी गई है कि डीपफेक तकनीक कुछ ही क्षणों में व्यक्तियों, संस्थानों और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती है और बिना तत्काल हस्तक्षेप के इसे चुनावों को प्रभावित करने तथा सामाजिक वैमनस्य फैलाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता हैं

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र सरकार से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI आधारित तकनीकों को लेकर एक व्यापक नियामक और लाइसेंसिंग ढांचा तैयार करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता आरती साह ने कहा है कि खास तौर पर ऐसे एआई सिस्टम, जो वास्तविक लोगों की आवाज, तस्वीर या वीडियो की हूबहू नकल कर सकते हैं, उनके लिए तुरंत कानूनी व्यवस्था बनाना जरूरी है।

याचिका के मुताबिक गहराई से बनाई गई फर्जी सामग्री यानी डीपफेक का बेकाबू प्रसार लोगों की निजता, गरिमा और प्रतिष्ठा का गंभीर उल्लंघन कर रहा है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की तकनीकों ने पहले ही कई व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाया है और यह सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनती जा रही हैं। बता दें कि हाल के दिनों में कई मशहूर हस्तियों जैसे अक्षय कुमार, कुमार सानू और पत्रकार सुधीर चौधरी को डीपफेक से जुड़ी शिकायतों पर दिल्ली और बॉम्बे हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिल चुकी हैं।

मौजूद जानकारी के अनुसार याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और दूरसंचार विभाग (DoT) को एक वैधानिक व्यवस्था बनाने का निर्देश देने की अपील की गई है, ताकि एआई तकनीकों का जिम्मेदाराना उपयोग सुनिश्चित हो सके और गूगल, मेटा जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से जवाबदेही तय हो सके। याचिकाकर्ता ने अंतरराष्ट्रीय उदाहरण देते हुए बताया है कि यूरोपीय संघ, अमेरिका, चीन और सिंगापुर ने पहले से ही जोखिम आधारित वर्गीकरण, लेबलिंग और सख्त प्रवर्तन प्रणालियों की शुरुआत कर दी हैं।

गौरतलब है कि याचिका में सरकार की निष्क्रियता को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताया गया है। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म डीपफेक शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई नहीं करते, जिससे पीड़ितों को राहत नहीं मिल पाती हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के महत्त्वपूर्ण फैसलों जैसे पुट्टस्वामी केस (निजता अधिकार) और तहरीन पूनावाला केस (डिजिटल हिंसा रोकथाम) का हवाला देते हुए कहा गया है कि अब न्यायिक हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया है।

याचिका में तीन प्रमुख आदेशों की मांग की गई है। पहला, केंद्र सरकार को एआई तकनीकों पर व्यापक नियामक ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया जाए। दूसरा, डिजिटल प्लेटफॉर्म को डीपफेक सामग्री हटाने के लिए पारदर्शी और समयबद्ध तंत्र बनाने को अनिवार्य किया जाए। और तीसरा, सरकार, तकनीक विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के सदस्यों की एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए जो नैतिक एआई मानकों की सिफारिश कर सके। याचिका में चेतावनी दी गई है कि डीपफेक तकनीक कुछ ही क्षणों में व्यक्तियों, संस्थानों और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती है और बिना तत्काल हस्तक्षेप के इसे चुनावों को प्रभावित करने तथा सामाजिक वैमनस्य फैलाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता हैं