मैंने हिंदी सिखा दी? राज ठाकरे के डुबो-डुबोकर मारेंगे वाले बयान पर निशिकांत दुबे ने ली चुटकी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे की 'डुबो-डुबो के मारेंगे' धमकी का जवाब दिया और पूछा कि क्या मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी? ठाकरे ने शुक्रवार को दुबे की उस टिप्पणी का सार्वजनिक रूप से जवाब दिया, जिसमें भाजपा नेता ने कहा था, "पटक-पटक के मारेंगे।" उन्होंने अपनी ही चेतावनी देते हुए कहा, "तुम मुंबई आओ। मुंबई के समुंदर में डूबो-डूबो के मारेंगे।" इसे भी पढ़ें: भाजपा मुझे दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन...शराब घोटाला मामले में बेटे की गिरफ्तारी पर बोले भूपेश बघेलदुबे ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए अपने पहले के बयान का बचाव किया और कहा कि वह इसे वापस नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मेरी मातृभाषा हिंदी है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे कोई महान राजा नहीं हैं। मैं एक सांसद हूँ और मैं कानून अपने हाथ में नहीं लेता। लेकिन वे जहाँ भी जाएँगे, लोग जवाब देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आप गरीबों को पीटेंगे, तो वे एक दिन बदला लेंगे। मनसे की पिछली कार्रवाइयों का ज़िक्र करते हुए दुबे ने कहा, "उन्होंने 1956 में गुजरातियों के ख़िलाफ़, फिर दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ और अब हिंदी भाषियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। उनका इतिहास ऐसा है कि हर कोई उनसे नाराज़ है।" इसे भी पढ़ें: अनियंत्रित मुस्लिम घुसपैठ का निडरता से कर रहे विरोध..., ममता के आरोपों पर हिमंत बिस्वा सरमा का पलटवार'मराठी मानुस' के मुद्दे पर ज़ोरदार रणनीति के लिए जाने जाने वाले ठाकरे, स्कूलों में कक्षा एक से तीसरी भाषा शुरू करने के भाजपा सरकार के फ़ैसले, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया, के विरोध में अपने चचेरे भाई और शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ फिर से जुड़ गए हैं। दुबे ने उन पर और हिंदी के ख़िलाफ़ अभियान पर हमला बोला था, जिसके तहत मुंबई में लोगों के साथ मारपीट की कुछ घटनाएँ हुईं, जब छोटे ठाकरे ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि अगर वे अपने आंदोलन के दौरान किसी की पिटाई करने का फ़ैसला करते हैं तो उसका वीडियो न बनाएँ।मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी ? https://t.co/5YpM1SrzDt— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 18, 2025

मैंने हिंदी सिखा दी? राज ठाकरे के डुबो-डुबोकर मारेंगे वाले बयान पर निशिकांत दुबे ने ली चुटकी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे की ‘डुबो-डुबो के मारेंगे’ की धमकी पर व्यंग्य करते हुए कहा, "क्या मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी?" यह बयान हाल ही में राज ठाकरे द्वारा की गई टिप्पणी के विकल्प में आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि दुबे को उनके बयान का बदला लेना चाहिए। यह राजनीतिक विवाद इस समय की गरमी को और बढ़ाने वाला है।
बयान का पृष्ठभूमि
राज ठाकरे ने शुक्रवार को दुबे की उस टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा था, "तुम मुंबई आओ। मुंबई के समुंदर में डूबो-डुबो के मारेंगे।" इस बयान के बाद, दुबे ने स्पष्ट किया कि वे अपने पिछले बयान को वापस नहीं लेंगे और इस पर गर्व महसूस करते हैं कि उनकी मातृभाषा हिंदी है। उन्होंने कहा, "राज और उद्धव ठाकरे कोई महान राजा नहीं हैं। मैं केवल एक सांसद हूँ और मैं कानून अपने हाथ में नहीं लेता। लेकिन लोग जवाब देंगे।"
राज ठाकरे का इतिहास
राज ठाकरे, जो मराठी मानुस के मुद्दे पर जोरदार रणनीति के लिए जाने जाते हैं, ने पहले भी विभिन्न भाषाई समूहों के खिलाफ अभियान चलाए हैं। उनके इस भाषा विवाद की जड़ें महाराष्ट्र में एजेंडों से जुड़ी हुई हैं, जहां कई बार हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। दुबे ने मनसे द्वारा किए गए पहले के हमलों का भी जिक्र किया, जिसमें गुजरातियों और दक्षिण भारतीयों के खिलाफ प्रदर्शन शामिल थे।
निशिकांत दुबे का मत
दुबे ने यह भी कहा, "यदि आप गरीबों को पीटेंगे, तो वे एक दिन आपसे बदला लेंगे।" यह वह चेतावनी है जो उन्होंने ठाकरे की पार्टी के इतिहास को देखते हुए दी। दुबे ने मनसे के पिछले कार्यों को इस संदर्भ में उठाया, जिसने उन्हें आम जनता में एक नकारात्मक छवि दिलाई है।
इस राजनीतिक नाटक में अद्भुत तत्व यह है कि यह दोनों पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण चर्चा का मुद्दा बन गया है, न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में। यह दर्शाता है कि कैसे एक बयान पूरे राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।
भविष्य के लिए संकेत
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद किस दिशा में बढ़ता है। क्या यह केवल एक राजनीतिक बयानबाज़ी है या इस मामले में शायद और भी गहराइयाँ छिपी हैं? राज ठाकरे की रणनीतियाँ और निशिकांत दुबे का प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण बातचीत का हिस्सा बन गए हैं, जो आने वाले समय में और भी गंभीर मुद्दों को जन्म दे सकता है।
समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भाषा और पहचान का यह संघर्ष केवल एक पेशेवर राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक समीकरण का भी हिस्सा है जो भारतीय समाज में देखा जा रहा है।
हमारी आशा है कि दर्शक इस मुद्दे पर अपनी राय साझा करेंगे और देखेंगे कि आगे क्या होता है।
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