नागपुर में विजयादशमी पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का महत्वपूर्ण संबोधन: सुरक्षा, अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के मुद्दे

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के विजयादशमी समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश के सामने खड़ी चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है।कश्मीर हमला और अंतरराष्ट्रीय समर्थनभागवत ने अपने भाषण की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए उस आतंकी हमले से की, जिसमें 26 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। उन्होंने कहा कि इस घटना ने एक ओर भारतीय समाज की एकजुटता और नेतृत्व की दृढ़ता दिखाई, तो दूसरी ओर यह भी स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक स्तर पर हमारे साथ वास्तव में कौन खड़ा है।नक्सलवाद कमजोर, विकास पर जोरआंतरिक सुरक्षा पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि नक्सलवाद अब काफी हद तक काबू में है। सरकार की सख्त नीति और जनता की जागरूकता से इस समस्या को नियंत्रित किया गया है। हालांकि उन्होंने आगाह किया कि यदि प्रभावित क्षेत्रों में न्याय और विकास नहीं पहुंचा, तो यह समस्या फिर सिर उठा सकती है।असमानता और आत्मनिर्भर भारतअर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई और पूंजी का सीमित हाथों में सिमटना गंभीर चुनौती है। उन्होंने स्वदेशी और स्वावलंबन को इसका समाधान बताते हुए कहा कि वैश्विक व्यापार नीतियों से सबक लेकर भारत को आत्मनिर्भर बनना होगा।हिमालयी संकट को चेतावनी बतायाभागवत ने पर्यावरणीय चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन, अनियमित बारिश और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसी आपदाएं बढ़ी हैं। उनके मुताबिक, हिमालय केवल भारत ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा और जल संसाधन का आधार है।पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंतादक्षिण एशिया के हालात पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में हिंसक विरोधों से सरकारें बदलीं, लेकिन इस तरह का रास्ता स्थायी नहीं हो सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि बदलाव केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही संभव है। पड़ोसी देशों को “परिवार का हिस्सा” बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी स्थिरता और समृद्धि भारत के लिए भी जरूरी है।

नागपुर में विजयादशमी पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का महत्वपूर्ण संबोधन

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कम शब्दों में कहें तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी समारोह में भारत के सामने खड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए सभी को एकता और विकास की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष का विजयादशमी समारोह इस बार भी बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश की चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर अपने विचार रखे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है।

कश्मीर हमला और अंतरराष्ट्रीय समर्थन

भागवत ने अपने संबोधन की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए उस दुर्भाग्यपूर्ण आतंकी हमले से की, जिसमें 26 श्रद्धालु शिकार हुए थे। इस घटना ने भारतीय समाज की एकजुटता और नेतृत्व की दृढ़ता को उजागर किया। भागवत ने कहा कि इस प्रकार की घटनाओं से यह भी प्रमाणित हुआ कि हमारे साथ वैश्विक स्तर पर वास्तव में कौन खड़ा है। यह समय है कि हम एकजुट होकर अपने समाज की सुरक्षा को प्राथमिकता दें।

नक्सलवाद कमजोर, विकास पर जोर

आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर बात करते हुए, भागवत ने कहा कि नक्सलवाद अब पहले की तुलना में काफी हद तक काबू में है। सरकार की कठोर नीतियों और जनता की जागरूकता ने इस समस्या को नियंत्रित करने में मदद की है। फिर भी, उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रभावित क्षेत्रों में न्याय और विकास सही तरीके से नहीं पहुंचा, तो यह समस्या फिर से सिर उठा सकती है।

असमानता और आत्मनिर्भर भारत

अर्थव्यवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई और पूंजी का सीमित हाथों में सिमटना एक गंभीर चुनौती है। भागवत ने सुझाव दिया कि स्वदेशी और स्वावलंबन को अपनाकर भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना होगा। उन्होंने वैश्विक व्यापार नीतियों से सीख लेने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि भारत को अपनी क्षमता पर विश्वास रखना चाहिए।

हिमालयी संकट को चेतावनी बताया

पर्यावरणीय चुनौतियों पर भी भागवत ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन, अनियमित बारिश और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसी आपदाएं बढ़ी हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हिमालय न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा और जल संसाधन का आधार भी है।

पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंता

दक्षिण एशिया के हालात पर चिंता जताते हुए भागवत ने कहा कि नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में हिंसक विरोधों से सरकारें बदलीं, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बदलाव केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही संभव है। उन्होंने पड़ोसी देशों को "परिवार का हिस्सा" बताते हुए कहा कि उनके स्थिरता और समृद्धि का भारत पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इस संबोधन ने सभी को एकजुटता और विकास की दिशा में आगे बढ़ने का संदेश दिया है। संघ प्रमुख ने यह सुनिश्चित किया कि हम सभी को अपने समाज और देश के विकास के लिए सही दिशा में कदम उठाने होंगे।

इसके साथ ही, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पड़ोसियों की स्थिरता भी हमारे लिए आवश्यक है। एक साथ मिलकर ही हम बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

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सादर,

टीम द ओड नारी
श्रेया शर्मा