देवदारों पर मंडरा रहा खतरा, हर्षिल में फिर गूंजा ‘रक्षासूत्र आंदोलन
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इको-सेंसिटिव जोन में गंगोत्री रोड चौड़ीकरण, 6 हजार पेड़ हटाने की मंजूरी
अविकल उत्तराखंड
उत्तरकाशी। हर्षिल घाटी में ऑल वेदर रोड चौड़ीकरण के नाम पर सैकड़ों देवदार के पेड़ों पर लगे निशान ने स्थानीय जनता, सामाजिक कार्यकर्ताओं और देशभर से पहुंचे पर्यावरण प्रेमियों को झकझोर दिया।
सड़क विस्तार की मौजूदा योजना में 10-11 मीटर चौड़ाई तक जंगल काटे जाने की आशंका ने लोगों को चिंतित कर दिया है। इसी के विरोध में रविवार को हजारों लोग देवदारों पर रक्षासूत्र बांधकर वृक्षों को बचाने की सामूहिक प्रतिज्ञा के साथ एक बार फिर इस हिमालयी क्षेत्र से ‘रक्षासूत्र आंदोलन की तेज होती गूंज सुनाई दी।
झाला से भैरों घाटी के बीच ऑल वेदर सड़क चौड़ीकरण के विरोध में देवदार के असंख्य पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधने का अभियान तेज हो गया है। इस कार्यक्रम की पृष्ठभूमि उस समय मजबूत हुई जब 27 नवंबर को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में किसान नेता भोपाल सिंह चौधरी ने देवदार संरक्षण का मुद्दा उठाकर लोगों को हर्षिल पहुंचने और पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधने का आह्वान किया।

रविवार को हुए आयोजन में स्थानीय ग्रामीणों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राजदूत डॉ कर्ण सिंह के समर्थक, सामाजिक कार्यकर्ता और देशभर से आए पर्यावरण प्रेमी शामिल हुए। जोशी का संदेश भी इस मौके पर सुनाया गया, जिसमें उन्होंने हिमालय को पिता और भारत को माता बताते हुए देवदारों की रक्षा को अत्यंत जरूरी बताया।
पहले भी दो बार हर्षिल क्षेत्र में सुरेश भाई के नेतृत्व में देवदार बचाओ आंदोलन चल चुका है। इस अभियान में हर्षिल की पूर्व प्रधान बसंती नेगी, सुखी गांव के पूर्व सैनिक मोहन सिंह राणा, ‘ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर और पर्वतारोही डॉ हर्षवंती बिष्ट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
2017 में सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन ने भी सुखी गांव पहुंचकर महिलाओं के साथ देवदारों पर रक्षा सूत्र बांधकर विरोध दर्ज कराया था। इस बार जब लोगों ने गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर मौजूदा सड़क से लगभग 100 मीटर दूर घने देवदारों पर लगे कटान के निशान देखे, तो सभी हैरान रह गए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इलाके की संवेदनशीलता और बार-बार आने वाली आपदाओं को देखते हुए 6 मीटर की मजबूत सड़क पर्याप्त है, लेकिन 10-11 मीटर तक के विस्तार का औचित्य समझ से परे है।
5 अगस्त की खीर गंगा, तिल गाड़, भेला गाड़, लोध गाड़ व लेमचा घाट की आपदा का उदाहरण देते हुए लोगों ने कहा कि भारी जलसैलाब के बीच देवदार के पेड़ों ने ही कई जगह बड़ी तबाहियों को रोका था। बावजूद सरकार द्वारा देवदार बचाने की स्पष्ट नीति न आने से संशय बना हुआ है।
कार्यक्रम में सुरेश भाई और महिला नेत्री कल्पना ठाकुर ने कहा कि अच्छा होता यदि डॉ मुरली मनोहर जोशी और डॉ कर्ण सिंह जैसे वरिष्ठ लोग प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री और पर्यावरण-वन मंत्री से मिलकर कटान रोकने की पहल करते।
कल्पना ठाकुर ने कहा कि देवदार ग्लेशियरों की सुरक्षा कवच हैं और इनके कटान से गौमुख सहित पूरे क्षेत्र को बड़ा खतरा हो सकता है। रक्षा सूत्र बांधने से पहले विधिवत पूजा-अर्चना की गई। लोगों ने सामूहिक रूप से देवदार को बचाने की शपथ ली और आने वाले दिनों में संघर्ष को और तेज करने का संकल्प जताया।
हर्षिल पहुंचे देशभर के पर्यावरण प्रेमी
रविवार को रक्षासूत्र आंदोलन में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और कर्नाटक से भी पर्यावरण प्रेमी पहुंचे। कई युवाओं ने कहा कि हर्षिल घाटी देश की धरोहर है, और पेड़ काटे जाने की स्थिति में यह पूरा क्षेत्र आपदा के दायरे में आ जाएगा।
देवदार क्यों अहम?
विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा के उद्गम क्षेत्र में देवदार के जंगल प्राकृतिक बांध की तरह काम करते हैं। ये भारी बारिश या बादल फटने पर मलबे को नीचे बहने से रोकते हैं। देवदार मिट्टी को बांधकर ढलानों को स्थिर रखते हैं। सड़क चौड़ीकरण से बड़े पैमाने पर देवदार काटे गए तो औली-हर्षिल-गंगोत्री क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका कई गुना बढ़ जाएगी।
ऑल वेदर रोड : कितना चौड़ीकरण जरूरी?
स्थानीय लोग — 6 मीटर मजबूत सड़क पर्याप्त
प्रस्तावित चौड़ाई — 10-11 मीटर
चिन्हित क्षेत्र — सड़क से लगभग 100 मीटर तक जंगल
खतरा — सघन देवदार का कटान, भूस्खलन का जोखिम
मांग — टिकाऊ सड़क, कम से कम कटान, पर्यावरणीय मूल्यांकन
इको-सेंसिटिव जोन में गंगोत्री रोड चौड़ीकरण, 6 हजार पेड़ हटाने की मंजूरी
उत्तरकाशी जिले के इको-सेंसिटिव जोन में गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण के लिए हजारों पेड़ों को हटाने की तैयारी ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। भागीरथी इको सेंसिटिव जोन जैसे अत्यंत संरक्षित क्षेत्र में सामान्यत: बड़े निर्माण व पेड़ कटान पर पाबंदी रहती है, बावजूद 6822 पेड़ों को काटने और ट्रांसलोकेट करने की अनुमति दे दी गई है। इस फैसले ने जहां परियोजना को गति दी है, वहीं पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक संगठनों में तीखी नाराजगी भी उभर आई है। मामला संसद में भी गूंज चुका है। सामरिक महत्व और पर्यावरणीय खतरे के बीच संतुलन का सवाल खड़ा हो गया है। सरकार का दावा है कि सीमावर्ती जिले की सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और तीर्थयात्रा के लिहाज से सड़क चौड़ीकरण बेहद जरूरी है, जबकि पर्यावरणविद इसे भविष्य के लिए गंभीर खतरा बता रहे हैं।
इको-सेंसिटिव जोन में इतने पेड़ हटेंगे
6822 पेड़ों में से 4366 पेड़ ट्रांसलोकेट किए जाएंगे, जबकि 2456 पेड़ों को काटा जाएगा। प्रत्यारोपण पर 324.44 लाख रुपये खर्च होंगे। सड़क चौड़ीकरण का कार्य अभी शुरू होने में लगभग एक वर्ष का समय लग सकता है।
परियोजना को मिली हरी झंडी
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 34 पर भैरोघाटी से झाला तक 20.600 किमी सड़क चौड़ीकरण के लिए गैर-वानिकी कार्य को मंजूरी दी गई है। इसके बदले 76.924 हेक्टेयर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा। तत्कालीन हॉफ समीर सिन्हा और पीसीसीएफ लैंड ट्रांसफर एसपी सुबुद्धि परियोजना को सामरिक दृष्टि से अहम मानते हुए अनुमोदन दे चुके हैं।
इको-सेंसिटिव जोन क्यों महत्वपूर्ण
- राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर सुरक्षित परिधि
- पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर सख्त प्रतिबंध
- गोमुख से उत्तरकाशी तक करीब 4179 वर्ग किमी क्षेत्र 2012 में घोषित हुआ
- 2018 के संशोधन में विकास कार्यों के लिए कुछ छूट
- चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना भी इसी कारण विवादों में आई
२०१२ में क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया था
भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट के अनुसार, इस क्षेत्र को विशेष सुरक्षा देने का फैसला 2006 से शुरू हुए विवादों और जन आंदोलनों के बाद लिया गया था। बड़े बांधों का विरोध बढ़ा तो 2012 में इसे संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया। बाद में विकास कार्यों की अनुमति देने के लिए 2018 में संशोधन किया गया। सड़क चौड़ीकरण भी इन्हीं संशोधनों के तहत संभव हुआ।
इको-सेंसिटिव जोन में शामिल प्रमुख क्षेत्र
गंगोत्री, धराली, मुखबा, हर्षिल, जादुंग, नलांग, भटवाड़ी, मनेरी, अगोड़ा, जादुंगा सहित कुल 89 गांव इस क्षेत्र में आते हैं।
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