दिल्ली के लाल किले के पास हुए भीषण धमाके में 13 लोगों की मौत के बाद जांच तेजी से आगे बढ़ रही है और उसी कड़ी में अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर और फाउंडिंग ट्रस्टी जव्वाद अहमद सिद्दीकी का नाम भी जांच एजेंसियों के दायरे में आ गया है।
शुरुआत में यह शक तब गहराया जब फरीदाबाद में सक्रिय कथित “व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल” से जुड़े तीन डॉक्टर डॉ उमर नबी, डॉ मुअज्जमिल शकील और शाहीन शाहिद अल-फलाह यूनिवर्सिटी में काम करते मिले हैं। मौजूद जानकारी के अनुसार यही बातें एजेंसियों को विश्वविद्यालय और उससे जुड़े लोगों की गतिविधियों पर और गहराई से नजर डालने की वजह बनी हैं।
जव्वाद सिद्दीकी मूल रूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं और देव अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं। बता दें कि इंदौर पुलिस के अनुसार उनका परिवार कभी महू के कायस्थ मोहल्ले में रहता था, जहां उनके पिता मोहम्मद हमीद सिद्दीकी ‘सेहर काज़ी’ के पद पर रहे हैं। स्थानीय पुलिस अब उनके पुराने संपर्कों और रिश्तेदारों के बारे में जानकारी जुटा रही है।
गौरतलब है कि सिद्दीकी ने 18 सितंबर 1992 को अल-फलाह इंवेस्टमेंट्स में डायरेक्टर के तौर पर काम शुरू किया था। इसके बाद 1995 में बनी अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट की गतिविधियों में उनका अहम योगदान रहा, जो आज यूनिवर्सिटी और उससे जुड़े कई संस्थानों का संचालन कर रहा है।
विश्वविद्यालय का मुख्य कैंपस फरीदाबाद के धौज गांव में फैला हुआ है, जिसका क्षेत्रफल करीब 78 एकड़ है। विश्वविद्यालय के अलावा सिद्दीकी करीब 15 कंपनियों से भी जुड़े हुए हैं, जो शिक्षा, सॉफ्टवेयर, कृषि कारोबार और रिसर्च जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं। उनके परिवार के कई सदस्य और सहयोगी भी इन कंपनियों में डायरेक्टर के रूप में जुड़े हुए हैं। मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि इनमें से कई कंपनियों का रजिस्टर्ड पता जामिया नगर के एक ही स्थान पर है, जो उनके कारोबारी नेटवर्क पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
इधर विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन घटनाओं से खुद को अलग दिखाने की कोशिश की है। यूनिवर्सिटी के लीगल और फाइनेंस अधिकारी मोहम्मद रज़ी ने कहा है कि उन्हें इन डॉक्टरों की विश्वविद्यालय के बाहर की गतिविधियों की कोई जानकारी नहीं थी और उनका कहना है कि इस मामले की वजह से विश्वविद्यालय के मेहनती विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
जव्वाद सिद्दीकी का पुराना रिकॉर्ड भी अब जांच एजेंसियों के रडार पर है। मौजूद जानकारी के मुताबिक वर्ष 2000 में दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में उन पर और उनके कुछ साथियों पर निवेशकों को जाली शेयरों के जरिए ठगने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई थी।
इस मामले में करीब 7.5 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी का उल्लेख था। सिद्दीकी को 2001 में गिरफ्तार किया गया था और उन्होंने तीन साल से ज्यादा समय तिहाड़ जेल में बिताया था। उनकी जमानत दिल्ली हाई कोर्ट ने 2003 में खारिज कर दी थी, लेकिन बाद में 2004 में उन्हें पीड़ितों को पैसे लौटाने की शर्त पर जमानत मिल गई थी। कई शिकायतकर्ता आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम परिवारों से थे, जिन्हें कथित ‘हलाल’ निवेश योजनाओं में पैसा लगाने के लिए प्रेरित किया गया था।
अब सरकार ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के खातों की फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं, जबकि ईडी समेत कई एजेंसियां ट्रस्ट और उससे जुड़ी कंपनियों के फंड के रास्तों की जांच कर रही हैं। कई कंपनियों के निष्क्रिय हो जाने और कुछ के सॉफ्टवेयर, मेडिकल रिसर्च, इंजीनियरिंग, ब्रॉडकास्टिंग और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट जैसे क्षेत्रों में पहले सक्रिय रहने की जानकारी भी सामने आई है।
जामिया नगर स्थित यूनिवर्सिटी कार्यालय के कर्मचारियों ने बताया है कि विश्वविद्यालय का लाल किला धमाके से जुड़े गिरफ्तार डॉक्टरों से कोई औपचारिक संबंध नहीं है और यहां का कार्यालय ट्रस्ट की एक इमारत के ग्राउंड फ्लोर से संचालित होता है। जांच एजेंसियां फिलहाल सभी उपलब्ध कड़ियों को जोड़कर यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या विश्वविद्यालय या उससे जुड़े किसी संस्थान की गतिविधियों का इस पूरे नेटवर्क से कोई गहरा रिश्ता रहा है, और इसी दिशा में पूछताछ व दस्तावेज़ों की छानबीन जारी है।